अमित बिश्नोई
केंद्र की मोदी सरकार ने कल अपने नए कार्यकाल का नया बजट पेश किया जिसमें कई बड़ी बड़ी घोषणाएं की गयीं, टैक्स पेयर्स को कुछ रियायतें दी गयीं। इस बजट को लेकर सरकार अपनी पीठ थपथपा रही है, वहीँ विपक्ष इसे सरकार बचाऊ बजट बता रहा है जो इस बजट में दिख भी रहा है. लेकिन कहा जा रहा है कि इस बजट से मोदी सरकार का राजनीतिक हिसाब किताब सुधरने के बजाय बिगड़ता नज़र आ रहा. हालाँकि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस बजट में सरकार को बनाने और बचाने में महत्वपूर्ण सहयोगी प्रदेशों आंध्रा और बिहार के लिए ख़ज़ाने का मुंह खोल दिया है और चंद्रबाबू नायुडु और नितीश कुमार को साधने की कोशिश की है मगर इस कोशिश में देश के दूसरे राज्यों के साथ नाइंसाफी हुई है. इस नाइंसाफी का शिकार गैर भाजपा शासित राज्य तो हैं ही, भाजपा शासित राज्य भी हैं जिन्हें कहीं न कहीं आंध्रा और बिहार पर सरकार की विशेष अनुकम्पा का भुगतान भुगतना पड़ा है.
दरअसल सरकार बनने के बाद मंत्रिमंडल में जिस तरह आंध्रा और बिहार के सहयोगियों तेदेपा और जेडीयू के साथ बर्ताव किया गया. सरकार की बैसाखी बने दोनों दलों को मंत्रिमंडल में जिस तरह उपेक्षित किया गया और दोनों ही पार्टियों को नाम मात्र प्रतिनिधित्व दिया गया और गैर ज़रूरी मंत्रालय दिए गए, उसके बाद हर तरफ से यही सवाल उठ रहा था कि आखिर चंद्रबाबू नायुडु और नितीश कुमार सरेंडर की हालत में क्यों हैं? भाजपा और मोदी-शाह की जोड़ी का शिकार बन चुके नायुडु और नितीश आखिर इतना अपमान क्यों सह रहे हैं, इस समर्थन के बदले उन्हें क्या मिला या फिर उनके प्रदेश को क्या मिला? फिर जिस तरह बजट पेश होने से पहले जब सरकार ने दोनों ही राज्यों को विशेष दर्जा देने से साफ़ इंकार कर दिया विशेषकर बिहार को लेकर जब कहा गया कि इसका तो सवाल ही नहीं उठता तब एकबार सुगबुगाहट उठी कि बजट वाले दिन कुछ हो सकता है.
लेकिन बजट में मोदी सरकार जिस तरह आंध्रा प्रदेश और बिहार पर मेहरबान हुई उसने ये बात तो साबित कर दी कि भले ही ऊपर से सरकार अपने आप को चाहे जितना मज़बूत दिखाए लेकिन कहीं न कहीं चंद्रबाबू नायुडु और नितीश कुमार का दबाव तो सरकार पर है और ये इस बजट में साफ़ नज़र आता है। निर्मला सीतारमण ने बिहार के लिए 58,900 करोड़ रुपए और आंध्र प्रदेश के लिए 15,000 करोड़ देने का ऐलान कर सरकार के सबसे मज़बूत सहयोगियों को खुश करने की कोशिश और ये बताने कि कोशिश की बाहर तेदेपा और जेडीयू को लेकर जो भी बातें चल रही हैं वो सब बकवास हैं, दोनों ही दलों का सरकार के साथ पूरा तालमेल है और सरकार भी अपने सहयोगियों का भरपूर ख्याल रखती है लेकिन इसी ख्याल रखने की कोशिश में देश के अन्य राज्यों को बजट में जो उनका हक़ मिलना चाहिए नहीं मिला और अब विपक्ष इसे एक बड़ा मुद्दा बना रहा है जिसकी झलक आज संसद भवन के बाहर और अंदर दोनों जगह देखने को मिली।
विपक्ष ने आज बजट में गैर भाजपा शासित राज्यों के साथ हुई नाइंसाफी पर जिस तरह हल्ला बोला एकजुटता दिखाई उससे साफ़ लग रहा है कि सरकार को आगे समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। उधर आज राजधानी के जंतर मंतर पर धरने पर बैठे आंध्रा प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी को समर्थन देने जिस तरह सपा प्रमुख अखिलेश यादव और शिवसेना यूबीटी की नेता प्रियंका चतुर्वेदी पहुंचीं उससे विपक्ष का एक नया कॉम्बिनेशन भी बनता नज़र आ रहा है. अगर इसमें कोई प्रोग्रेस होती है तो यकीनन आने वाले समय में मोदी सरकार के लिए एक और खतरा बन सकता है क्योंकि इससे पहले ये कहा जा रहा था कि भले आंध्रा में भाजपा का तेदेपा से गठबंधन है लेकिन सरकार को अगर किसी मौके पर ज़रुरत पड़ी तो YSR कांग्रेस के चार सांसद मोदी सरकार की ही मदद करेंगे, लेकिन अब इसकी गारंटी नहीं ली जा सकती। उधर आज राहुल गाँधी ने बजट चर्चा में भाग लेने के बजाए किसान नेताओं से मुलाकात कर सरकार को ये सन्देश दिया कि वो किसानों के मुद्दे पर संसद में सरकार को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।
उधर कैपिटल गेन्स पर शेयर बाज़ार भी मोदी सरकार से रूठा हुआ है, कल भी उसने गोता लगाया था हालाँकि बाद में संभल गया था और आज भी अच्छी खासी गिरावट में बंद हुआ है. शेयर बाजार के निवेशकों की नाराज़गी दूर करने के लिए सरकार ने अपने सचिवों को आगे किया है कि वो लोगों को समझाएं कि विकसित भारत बनाने के लिए टैक्स बढ़ाना बहुत ज़रूरी है हालाँकि विपक्ष के नज़दीकी अर्थशास्त्री बजट की खामियों को एक एक करके बाहर निकाल रहे हैं। कुल मिलाकर विपक्ष का ये आरोप कि ये सरकार बचाने वाला बजट है जिसमें जनता से ज़्यादा सरकार की स्थिरता पर ध्यान रखा गया है सही लगता है और इस बात को भी बल मिलता है कि सरकार पर तेदेपा और जेडीयू का दबाव तो है.