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केशव के हमले और योगी का बचाव, मुकाबला दिलचस्प है

आर्टिकल/इंटरव्यूकेशव के हमले और योगी का बचाव, मुकाबला दिलचस्प है

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अमित बिश्नोई
उत्तर प्रदेश में भाजपा नेतृत्व में तनाव घटने का कोई संकेत नहीं मिल रहा है. प्रदेश सरकार के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने सोमवार को एकबार फिर अपनी सरकार के नेता के खिलाफ मौर्चा खोल दिया और कहा कि चुनाव पार्टी अपनी पावर से जीतती है, सरकार की पावर से नहीं। वहीँ भाजपा में मची इस कलह पर समाजवादी पार्टी लखनऊ से लेकर दिल्ली तक मज़ा ले रही है. लखनऊ में आज जहाँ विधानसभा के मानसून सत्र में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ शिवपाल यादव को गच्चा देने की कोशिश में खुद गच्चा खा गए वहीँ दिल्ली में संसद के अंदर बजट सेशन के दौरान पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने भाजपा नेता अनुराग ठाकुर की क्लास लगा दी और यूपी में चल रही भाजपा की अंतरकलह पर वार करते हुए कहा कि जिसने भाजपा को चुनाव में हराया उसे हटाने की आप में हिम्मत नहीं है। अखिलेश यादव ने सीधे तौर पर योगी आदित्यनाथ की ओर संकेत किया और कहा कि लोकसभा चुनाव में भाजपा की हार की वजह योगी आदित्यनाथ हैं वहीँ सपा प्रमुख ने इस बात पर भी निशाना साधा कि चाहते हुए पार्टी की टॉप लीडरशिप योगी आदित्यनाथ को हटाने की हिम्मत नहीं कर सकती क्योंकि उसे डर है कि ऐसा करने पर यूपी में पार्टी न बिखर जाय.

बता दें कि केशव प्रसाद मौर्य ने रविवार को लखनऊ में पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा था कि जब 2014 में भाजपा जीती तो क्या उसकी सरकार थी, इसके बावजूद हम लोकसभा चुनाव जीते। इसके आगे अपनी बात को और मज़बूती देते हुए कहा कि 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में जब भाजपा जीती तो क्या यहाँ पहले से हमारी सरकार थी, लेकिन जब हमारी सरकार थी तब हम लोकसभा चुनाव हार गए. दरअसल केशव प्रसाद मौर्य अपनी उस बात को साबित कर रहे थे जो वो पिछले कुछ दिनों से मुखर होकर कहते आ रहे हैं कि संगठन बड़ा होता है, सरकार नहीं. संगठन से सरकार बनती है न कि सरकार से संगठन बनता है। दुसरे शब्दों में केशव प्रसाद मौर्य का निशाना मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर था क्योंकि पार्टी के अंदर एक खेमा और पार्टी के बाहर लोगों का कहना है कि योगी आदित्यनाथ यूपी में भाजपा के लिए एक मजबूरी हैं, उनके बिना उत्तर प्रदेश में भाजपा का सर्वाइवल मुश्किल है. केशव प्रसाद मौर्या इन दिनों घूम घूमकर यही बात बताना चाह रहे हैं कि योगी आदित्यनाथ का जो जलवा है वो पार्टी की वजह से है क्योंकि पार्टी ने उनको मुख्यमंत्री बनाया है। पार्टी जब चाहे उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटा सकती है और पद से हटते ही उनका जलवा ख़त्म। केशव प्रसाद मौर्या इसीलिए खुद का उदाहरण भी देते हैं और कहते हैं कि वो कार्यकर्ता पहले हैं और उपमुख्यमंत्री बाद में. ये बाद कहने का उनका सीधा मतलब है कि कार्यकर्ता यानि संगठन बड़ा होता है नेता (सरकार) नहीं.

केशव प्रसाद मौर्य और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बीच मतभेद लम्बे समय से चले आ रहे हैं, कह सकते हैं कि 2017 से जब केशव प्रसाद मौर्या मुख्यमंत्री बनते बनते रह गए, एक तरह निवाला मुंह में जाने ही वाला था कि अचानक दिल्ली से फरमान आ गया और मुख्यमंत्री पद के लिए दूर दूर तक नाम न होने के बावजूद योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया गया और इसके बाद योगी ने अपने ही स्टाइल में सरकार को चलाना शुरू किया और जल्द ही एक ख़ास वर्ग में वो बहुत लोकप्रिय हो गए, इतना लोकप्रिय हो गए कि दिल्ली वालों की आँख में खटकने लगे लेकिन योगी आदित्यनाथ अपनी कार्यशैली से सरकार पर और प्रदेश के एक वोट बैंक पर जो उन्हें हिन्दू ह्रदय सम्राट के रूप में स्वीकार कर चूका था अपनी पकड़ मज़बूत करते गए यही वजह है कि बीच बीच में योगी के खिलाफ पार्टी के अंदर ही बग़ावत की सुगबुगाहट सुनने को मिलती रहती थी लेकिन योगी बाल बांका करने में किसी में हिम्मत नहीं थी. लेकिन जब लोकसभा चुनाव में पार्टी को उम्मीद से कहीं निराशाजनक नतीजे मिले तब कई बार उठने वाली यही सुगबुगाहट मुखर होने लगी और बार बार योगी आदित्यनाथ पर अपरोक्ष रूप से हमले करने लगी।

हालाँकि योगी एकबार फिर अपनी पुरानी छवि को वापस पाने की कोशिश कर रहे हैं. विपक्ष अब उन्हें मज़बूत मुख्यमंत्री की जगह मजबूर मुख्यमंत्री कहने लगा है और उसकी वजह पार्टी के अंदर उनके खिलाफ उठने वाली वो आवाज़ें हैं जो योगी को बेचैन किये हुए हैं। ये बेचैनी उनके हालिया कुछ फैसलों में भी झलकी है, कावंड यात्रा के दौरान दुकानों पर नाम लिखने का निर्देश जिसमें उसे सुप्रीम कोर्ट से फटकार भी मिली लेकिन उस फैसले को रद्द करने का आदेश अबतक नहीं दिया गया है और अब आज लव जिहाद को लेकर नया बिल लाया गया जो विधानसभा में पास भी हो गया जिसमें आजीवन कारावास का प्रावधान कर दिया गया है और भी दूसरे कई बदलाव किये गए हैं जो लोगों को असीमित अधिकार देते हैं. ये पक्का है कि लव जिहाद के नए कानून का इस्तेमाल ज़रूर होगा क्योंकि अब इस मामले में कोई भी शिकायत कर सकता है भले ही उसका पीड़िता के साथ कोई रिश्ता हो या न हो. लव जिहाद के इस नए बिल का असली उद्देश्य भले ही महिलाओं की सुरक्षा बताई जा रही है लेकिन ये पूरी तरह से एक राजनीतिक हथियार है, इसके बारे में कोई दो राय नहीं. मुख्यमंत्री योगी इस तरह के फैसले क्यों ले रहे हैं इसकी सिर्फ एक ही वजह सामने आ रही और वो ये है कि इन फैसलों से वो प्रदेश में एक राजनीतिक माहौल बनाना चाहते हैं और विपक्ष साथ पार्टी के अंदर मुखर केशव प्रसाद मौर्य और दूसरे लोगों को भी खामोश करना चाहते हैं।

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