पुरुषों में जनन क्षमता घट रही है। हालात ये है कि पुरुष बच्चे नहीं पैदा कर कर पा रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार, परिवार में संतान न होने के 35 प्रतिशत मामलों में महिलाओं का बांझपन वजह है। वहीं दूसरी ओर 30 प्रतिशत में पुरुषों में जनन अक्षमता। दोनों के बीच अंतर बहुत बड़ा नहीं है। लेकिन महिलाओं में बांझपन पर लंबे समय से व्यापक शोध के चलते इलाज तलाशे हैं। जबकि पुरुषों की जनन अक्षमता पर चर्चा दबे-छिपे हो रही है।
सकल प्रजनन दर(टीएफआर) 5.3 से घटकर महज 2.3 पर
विश्व स्वास्थ्य संगठन रिपोर्ट की माने तो छह दशक में दुनिया की सकल प्रजनन दर(टीएफआर) 5.3 से घटकर महज 2.3 पर आ गई है। यानी 1960 में एक महिला अपने जीवनकाल में जहां औसतन 5.3 बच्चों को जन्म दे रही थी। वहीं आज की महिलाएं 2.3 बच्चों को ही जन्म दे पा रही है। 2022 में 17.5 प्रतिशत वयस्क बच्चे पैदा नहीं कर पा रहे थे। यानी हर 6 में से एक दंपती बच्चा पैदा करने लायक नहीं है। यह संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है। क्योंकि पुरुषों में जनन अक्षमता बढ़ रही है।
परिवार में संतान न होने के 35 प्रतिशत मामलों में महिलाओं का बांझपन वजह है। मेलबर्न विश्वविद्यालय में डीन व पुरुष प्रजनन स्वास्थ्य पर काम कर रहीं प्रो. मोयरा ओ’ब्रायन के मुताबिक पुरुषों में जनन अक्षमता सामान्य समस्या है। यह पूरी दुनिया में व्याप्त है। पुरुषों में इस पहलू की अनदेखी स्वास्थ्य प्रणाली की विफलता है। जबकि पुरुषों में समस्या की वजह कोई और बीमारी हो सकती है।
अक्षमता की वजह न जानना, परेशानियां बढ़ाना
हडसन चिकित्सा शोध संस्थान में चिकित्सक प्रो. रॉबर्ट मैक्लाक्लन का कहना हैं कि पुरुष जनन अक्षमता के अधिकतर मामलों में डॉक्टरों को कारण पता नहीं चल पाता। उनमें गैमेट कही जाने वाली प्रजनन कोशिकाओं के निर्माण को लेकर विज्ञान के पास सीमित समझ है। सीमन संरचना में कमी व अन्य कारणों में दिक्कतें आती हैं।
हर स्तर पर सुधार जरूरी
समस्या स्वीकारें : जरूरी है कि सभी संबंधित पक्ष इसको एक गंभीर चिकित्सकीय समस्या के रूप में स्वीकार करें। यह सुधारों के बिना संभव नहीं होगा।
मानक जांच व्यवस्था बने : जन स्वास्थ्य एजेंसियों को पूरी दुनिया के लिए मानक जांच व्यवस्था बनाना होगा। वैश्विक स्तर पर आंकड़े जुटाने को नेटवर्क बनाया जा सकता है।
सरकारी दायित्व : सरकार नीतियां बना सकती है। उनके सुरक्षित विकल्पों के लिए शोध करवा सकती है।
समाज यह करे : पुरुष जनन अक्षमता को सामान्य समस्या की तरह देखना सीखना होगा।
चिकित्सा समुदाय : यूरोलॉजी, इंटरनल मेडिसिन, इंडोक्राइनोलॉजी, आदि सेवाओं से जुड़े चिकित्सा विशेषज्ञों व शोधकर्ताओं को प्रशिक्षण देना होगा।
जांच भी ठीक से नहीं
समस्या के कारण जीवनशैली से लेकर तेजी से बिगड़ता पर्यावरण तक बताए जाते हैं। लेकिन सही वजहें सामने नहीं आई हैं। इसके लिए अक्षमता के विभिन्न प्रकारों को समझना होगा, इलाज भी मिल सकेंगे। इस अक्षमता की अचूक जांच के तरीके आज भी मुहैया नहीं हैं। इस मुद्दे पर लोगों में जागरूकता की भी कमी है।