अल्मोड़ा- उत्तराखंड प्राकृतिक सौंदर्य के साथ-साथ पौराणिक मंदिर और उनकी धार्मिक मान्यताओं के लिए भी जाना जाता है. यहां के हर मंदिर का अपना धार्मिक महत्व होने के साथ-साथ ऐतिहासिक पृष्ठभूमि भी है. आज हम आपको एक ऐसे धाम के बारे में बताते हैं. जहां एक नहीं दो नहीं बल्कि 125 मंदिर आपको एक साथ दिखाई देंगे. हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में स्थित जागेश्वर धाम की जो अल्मोड़ा जिले से महज 32 किलोमीटर की दूरी पर घने जंगलों के बीच बसा है. जागेश्वर धाम (Jageshwer Temple Almora) को उत्तराखंड का पांचवा धाम भी कहा जाता है. जागेश्वर धाम की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां पर बने सभी मंदिर केदारनाथ शैली में बनाए गए हैं. जिनकी वास्तुकला आपको आकर्षित करने के साथ-साथ अपनी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को भी बयां करता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जागेश्वर धाम भगवान शिव की तपस्थली कही जाती है. जहां नवदुर्गा, सूर्य, हनुमान, कालिका, कालेश्वर प्रमुख हैं. सावन के महीने में यहां पूजन करने के दूर-दूर से लोग दर्शन के लिए यहां पहुंचते हैं.
जागेश्वर धाम (Jageshwer Temple Almora) भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में आठवां ज्योतिर्लिंग माना जाता है. 125 मंदिरों के समूह जागेश्वर धाम में मुख्य रूप से शिव मंदिर, दूसरा शिव के महामृत्युंजय रूप का है. आठवीं से दसवीं शताब्दी के बीच इन मंदिरों का निर्माण माना जाता है. इतिहासकारों की माने तो कत्यूरी और चंद शासकों ने इन मंदिरों का निर्माण करवाया था. जागेश्वर धाम के इतिहास के अनुसार उत्तर भारत में गुप्त साम्राज्य के समय कुमाऊं में कत्यूरी राजा था. जागेश्वर मंदिर का निर्माण उसी काल में बताया जाता है यही वजह है कि मंदिरों में गुप्त साम्राज्य की भी झलक देखी जा सकती है.
अपनी अनोखी कलाकृति से साहसी राजाओं ने देवदार के घने जंगल के बीच जागेश्वर मंदिर का ही नहीं बल्कि अल्मोड़ा जिले में 400 से भी अधिक मंदिरों का निर्माण कराया.
हालांकि कुछ लोगों की मान्यता है कि महाभारत काल में इन मंदिरों का निर्माण किया गया था.मंदिरों के निर्माण को लेकर कहा जाता है कि इन मंदिरों का निर्माण महाभारत काल में हुआ था. जागेश्वर धाम (Jageshwer Temple Almora) में मुख्य मंदिर दक्षेश्वर,मंदिर चंडी मंदिर, कुबेर मंदिर, मृत्युंजय मंदिर, नवदुर्गा नवाग्रह मंदिर, एक पिरामिड मंदिर, और सूर्य मंदिर, तारामंडल मंदिर, महादेव मंदिर सबसे बड़े मंदिर हैं .