- करनाल से शामली पहुंचे प्रवासी मजदूर ने साझा कि दिक्कतें
- करनाल में आटा मांगा और पुलिस चौकी पर पानी मांगकर रोटी बनाकर खाई
न्यूज़ डेस्क – प्रवासी मजदूरों को लेकर योगी सरकार के जो निर्देश है उनपर अफसर सही से काम नहीं कर रहे हैं. शामली में इसकी बानगी देखने को मिली.प्रवासी मजदूर की एक फैमिली करनाल से होती हुई साइकिल से शामली पहुंची. उसने बिजनेस बाइट्स से अपने दर्द साझा किए. प्रवासी मजदूर के फैमिली मेंबर्स ने बताया कि मेरठ करनाल के रोड पर एक गांव में आटा मांगा और फिर पुलिस चौकी पर पानी की व्यवस्था मिलने पर खाना बनाकर अपनी विकलांग पत्नी और बच्चे को खिलाया. 3 दिन में साइकिल से शैटरडे को प्रवासी मजदूर की फैमिली शामली पहुंची. इन लोगों को मुजफ्फरनगर जाना है
शामली की व्यवस्था की खुली कलई
कोरोना वायरस के आउटब्रेक को कम करने के लिए योगी सरकार लगातार प्रयास कर रही है. लेकिन लॉकडाउन के दौरान अफसरों की लापरवाही दिख रही है.प्रवासी मजदूर खाने का संकट होने के बाद किसी ना किसी माध्यम से हर संभव प्रयास करते हुए अपने गांव अपने घर लौट रहे हैं. सरकार की ओर से प्रवासी मजदूरों को घर वापस लाने के लिए बस, ट्रेन और जगह-जगह पर खाने की व्यवस्था कर रही है तो वही शामली जनपद में प्रवासी मजदूर को सरकार द्वारा दी जा रही व्यवस्था की पोल खुल रही है. शामली जनपद में माननीय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आदेश हवा हवाई साबित हो रहे हैं एक और परिवार को साईकिल रेड़ा मैं सवार कर खुद चला कर करनाल से होता हुआ शामली पहुंचा. प्रवासी मजदूर की फैमिली के मुताबिक, यह लोग पांच दिन में शामली पहुंचे और रास्ते में उन्हें खाने की व्यवस्था ना मिलने के चलते गांव में घूम-घूम कर आटा मांगा है और फिर ईटों से खाना बनाने के लिए चूल्हा तैयार किया. फिर सभी ने खाना खाया.
ये कैसा न्याय?
पीड़ित प्रवासी मजदूर छोटू ने बताया कि उसकी पत्नी विकलांग है और उसका 5 वर्षीय मासूम बेटा भूख से परेशान था.तपती धूप में प्रवासी मजदूर अपने परिवार को दिन भर साइकिल में बिठाकर खींचता है और फिर उनके लिए भीख मांगकर खाना तैयार करता है. तस्वीरें साफ दिखाती है कि किस तरीके से मुख्यमंत्री के आदेशों के बाद भी प्रवासी मजदूर की हालत क्या है और कितना जनपदीय अधिकारी मुख्यमंत्री के आदेशों का पालन कर रहा है. वहीं इस मामले में प्रवासी मजदूर छोटू का कहना है कि 5 दिन के करीब हम लोगों को चलते चलते हो गए हम लोगों को कहीं भी सरकार द्वारा खाने की व्यवस्था नहीं मिली. हम लोगों ने भूख लगी तो आटा मांग लिया और फिर कच्ची ईंटों का चूल्हा बनाकर परिवार के लिए खाना बना कर पेट भर लिया . मेरी पत्नी विकलांग है इसलिए मुझे खुद पहले खाना के लिए सामान मांगना पड़ता है और फिर खाना बनाता हूं. हम लोग यमुनानगर में भट्टे पर काम करते थे और वहां के मकान मालिक ने हमसे किराया भी नहीं लिया. लेकिन हमारे पास खाने पीने के लिए सामान और ना ही पैसा बचा तो फिर हम वहां से छोड़ कर अपने घर लौटने का निर्णय लिया
मुजफ्फरनगर जाएंगे
इस मामले में प्रवासी मजदूर की पत्नी पिंकी का कहना है कि हमारे पास खाने को कुछ नहीं बचा था. हमलोग चार-पांच पहले घर से चले थे और रास्ते में हमें किसी तरह की कोई भी सरकारी व्यवस्था नहीं मिली हम लोगों ने रास्ते में खाने का सामान मांग मांग कर अपने लिए खाना बनाया है और कुछ देर आराम कर फिर चल दिए हैं मेरे शरीर में कमजोरी है और मैं विकलांग हूं इसलिए मेरे पति सारा काम खुद करते हैं. अब हम लोग करनाल से होते हुए सामने आए और मुजफ्फरनगर जाएंगे.