- मां – बाप की लापरवाही से रुक रहा बच्चों का विकास
इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार बच्चों में वर्चुअल ऑटिज्म तेजी से पनप रहा है। यानी मोबाइल, टीवी जैसे ई – गैजेट्स बच्चों के दिमाग को हैक कर उनकी बोलने और सीखने की क्षमता खत्म कर रहे हैं। आंकड़े हैरान करने वाले हैं। रिपोर्ट के मुताबिक 35% से अधिक बच्चों में एकाग्रता की कमी पाई गई । यानी उन्हें बोलने या किसी भी कार्य को करने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक 25 प्रतिशत बच्चों में सोने से पहले मोबाइल देखने की लत पाई गई। ऐसे में यदि आप भी अपने बच्चों को मन बहलाने के लिए मोबाइल या टीवी का सहारा ले रहे हैं तो सावधान हो जाएं। वर्चुअल ऑटिज्म दबे पांव आपके बच्चे को भी अपना शिकार बना सकता है।
क्या है Virtual Autism
वर्चुअल ऑटिज्म एक ऐसी स्थिति है जिसके तहत बच्चे का व्यवहार पूरी तरह बदल जाता है। उसे बोलने और अन्य सामाजिक गतिविधियां करने में परेशानी होने लगती है। एक्सपर्ट्स बताते हैं कि मोबाइल और टीवी बच्चों को मानसिक तौर पर अपना गुलाम बना लेते हैं। बच्चे इन्हें देखकर अपने आसपास के लोगों को भूल जाते हैं। वह वर्चुअल दुनिया को ही सच मान लेते हैं और उसमें ही खोए रहने लगते हैं। खासतौर से कार्टून या एनीमेटेड कहानियां उन पर अधिक असर छोड़ती हैं। बच्चे अजीब तरह का व्यवहार करने लगते हैं। विशेषज्ञ बताते हैं कि बच्चों के ई- गैजेट्स के अधिक प्रयोग से न्यूरो चैनल प्रभावित हो जाते हैं। वह एक ही दिशा में दिमाग का विकास करना शुरू कर देते हैं। इससे बच्चे बाहरी लोगों से आंख मिलाने, बातचीत करने में परेशानी महसूस करते हैं और उनसे कतराने लगते हैं। बच्चे का इंटेलिजेंस लेवल भी इससे कमजोर हो जाता है। ऐसी ही स्थिति को वर्चुअल ऑटिज्म कहा जाता है।
इन लक्षणों को देख हो जाएं सावधान
विशेषज्ञ बताते हैं कि 1 से 3 वर्ष तक के बच्चों में वर्चुअल ऑटिज्म का खतरा सबसे अधिक रहता है। 2 साल तक के बच्चों में यदि बोलने में दिक्कत, शब्दों पर उनकी कमजोर पकड़, सामाजिक तौर पर बच्चों की गतिविधियों में कमी , हर समय मोबाइल पर खेलने, अकेले रहने, परिवार के सदस्यों को न पहचानना, नाम लेने पर भी अनसुना कर देना, एक ही गतिविधि या बात को बार बार दोहराना, अन्य गतिविधियों में कम रुचि रखना जैसे लक्षण दिखने पर सचेत होना जरूरी है। चिकित्सक बताते हैं की वर्चुअल ऑटिज्म से जूझ रहे बच्चों को खाना खाते हुए भी मोबाइल देखने की आदत लग जाती है। अभिभावकों को चाहिए कि एक से 5 साल तक के बच्चों को मोबाइल से दूर रखें।
क्या हो सकता है खतरा
एक्सपर्ट्स बताते हैं कि वर्चुअल ऑटिज्म से जूझ रहे बच्चों में आगे चलकर काफी समस्याएं हो सकती हैं। ऐसे में समय रहते इसका इलाज करवाना जरूरी है। बच्चों का आत्मविश्वास कमजोर हो सकता है। सामाजिक तौर पर पर भी वह कमजोर हो सकते हैं। परिस्थितियों से लड़ने या जूझने की उनकी क्षमता काफी कम हो सकती है। यही नहीं बच्चों के मेंटली डिस्टर्ब होने के साथ-साथ उनकी संवेदना और हारमोंस पर भी इसका विपरीत असर पड़ता है।
कैसे करें बचाव
बच्चों को ई – गैजेट से दूर रखें. उनके साथ क्वालिटी टाइम स्पेंड करें। बच्चों के साथ खाना खाएं। उन्हें अलग-अलग लोगों के साथ मिलने जुलने का अवसर प्रदान करें। बच्चों का शेड्यूल इस तरह से तैयार करें कि वह टीवी और मोबाइल के प्रति कम से कम आकर्षित हो। बच्चों को सेंसरी खिलौने दें। बच्चों को डि- मोटिवेट ना करें। उनकी कमियां और गलतियों को लगातार न गिनाएं । बच्चों से कम से कम नकारात्मक प्रभाव वाली बातें करें। यह सभी बातें बच्चों को परेशान करती हैं और उनके मस्तिष्क को उदासी भरे जोन में ले जाती हैं। जिससे बच्चे अकेले होकर मोबाइल और टीवी के प्रति आकर्षित होने लगते हैं। बच्चों को अधिक से अधिक जॉइंट फैमिली में रखने का प्रयास करें। इससे बच्चा अलग-अलग तरह के लोगों में घुलेगा – मिलेगा। वह बाहरी गतिविधियों के प्रति अधिक आकर्षित होगा। उसका ध्यान मोबाइल आदि से हटकर खेलों में लगेगा। उसका दिमागी विकास बेहतर हो सकेगा।