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ममता के लिए मुश्किल दौर, क्या निकल पाएंगी बाहर?

आर्टिकल/इंटरव्यूममता के लिए मुश्किल दौर, क्या निकल पाएंगी बाहर?

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अमित बिश्नोई
अगर ममता बनर्जी और उनकी तृणमूल कांग्रेस लगातार चुनाव जीत रही है तो इसकी सबसे बड़ी वजह उन महिलाओं का समर्थन है जिन्हें महिला-केंद्रित कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिला है। लेकिन पिछले दिनों कोलकाता में 31 वर्षीय ट्रेनी डॉक्टर के साथ बलात्कार और फिर हत्या के बाद आज जो गुस्सा सामने आ रहा है वो इसी समर्थक वर्ग से ही आ रहा है, इसका अंदाज़ा उस छात्रा की सोशल मीडिया पोस्टों से भी लगाया जा सकता है जो खुलेआम कह रही है कोई ममता को भी इंदिरा गाँधी की तरह उड़ा दे और वो ऐसा नहीं कर सकते तो उसे मौका दे, वो निराश नहीं करेगी। ये छात्रा गिरफ्तार हो गयी है, बेशक किसी को भी किसी की हत्या करने की धमकी देने का अधिकार नहीं है और न ही समाज में इस तरह की घृणा फैलाने का अधिकार है लेकिन कीर्ति नाम की इस छात्रा की इन्स्टाग्राम स्टोरीज में इस नफरती सन्देश के पीछे कहीं न कहीं वो नाराज़गी आसानी से देखी जा सकती है जो पिछले कुछ दिनों से पूरे देश में इस वर्ग में देखी जा रही है.

अभी हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में ममता सरकार की कल्याणकारी योजनाओं की वजह से महिलाओं से मिले समर्थन के कारण टीएमसी का वोट शेयर काफी हद तक बढ़ा, इस योजना में महिलाओं को 1,000-1,200 रुपये की मासिक सहायता प्रदान की गई। लेकिन अब महिला वोटरों में लोकप्रिय ममता बनर्जी पर महिलाओं को हिंसा से बचाने में विफल रहने का आरोप लग रहे हैं और कहा जा रहा कि जब भी इस तरह की कोई घटना होती है तो ममता पीड़ित वर्ग पर ही सवाल क्यों उठाती हैं. 9 अगस्त की सुबह राज्य द्वारा संचालित आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में हुई घटना के बाद ऐसा लगता है कि उन्होंने अपने पीछे खड़ी महिला शक्ति को अलग-थलग कर दिया है और ये इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि घटना के बाद स्वतंत्रता दिवस की मध्य रात्रि को ‘रिक्लेम द नाइट’ में महिलाओं के नेतृत्व में बंगाल में एक शांतिपूर्ण और मजबूत विरोध दिखा। ममता सरकार के खिलाफ आक्रोश जो देश के अन्य हिस्सों में फैल गया 17 अगस्त को पूरे देश में चिकित्सा पेशेवरों द्वारा हड़ताल के रूप में बदल गया. इस तरह का नज़ारा दिल्ली के निर्भया कांड के समय देखा गया था. कम से कम पश्चिम बंगाल में ऐसा कुछ पहले कभी नहीं देखा गया जिसकी वजह से ममता सरकार को इस बार वास्तव में रक्षात्मक होना पड़ा है।

