मेरठ के आईआईएमटी विश्वविद्यालय में LLB छात्रों की गुंडई चरम पर है। इस संकाय के दो गुटों में वर्चस्व की जंग ने अन्य छात्रों का जीना दूभर कर दिया है और विश्वविद्यालय और पुलिस प्रशासन मूक दर्शक बना हुआ है. यूनिवर्सिटी प्रबंधन के इस रवैये से जहाँ छात्रों और अभिवावकों में नाराज़गी बढ़ती जा रही है वहीँ इन बेलगाम छात्र गुटों के नेताओं के हौसले भी बढ़ते जा रहे हैं. वर्चस्व की यह जंग काफी समय से चल रही है. आईआईएमटी विश्वविद्यालय के विधि संकाय के दो गुटों जतिन त्यागी और सचिन यादव में वर्चस्व को लेकर अक्सर जंग जारी रहती है. ऐसी ही एक जंग 24 नवम्बर को यूनिवर्सिटी कैम्पस में घटी जब विधि संकाय के दो गुट आपस में किसी बात पर भिड़ गए और दोनों के बीच जमकर मारपीट हुई है. इसी मारपीट की घटना में बीफार्मा के एक छात्र साहिल रिज़वी को बिना किसी कारण बुरी तरह पीट दिया गया जिससे वो गंभीर रूप से घायल हो गया.
बेक़सूर बनने लगे हैं शिकार
आरोप है कि इन उपद्रवी छात्रों के बीच पहले आपस में संघर्ष हुआ, उसके बाद कुछ उपद्रवी साहिल रिज़वी के पास पहुंचे और उससे उसका नाम पूछा और फिर उसकी पिटाई करने लगे. साहिल ने उन छात्रों को बहुत समझाया कि वो LLB से नहीं बीफार्मा से है, उसने उन्हें अपना आई कार्ड भी दिखाया लेकिन वह नहीं माने। इस मामले में पुलिस में शिकायत दर्ज कराई गयी है जिसमें लोकेश ठाकुर, विनय बालियन, आकाश कुशवाहा, सचिन चौहान, मंजीत मलिक समेत कई अज्ञात पर मारपीट का आरोप लगाया गया । छात्र गुटों में मारपीट की घटना की एक वीडियो भी वायरल हुई है जिसे पुलिस को सौंप दिया गया है. पुलिस अब आगे इसपर कार्रवाई करेगी।
कालेज प्रशासन के मूक समर्थन पर सवाल
लेकिन सवाल यह उठता है जब इसी साल जून के महीने में इन्हीं दोनों छात्र गुटों के बीच खूनी संघर्ष हुआ था तब कोई ठोस कार्रवाई क्यों नहीं हुई. बता दें कि इससे पहले भी जतिन त्यागी और सचिन यादव गुट कई बार आपस में भिड़ चुके हैं। पिछले जून में भी जतिन त्यागी ने सचिन यादव पर हमला करवाया था. तब मामला एक टीचर को लेकर था जिसको जतिन त्यागी यूनिवर्सिटी से निकलवाना चाहता था और सचिन यादव गुट उस टीचर के पक्ष में खड़ा हो गया था. मामला अटेंडेंस को लेकर था. क्लास में अक्सर न आने की वजह से एक शिक्षिका ने उसकी अनुपस्थिति लगा दी थी, अटेंडेंस कम होने के कारण उसपर कार्रवाई की नोटिस आ गयी जिससे भड़ककर जतिन त्यागी ने उस शिक्षिका को कालेज से हटवाने का फैसला किया, इसका पता चलते ही सचिन यादव उस शिक्षिका के समर्थन में खड़ा हो गया. सचिन यादव इस मामले में जतिन त्यागी पर भारी पड़ा जिसका बदला लेने के लिए त्यागी गुट ने उसपर हमला करवाया। उस वक्त भी यूनिवर्सिटी प्रशासन ने मामले को गंभीरता से नहीं लिया था. दोनों गुटों के बीच वर्चस्व की यह जंग अब भी चल रही है, जिसके शिकार अब बेक़सूर छात्र भी बनने लगे हैं. सवाल यही है कि छात्र गुटों की गुंडई का दौर कब तक चलेगा, कब तक कालेज प्रशासन इन्हें मूक समर्थन देता रहेगा।