IVF: एक अध्ययन में यह चौकाने वाली बात सामने आई है कि जिन महिलाओं को विट्रो-फर्टिलाइजेशन (IVF) का उपचार मिला है। उनमें प्रसव के 12 महीनों के भीतर स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है। ऐसी महिलाओं में शोधकर्ताओं ने स्ट्रोक के जोखिम को कम करने के लिए प्रसव के तुरंत बाद के दिनों में समय पर फॉलोअप और long term follow up जारी रखने के लिए कहा है।
हार्मोन उपचारों के कारण हो सकता स्ट्रोक
अध्ययन में इसके पीछे के कारणों का पता नहीं चल पाया। शोधकर्ताओं ने कहा कि यह उन हार्मोन उपचारों के कारण हो सकता है। जो IVF प्रक्रियाओं से गुजरने वाली महिलाएं लेती हैं। साथ ही IVF उन महिलाओं के लिए अधिक जोखिम भरा है। जिनमें ठीक से IVF प्लेसेंटा इम्प्लांट नहीं होता। अध्ययनों से संकेत मिलता है कि 5 में से 1 महिला को अपने जीवन में स्ट्रोक होने का खतरा होता है। सबूत बताते हैं कि कई लोग उन स्वास्थ्य कारकों को नहीं जानते हैं जो उन्हें stroke या अन्य CVD के खतरे में डालते हैं।
CVD के चलते महिलाओं की हो रही मौत
अध्ययन केे वर्षों में टेक्नोलॉजी में पर्याप्त प्रगति और नई दवाओं के विकास से बांझपन के इलाज में तेजी आई है। हृदय रोग सीवीडी महिलाओं में मृत्यु का प्रमुख कारण बना है। हर साल तीन में से एक मौत सीवीडी के कारण हो रही है। स्ट्रोक पुरुषों और महिलाओं दोनों में मृत्यु का तीसरा प्रमुख कारण है।
महिलाओं में खून की कमी
IVF के दौरान महिलाओं में इस्केमिक स्ट्रोक, अधिक सामान्य, मस्तिष्क के एक क्षेत्र में खून की कमी के नुकसान के कारण होता है। जबकि रक्तस्रावी स्ट्रोक रक्त वाहिका blood vessel के टूटने से मस्तिष्क में रक्तस्राव bleeding के कारण होता है। ऐसे मामलों में जोखिम में वृद्धि प्रसव के बाद पहले 30 दिनों में भी स्पष्ट थी।
स्ट्रोक की संभावना 55 प्रतिशत
JAMA नेटवर्क ओपन में प्रकाशित पेपर में बताया है कि हालांकि अस्पताल में भर्ती होने की पूर्ण दर कम थी। लेकिन पाया गया कि बांझपन उपचार के मामलों में 66 प्रतिशत मामले स्ट्रोक के जोखिम से जुड़े थे। उनमें स्ट्रोक के घातक रूप, रक्तस्रावी स्ट्रोक से पीड़ित होने की संभावना दोगुनी थी। वहीं इस्केमिक स्ट्रोक से पीड़ित होने की संभावना 55 प्रतिशत अधिक थी।