वैसे पश्चिम बंगाल में ममता के दौर में आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में हुई घटना कोई पहली घटना नहीं है. 2012 में पांच लोगों ने एक महिला के साथ सामूहिक बलात्कार किया जो उन्हें एक नाइट क्लब में मिली थी। जब महिला ने घटना और सुरक्षा और पुलिस कार्रवाई की कमी के बारे में खुलकर बात की तो ममता ने केवल पीड़िता को शर्मिंदा किया बल्कि बलात्कार को ‘मंचित घटना’ बताकर खारिज कर दिया। 2013 में उत्तर 24-परगना के कामदुनी गांव में 20 वर्षीय कॉलेज छात्रा का अपहरण कर लिया गया, आठ लोगों ने उसके साथ किया और फिर उसका गला काट कर उसके शव को एक खेत में फेंक दिया। आरोपी को मामूली सजा देकर छोड़ दिया गया। इसके बाद जब ममता सरकार खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू हुए तो उन्होंने प्रदर्शनकारियों को ‘माओवादी’ करार दिया। एक महिला मुख्यमंत्री होने के नाते ममता बनर्जी की पहले की हाई प्रोफाइल बलात्कारों पर प्रतिक्रिया अविश्वसनीय रही है क्योंकि वह हमेशा उन्हें राजनीतिक चश्मे से तौलती हैं। लेकिन इसबार मामला हाथ से निकल रहा है और यही वजह है कि वो सीबीआई को समय सीमा दे रही हैं कि वो चार दिनों में आरोपी को फांसी के फंदे तक पहुंचाए, हालाँकि उन्हें ये अच्छी तरह मालूम है कि ऐसा नहीं होता. मगर इसबार उन्हें अपने उस समर्थक वर्ग को सन्देश देना है जिसने उनको भर भरकर वोट दिया लेकिन इस घटना ने उसे विचलित कर दिया है और उसका भरोसा ममता पर से उठने लगा है.

पिछले कुछ समय में हुई घटनाओं की वजह से ममता के खिलाफ गुस्सा पहले से ही बढ़ रहा था। आरजी कर बलात्कार और हत्या मामले ने आग में घी का काम किया, ऊपर से इस घटना पर ममता बनर्जी के शुरूआती व्यवहार ने नागरिकों को चौंका दिया और लोगों की निराशा को विद्रोह में बदल गयी। बता दें कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के पास गृह और स्वास्थ्य विभाग दोनों हैं इसलिए इस मामले में जवाबदेही सीधी उनकी ही बनती है. ममता ने इस मामले में भी वैसा ही किया जैसा वो पहले की घटनाओं में करती आ रही थीं, संदेशखाली की घटना ज़्यादा पुरानी नहीं है, बुरी तरह घिरने के बावजूद वो संदेशखाली की घटना का राजनीतिकरण करने में कामयाब हो गयी थी और लोकसभा चुनावों में उसका फायदा भी उन्होंने उठाया था. हालाँकि संदेशखाली की घटना का भाजपा ने भी लाभ लेने की पूरी कोशिश की थी, भाजपा ने तो संदेशखाली घटना की पीड़िता को उम्मीदवार तक बना दिया था लेकिन ममता के पैंतरों के आगे मोदी और शाह की एक न चली. इसबार भी उन्होंने घटना के बाद हंगामों के पीछे बाम और राम की चर्चा कर राजनीतिक मोड़ देने की कोशिश। ममता का कहना था कि भाजपा और वाम मिलकर सरकार को अस्थिर करना चाह रहे हैं.

मामला अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है, सीबीआई जांच जारी है, आरोपी ने अपना अपराध कबूल कर लिया है लेकिन उसका पॉलीग्राफ टेस्ट होना है जिसकी मंज़ूरी मिल चुकी है. जानने की कोशिश हो रही है कि इस रेप और हत्याकांड के पीछे कोई साज़िश तो नहीं है. पॉलीग्राफ टेस्ट के बाद और क्या निकल कर सामने आता है ये देखने वाली बात होगी, सुप्रीम कोर्ट कल इस केस की सुनवाई किस तरह करता है और क्या कुछ नया निकलकर सामने आता है ये भी ममता के लिए बड़ा सवाल है. इस घटना ने राजनीतिक उथल पुथल भी मचा दी है, ममता के अपने लोगों ने सवाल पूछे हैं. इंडिया गठबंधन में ममता भले ही सीधे तौर पर नहीं हैं फिर भी माना जाता है वो इंडिया ब्लॉक् का ही हिस्सा हैं लेकिन राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी को न चाहते हुए भी इस घटना की निंदा करनी पड़ी है जो निश्चित ही TMC वालों को पसंद नहीं आ रही है और वो कांग्रेस पर पलटवार कर रहे हैं. फिलहाल कोलकाता में हुई ये घटना इस शहर के लिए एक कलंक की तरह है और ममता बनर्जी के राजनीतिक जीवन में एक कड़ी परीक्षा भी, देखना है कि ममता इस मुश्किल दौर से कैसे बाहर निकलती हैं।

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