लोकसभा चुनाव में इस बार रालोद सपा के साथ नहीं बल्कि भाजपा के साथ है, बोले तो NDA साथ चुनावी गठबंधन में. इस गठबंधन के तहत रालोद के हिस्से में दो सीटें ही आयी, एक बिजनौर की और दूसरी बागपत की. बागपत जिसे रालोद का गढ़ कहा जाता है, हमेशा से यहाँ दबदबा रहा है. हालाँकि पिछले दो चुनावों में इस सीट पर भाजपा की जीत हो रही है, इसके बावजूद बागपत सीट रालोद और जयंत चौधरी के लिए कुछ ख़ास मकाम रखती है यही वजह है कि जयंत चौधरी गठबंधन के तहत एक सीट के तौर पर बागपत का नाम रखा.
सीटों का गठबंधन सामने आने के बाद उम्मीद तो यही लगाई जा रही थी कि यहाँ जयंत चौधरी चुनाव लड़ेंगे लेकिन बाग़पत में रालोद की वापसी के लिए जयंत चौधरी ने पार्टी के एक समर्पित नेता राजकुमार सांगवान को चुना और उन्हें उम्मीदवार बनाकर बागपत में रालोद की वापसी कराने की ज़िम्मेदारी सौंपी। राजकुमार सांगवान पार्टी के वरिष्ठ और समर्पित नेताओं में जाने जाते हैं, उनके पास लगभग 40 वर्षों का राजनीतिक अनुभव है. ये अनुभव चौधरी चरण सिंह, चौधरी अजित सिंह और अब छोटे चौधरी यानि जयंत के साथ लगातार जारी है. बागपत से उन्हें प्रत्याशी बनाने की शायद सबसे बड़ी वजह यही है.
मेरठ के रहने वाले रालोद के राष्ट्रीय सचिव डॉ. राजकुमार सांगवान का राजनीतिक सफर 1982 में तब शुरू हुआ जब वो मेरठ में रालोद जिला उपाध्यक्ष बने। 1986 में रालोद की छात्र इकाई के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बने, फिर 1990 में मेरठ के युवा रालोद के जिलाध्यक्ष बनाये गए। राजनीतिक तौर पर परिपक्व होते राजकुमार सांगवान को 1995 में झारखंड और बिहार का चुनाव प्रभारी बनाया गया। अपने 40 वर्षों के राजनीतिक जीवन में वो प्रदेश महामंत्री और प्रदेश संगठन महामंत्री के पदों पर भी रहे।
पार्टी के लिए पूरा जीवन समर्पित करने वाले डॉ राजकुमार सांगवान ने शादी नहीं की. उनकी पीएचडी भी उनके आदर्श नेता चौधरी चरण सिंह पर है. बागपत के माया त्यागी कांड में हुए आंदोलन में पहली बार राजकुमार सांगवान 1980 में जेल गए, इसके अलावा किसान आंदोलनों के दौरान भी वो कई बार जेल जा चुके हैं. डॉ सांगवान कई बार सार्वजानिक मंचों से कह चुके हैं कि आजीवन रालोद में ही रहेंगे और उस बात को वो लोकदल की तीसरी पीढ़ी के साथ भी निभा रहे हैं. ऐसे में कहा जा सकता है कि डॉ सांगवान को बागपत से उम्मीदवार बनाकर जयंत चौधरी ने एक समझदारी भरा फैसला किया है.