नई दिल्ली। लोगों के साथ इस बार हीट वेव देश की अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित करेगी। ऐसा अर्थ जगत के दिग्गजों का मानना है। देश के कई राज्य इस समय अप्रैल से ही हीट वेव की चपेट में हैं। असामान्य रूप से गर्म मौसम ने आर्थिक चिंताओं को बढ़ाया है। जिसके कारण कंपनियों के बैलेंसशीट और आम लोगों के बजट बिगड़ सकते हैं।
यह मुश्किल ऐसे समय में सामने आ रही है जब भारत महामारी के बाद अपनी आर्थिक स्थिति को ठोस करने की तैयारी कर रहा है। दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी बनने की राहत पर निकल चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक प्रमुख सलाहकार ने हाल ही में कहा है कि इकोनॉमी किसी भी संभावित मौसम के झटके का सामना कर सकती है। आर्थिक विश्लेषकों के मुताबिक अगर हीटवेव का हमला होता है तो देश की फसलें खराब होने की संभावना रहती है। जिसका असर ग्रोथ पर पड़ता है। कृषि और इससे संबंधित एक्टीविटीज देश की कुल जीडीपी का 17 फीसदी हिस्सा है।
बढता तापमान चिंता का कारण
लगातार बढ़ रहा तापमान चिंता को और अधिक बढ़ा रहा है। इससे फूड इंफ्लेशन में इजाफा होने की संभावना बढ़ती है और देश की मैक्रोइकोनॉमिक पर इसका असर पड़ता है। ओवरऑल प्रोडक्टीविटी और रूरल डिमांड पर प्रभाव जीडीपी की ग्रोथ में सेंध लगा सकता है। विश्व बैंक ने कहा है कि भारत की जीडीपी वृद्धि 2023-24 में घटकर 6.3 फीसदी रह सकती है। जबकि इसके पहले के अनुमान 6.6 फीसदी था। बढ़ता तापमान और हीटवेव इसे और कम कर सकते हैं।
1901 के बाद 2022 पांचवां सबसे गर्म साल
भारत मौसम विज्ञान विभाग IMD के अनुसार इस बार फरवरी का महीना 1877 के बाद यानी 146 में सबसे गर्म देखने को मिला। यह कोई आकस्मिक घटना नहीं है। तापमान में असामान्य वृद्धि का एक पैटर्न है। Ministry of Statistics and Program Implementation की ओर से जारी आंकड़ों से पता चलता है कि 2022 में हीटवेव के दिनों की औसत संख्या एक दशक में सबसे ज्यादा अधिक हो गई। साल 2022 में भारत में हीटवेव 190 दिनों तक झेला।
फूड इकोनॉमी को नुकसान पहुंचा सकती है गर्मी?
भारत की फूड इकोनॉमी हीट वेव की वजह से तड़प रही है। वास्तव में हीटवेव की वजह से कमोडिटी की शॉर्टेज देखने को मिलेगी और कीमतों में इजाफा देखने को मिलेगा। आरबीआई को ब्याज दरों में फिर से वृद्धि करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा जो भारत की जीडीपी वृद्धि के लिए ठीक नहीं है। हीट वेव फसलों को नुकसान होने, उनकी ग्रोथ रुकने और जल्दी पकने के कारण प्रोडक्शन कम हो सकता है और कीमतें बढ़ सकती हैं। हीटवेव सिंचाई के लिए पानी की डिमांड को बढ़ाएगा। जिससे प्रभावित क्षेत्रों में जल संसाधनों पर दबाव पड़ सकता है। हीटवेव पशुओं के चारे के उत्पादन के साथ-साथ पशु उत्पादकता को भी कम करती हैं जिससे दूध की कीमतों में वृद्धि होने की संभावना है। इसी तरह मुर्गी पालन और मछली पालन भी बढ़ते तापमान से प्रभावित हो रहे हैं।
बढ़ेगा फूड इंफ्लेशन
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ हॉर्टिकल्चर रिसर्च (आईआईएचआर), बेंगलुरु के निदेशक एसके सिंह ने बताया कि तापमान में इजाफे की वजह से इस साल विभिन्न क्षेत्रों में फल और सब्जियों की फसलों का 10 फीसदी से 30 फीसदी का नुकसान होगा। जिससे फूड इंफ्लेशन बढ़ सकता है। पिछले साल दिसंबर में जारी विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, पहले से ही, भारत में केवल 4 प्रतिशत फ्रेश प्रोडक्शन कोल्ड चेन सुविधाओं द्वारा कवर किया गया है। वार्षिक अनुमानित खाद्य नुकसान कुल 13 बिलियन डॉलर है। कृषि कई लोगों को रोजगार देती है। कम प्रोडक्शन कम कम खरीद शक्ति को भी दर्शाता है, जिससे डिमांड में कमी आती है।
प्रोडक्टीविटी को नुकसान
ज्यादा से ज्यादा गर्मी पढ़ने का असर लेबर प्रोडक्टीविटी पर भी पड़ता है। जोकि काफी इग्नोर किया जाता है। सिर्फ कंस्ट्रक्शन लेबर ही नहीं और भी कई लोगों को खुले में सूरज के नीचे हीटवेव के थपेड़ों के बीच काम करना पड़ता है। विश्व बैंक की पिछले साल दिसंबर में जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत का लगभग 75 फीसदी वर्क फोर्स संभावित लाइफ थ्रेटनिंग टेंप्रेचेर में काम करता है। इसका मतलब है कि इकोनॉमी के कई सेक्टर्स में लेबर प्रोडक्टीविटी में भारी गिरावट देखने को मिल सकती है। जिसका असर देश की इकोनॉमी में देखने को मिल सकता है।