कोरोना की पहली लहर से मिले अनुभवों को इस बार नहीं किया जा रहा इस्तेमाल
लोगाें की लापरवाही के साथ प्रशासन की नजरअंदाजी से भी बढ़़ रहा कोरोना
अमित बिश्नोई
बुरे वक्त से मिले अनुभव हमें आने वाले समय में हालातों को मुकाबला करने में सक्षम बनाते हैं। पूर्व के अनुभवों के आधार पर हम रणनीति बनाते हैं और हालातों के दुष्प्रभावों को कम करने में कामयाब होते हैं। लेकिन कोरोना की पहली लहर में मिले अनुभवों को हम दूसरी लहर में इस्तेमाल करने में नाकाम हैं और यह कोरोना संक्रमण और मौतों की संख्या बढ़ने का महत्वपूर्ण कारण हैं।
मेरठ में बढ़ते कोरोना संक्रमण के लिये लोगो का मास्क न पहनना, सामाजिक दूरी और कोविड गाइडलाइन का पालन न करने को जिम्मेदार ठहराया जाता है। निःसंदेह, ऐसे लोग कोरोना संक्रमण बढ़ने की वजह हैं भी और इन पर कार्रवाई भी की जानी चाहिये। लेकिन कोरोना संक्रमण बढ़ने का एक कारण यह भी है कि प्रशासन की ओर से वर्ष 2020 में मिले अनुभवों के आधार पर रणनीति बनाकर कार्य नहीं किया जा रहा है। जिसके चलते कोरोना की रफ्तार तेजी से बढ़ी है और इसको थामने की राह तक नहीं दिखाई दे रही है। बिजनेस बाइट्स की खास रिपोर्ट में आपके सामने लायेंगे वर्ष 2020 के कोरोना काल के अनुभवों को जिनका लाभ उठाकर रणनीति बनाना और उनपर कार्य करना बेहद आवश्यक है।
मास्क और सामाजिक दूरी का पालन न करने वालों पर कार्रवाई नही
पिछले साल कोरोना संक्रमण की पहली लहर में पुलिस-प्रशासन ने मास्क न पहनने और सामाजिक दूरी का पालन न करने वालों के खिलाफ सख्त अभियान चलाया था। लापरवाही दिखाने वालों को मौके पर ही सजा देने के साथ उन पर आर्थिक दंड भी लगाया गया। हालांकि पुलिस के रवैये की निंदा भी काफी हुई मगर इस सख्ती ने लोगों को मास्क पहनने और सामाजिक दूरी रखने जैसे नियमों का पालन करने के लिये मजबूर कर दिया। अभियान इस बार भी चल रहा है लेकिन न पहले जैसी सख्ती है और न ही लोगों में डर। कोरेाना संक्रमितों के भयावह होते आंकड़ों और सीएम योगी आदित्यनाथ के आदेशों के बावजूद पुलिस पिछली बार की तरह सख्ती नहीं दिखा रही जिसके कारण संक्रमण बढ़ता जा रहा है। कोरोना को रोकने के लिये मास्क न पहनने और कोविड गाइडलाइन का पालन न करने वाले लोगों के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिये।
संक्रमितों के संपर्क में आने वालों को खोजना हुआ कम
वर्ष 2020 में कोरोना संक्रमित मिलने के बाद उसके संपर्क में आने वाले लोगों की पहचान करने, उनकी कोरोना जांच करने और कोरोना की चेन को रोकने के लिये काफी कार्य किया जाता था। संक्रमित के संपर्क में आने वाले लोगों को फोन कर कोरोना जांच कराने के लिये कहा जाता था। लेकिन इस बार ऐसा करने के प्रयासों में कमी आयी है। अनेक लोगों का कहना है कि संपर्क में आने वालो की बात तो छोड़िये परिवार के लोगों की कोरोना जांच तक नहीं की जा रही। हालांकि कोरोना से भयभीत लोग खुद आगे आकर जांच करा रहे हैं। जाहिर है कि कोरोना मरीज के संपर्क में आने वाले लोग चाहे खुद संक्रमण का शिकार न हों लेकिन वह कोरोना कैरियर बनकर औरों को तो संक्रमित कर ही सकते हैं।
कोरोना वायरस ट्रैकिंग ऐप से मिली थी खासी मदद
