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मंत्रालयों को लेकर महायुति में टकराहट

आर्टिकल/इंटरव्यूमंत्रालयों को लेकर महायुति में टकराहट

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तौक़ीर सिद्दीक़ी

महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्रियों ने शपथ ले ली है. एकनाथ शिंदे पर जो नाटक चल रहा था वो समाप्त हो गया है लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि महाराष्ट्र की महायुति सरकार की समस्याएं समाप्त हो गयी हैं. बात करे तो समस्याएं और पेचीदा हो गयी हैं क्योंकि एक मोर्चे पर तो एकनाथ शिंदे ने सरेंडर कर दिया है लेकिन अभी तो कहानी बाकी है और वह इसलिए कि शिंदे की नज़रें अहम् मंत्रालयों पर गड़ी हुई हैं, विशेषरूप से गृह मंत्रालय जो भाजपा के लिए भी मुख्यमंत्री पद से कम अहम् नहीं है. कहने का मतलब अगले दो तीन दिनों में मंत्रालयों के बंटवारे को लेकर बहुत सी कहानियां सामने आने वाली हैं. यहाँ पर बात सिर्फ शिंदे की नहीं बल्कि अजित पवार की भी है जिनकी तरफ से उपमुख्यमंत्री को लेकर कोई व्यवधान नहीं था लेकिन मंत्रालयों को लेकर उनकी भी महत्वकांक्षाओं को नज़र अंदाज़ नहीं किया जा सकता, इसलिए बहुत संभव है कि महाराष्ट्र में सरकार के अंदर ही एक त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिले, हो सकता है कि मंत्रालयों को लेकर टकराहट भाजपा से न होकर एनसीपी और शिवसेना में दिखाई दे.

फिलहाल तो जो ख़बरें आ रही हैं उनके मुताबिक महायुति में इस उलझन को सुलझाने की कोई युक्ति निकालने की कोशिश हो रही कि सबकुछ सरलता से निपट जाय लेकिन राजनीति में सरलता से कुछ भी नहीं निपटता, विशेषकर बात जब कई राजनीतिक दलों के संयोजन की हो. 11 दिन बाद मुख्यमंत्री और उपमुख़्यमंत्रियों पर फैसले और शपथ के बाद मंत्रिमंडल पर भी कुछ समय लगना तो बनता है, कहा जा रहा है कि फडणवीस कैबिनेट का एलान अगले सप्ताह होगा। हो सकता है थोड़ा आगे भी बढ़ जाय या फिर ये भी हो सकता है कि पहले दौर पर सिर्फ कुछ लोग ही मंत्री पद की शपथ लें और जैसे जैसे मंत्रालयों पर सहमति बने मंत्रिमंडल का विस्तार होता रहे. फिलहाल भाजपा सूत्रों के अनुसार सबकुछ ठीक ठाक चल रहा है, मंत्रियों के विभागों पर क्रमवार बातचीत जारी है. उम्मीद की जा रही है कि शीतकालीन सत्र से पहले ही मंत्रियों पर फैसला करके उन्हें शपथ दिला दी जाय.

शिंदे अगर मुख्यमंत्री बनते तो शायद सबकुछ पिछली कैबिनेट जैसा ही होता लेकिन स्थितियां अब बदल गयी हैं, मुख्यमंत्री के बदलने के साथ ही मंत्रालय की डेमोग्राफी भी बदलना ज़रूरी है, शिंदे ने तमाम नखरों के बाद उपमुख्यमंत्री बनना क्यों स्वीकार किया? कुछ तो बात पहले से ही तय हुई होगी, क्योंकि सरकार में उनकी इंट्री लास्ट मोमेंट पर हुई है. गृह मंत्रालय की बात काफी चर्चा में चल रही है, मुख्यमंत्री नहीं तो सरकार में दूसरे नंबर का मंत्रालय तो मिलना ही चाहिए। आप उपमुख्यमंत्री को नंबर दो की पोजीशन नहीं दे सकते। दरअसल उपमुख्यमंत्री पद तो ज़बरदस्ती का गढ़ा हुआ पद है जो सिर्फ खुश करने के लिए होता है, बिलकुल उस शेर की तरह “दिल को बहलाने को ग़ालिब ये ख्याल अच्छा है”, वरना संविधान में इस पद का कोई ज़िक्र है ही नहीं।

जैसा कि मैंने ऊपर कहा कि चुनावी नतीजों ने सरकार की डेमोग्राफी को भी बदल दिया है. पिछली बार शिवसेना एनसीपी से ऊपर थी क्योंकि एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री थे, एक तरह से कम विधायकों के बावजूद भी सरकार में वो पहले नंबर की पार्टी थी लेकिन अब शिंदे और अजीत पवार, शिवसेना और एनसीपी बराबरी के दर्जे पर हैं और जब बराबरी के दर्जे पर हैं तो एनसीपी को उतने ही मंत्रालय चाहिए होंगे जितने शिवसेना को मिलेंगे, महत्वपूर्ण मंत्रालयों की संख्याएँ भी बराबर होंगी। नई डेमोग्राफी में एनसीपी को पूरा हक़ है कि वो भाजपा पर पूरा दबाव बनाये कि उसे बराबर का हक़ मिले। अजीत पवार की तरफ से इसकी मांग कर भी दी गयी है, ऐसे में मामला आसान नहीं बल्कि और पेचीदा हो गया है, इसलिए कहा जा रहा है कि मंत्रालयों के बंटवारे पर संघर्ष भाजपा से नहीं बल्कि इन दोनों सहयोगियों में होने की सम्भावना है. भाजपा यहाँ पर एक तरफ बैठकर तमाशा देख सकती है, बंदर बाँट वाली कहानी की तरह. कहानी तो आपने सुनी ही होगी, उस कहानी में बंदर ने हिस्सा बाँट बांटकर अंत में सब हड़प लिया था और दोनों बिल्लियां मुंह ताकती हुई रह गयी थीं. कहीं ऐसा न हो कि विभागों के बंटवारे में वही कहानी दोहराई जाय. हिस्सा बाँट में शिवसेना और एनसीपी उलझी रहें और मलाई भाजपा साफ़ कर जाय, वैसे इस तरह के मामलों उसे महारत भी हासिल है.

अभी जो ख़बरें सत्ता के गलियारों से निकलकर आ रही हैं उनके मुताबिक 43 विभागों में से 24 पर भाजपा की नज़र है, बचे हुए 19 मंत्रालयों को वो सहयोगियों में बाँटना चाहती है. महाराष्ट्र जैसे राज्य में गृह और शहरी विकास मंत्रालय सबसे अहम् माना जाता है और ये दोनों मंत्रालय वो अपने सहयोगियों को किसी भी हालत में नहीं देगी, शिंदे चाहे जितना भी फड़फड़ा लें उनके पर काटने के लिए भाजपा ही नहीं एनसीपी भी तैयार है, बदली परिस्थियों में अजित पवार भी दबने के मूड में नहीं हैं. तो मामला इन विभागों पर ही फंसा है, अब महायुति कौन सी युक्ति निकालकर इस पेचीदा मसले को हल करेगी, ये अगले दो चार दिनों में पता चल जायेगा, फिलहाल तो एकनाथ शिंदे की हालत पिंजड़े में फड़फड़ाते पक्षी की तरह हो गयी है.

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