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सावधान! चॉकलेट, बिस्किट, ड्रिंक्स-स्नैक्स में मानक से 8 गुना अधिक शुगर, फैट और सोडियम

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Health News: देश में बिक रहे अधिकतर बिस्किट, चिप्स, भुजिया, कोल्ड ड्रिंक, ब्रेड और चॉकलेट जैसे पैकेज्ड चीजों में शुगर फैट और सोडियम डब्ल्यूएचओ के तय मानकों से अधिक हैं। 43 उत्पादों पर अध्ययन में पता चला कि करीब एक तिहाई उत्पाद में तो शुगर, फैट और सोडियम तीनों की मात्रा तय मानक से कहीं ज्यादा है। सभी ऐसे उत्पाद हैं जिन्हें बच्चे बड़े स्वाद के साथ खाते हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के तय मानकों की तुलना में आठ गुना अधिक

घरों में रोजमर्रा का हिस्सा बन चुके बिस्किट, भुजिया, चिप्स, कोल्ड ड्रिंक, ब्रेड और चॉकलेट जैसे अल्ट्रा प्रॉसेस्ड फूड धीरे-धीरे लती और बीमार बना रहे हैं। इन फैक्टरी निर्मित उत्पादों में शुगर, फैट और सोडियम की मात्रा विश्व स्वास्थ्य संगठन के तय मानकों की तुलना में आठ गुना अधिक है। इसके बावजूद आक्रामक मार्केटिंग, बच्चों को लक्षित विज्ञापनों और नियमों का लाभ उठाकर फूड कंपनियां तेजी से भारत में बाजार बढ़ा रही हैं। इन जंक फूड की खपत के साथ देश में डायबिटीज, हाइपरटेंशन, हृदय रोग और कैंसर जैसी बीमारियों के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं।

पोषण पर काम करने वाले गैर-सरकारी संगठन न्यूट्रिशन एडवोकेसी इन पब्लिक इंटरेस्ट (नापी) ने चिप्स, बिस्किट, कोल्ड ड्रिंक, भुजिया, ब्रेड और चॉकलेट जैसे 43 पैकेज्ड फूड का अध्ययन किया। जिसमें पाया एक उत्पाद ऐसा नहीं है, जिसमें शुगर, फैट और सोडियम तीनों की मात्रा डब्ल्यूएचओ की ओर से तय मानक के अंदर हो। एक तिहाई उत्पाद तो ऐसे थे, जिनमें शुगर, फैट और सोडियम तीनों की मात्रा तय मानक से कई गुना अधिक है। सभी उत्पाद ऐसे हैं, जिनकी घरों में प्रतिदिन खपत होती है। खासतौर पर बच्चे इन्हें बहुत अधिक पसंद करते हैं।

विज्ञापन कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट के तहत गुमराह करने वाले विज्ञापन

अध्ययन में सामने आया कि फूड कंपनियां विज्ञापन में सेलिब्रिटी इंडोर्समेंट, बच्चों को लक्ष्य बनाकर जरूरी सूचनाएं छुपाकर उत्पादों को बढ़ावा दे रही हैं। अध्ययन के अनुसार, विज्ञापन कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट के तहत गुमराह करने वाले विज्ञापनों की कैटेगरी में आते हैं।
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के अध्ययन के मुताबिक देश में डायबिटीज के 10 करोड़ मरीज हैं। हर 4 में से एक भारतीय या तो डायबिटीज या प्री-डायबिटीज, मोटापे से पीड़ित है। पोषण ट्रैकर के आंकड़े के मुताबिक 5 साल से कम उम्र के 43 लाख बच्चे मोटापा या अधिक वजन के शिकार हैं। जो ट्रैक किए कुल बच्चों का 6 प्रतिशत है। विशेषज्ञ इस समस्या के पीछे बड़ी वजह जंक फूड की बढ़ती खपत को मानते हैं।

बीते अगस्त महीने में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की एक स्टडी में बताया कि भारत में अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों की खुदरा बिक्री साल 2011 और 2021 के बीच 13.37 प्रतिशत चक्रवृद्धि दर से बढ़ रही है। जंक फूड सिर्फ अमीर और शहरी वर्ग तक सीमित नहीं है। आक्रामक मार्केटिंग के दम पर इसने ग्रामीण भारत और गरीब वर्ग के बीच अपनी जगह बनाई है।

जर्नल ऑफ़ अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन में प्रकाशित अध्ययन में पाया गया कि अल्ट्रा प्रॉसेस्ड फूड की खपत में 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी से डायबिटीज का खतरा 15 प्रतिशत तक और अकाल मृत्यु का खतरा 14 प्रतिशत बढ़ जाता है। इसके अलावा, अल्ट्रा प्रॉसेस्ड फूड स्ट्रोक, हृदय रोग, डिप्रेशन और कैंसर जैसी बामारियों का कारण बनते हैं।

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