कोरोनो की पहली लहर में लोगों को कोरोना वायरस ट्रैकिंग ऐप आरोग्य सेतु डाउनलोड करने के लिये प्रेरित किया जाता था ताकि वह किन-किन लोगों के संपर्क में आये हैं या कोई कोरोना संक्रमित उनके संपर्क में आया है तो उसका पता किया जा सकता था। लेकिन जैसे ही हालात काबू में आये, आरोग्य सेतु ऐप लोगों के मोबाइल से डिलिट हो गया। अब कोरोना की दूसरी लहर में न तो सरकार और न ही प्रशासन की ओर से ऐसा कोई ऐप लांच करने या पुराने ऐप को अपडेट कर लांच करना का प्रयास तक नहीं किया जा रहा है। इससे संक्रमितों के संपर्क में आने वालों को खोजना मुश्किल हो गया है।
कोरोना मरीज मिलने के बाद कंटेेनमेंट जोन बनाने में देरी
कोरोना पाजिटिव मिलने के बाद भी उस एरिया को कंटेनमेंट जोन बनाकर सील करने में लगने वाला समय संक्रमण को बढ़ावा दे रहा है। अनेक मामले ऐसे भी सामने आये हैं जब कोरोना मरीज की मौत होने और उसके परिवार में संक्रमण के लक्षण दिखने के बावजूद काफी समय तक उस एरिया को सील नहीं किया गया। कोविड रिपोर्ट पाॅजिटिव आने के बावजूद लोग सामान्य दिनों की तरह दुकान खोलते और दैनिक कार्य करते दिखे। ऐसे में संक्रमण का प्रसार होने से रोकना तो लगभग नामुमकिन है। कोरोना मरीज मिलने के बाद उस एरिया को तुरंत कंटेनमेंट जोन बनाकर सील करना बेहद जरूरी है ताकि कोरोना के प्रयास को जल्द से जल्द रोका जा सके।
कोरोना जांच रिपोर्ट में देरी से मरीज की जान को खतरा
कोरोना के लक्षण दिखने के बाद मरीज की जांच करना अनिवार्य है। मगर जांच रिपोर्ट पाॅजिटिव आने तक कोविड हाॅस्पिटल किसी मरीज को भर्ती नहीं करते। वहीं सामान्य हाॅस्पिटल भी बिना कोविड नेगेटिव रिपोर्ट लाये किसी भी प्रकार का उपचार करने से इंकार कर देते हैं। ऐसे में कोरोना संक्रमित होने के बाद कोरोना जांच रिपोर्ट आने तक का समय कोविड मरीज की जान के लिये खतरा बन जाता है। ऐसे भी मामले देखने को मिले हैं जब मरीज की मौत हो जाने के बाद उसकी कोविड रिपोर्ट सामने आयी। कोरोना से होने वाली मौतों को थामना है तो मरीज की हालात देखते हुए कोविड रिपोर्ट आने से पहले ही उसको उपचार देना शुरू किया जाना चाहिये। ताकि समय रहते मिले इलाज से उसकी उखड़ती सांसों को थामा जा सके।
बाहर से आने वालों की जांच नहीं
कोरेाना की दूसरी लहर का प्रसार तेज होते ही कोरोना प्रभावित राज्यों या शहरों से लोगों ने वापस लौटना शुरू कर दिया है। पिछली बार बाहर से आने वाले लोगों की जांच करने के साथ उन्हें क्वारंटाइन में रहने का नियम लागू किया गया था। मगर इस साल कोरोेना के भयावह रूप लेने के बावजूद बस अड्डों या रेलवे स्टेशनों पर लोगों की कोरोना जांच या तो की नहीं जा रही या चंद घंटों की खानापूर्ति और चंद जांचों के बाद कर्तव्य की इतिश्री की जा रही है। बाहर से आने वाले लोगों को क्वारंटाइन में रहने या उन पर निगरानी करने का कार्य भी इस बार प्रमुखता से नहीं किया जा रहा। जबकि पिछली बार यह सब करके कोरोना के प्रसार को थामने में कामयाबी पाई गयी थी।
अगर वर्ष 2020 में कोरोना संक्रमण की पहली लहर से मिले अनुभवों का लाभ उठाया जाये और उसके मुताबिक रणनीति बनायी जाये तो निश्चित ही कोरोना की रफ्तार को रोका जा सकेगा। सिर्फ लोगों की लापरवाही को जिम्मेदार ठहराने की बजाये पिछली बार की तरह सार्थक प्रयास करना आवश्यक है।