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क्योंकि महाराष्ट्र की सियासत अलग है!

आर्टिकल/इंटरव्यूक्योंकि महाराष्ट्र की सियासत अलग है!

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अमित बिश्नोई

मराठा आरक्षण को महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव की शुरुआत में एक बड़ा मुद्दा माना जा रहा था लेकिन अब जबकि चुनाव प्रचार अपने चरम पर है दो नारे ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ और उसका दूसरा और थोड़ा सभ्य रूप “एक हैं तो सेफ हैं’ चुनावी मुद्दा बने हुए है. बंटने और कटने वाला नारा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के क्रेडिट से है जबकि उसका सॉफ्ट रूप “एक हैं तो सुरक्षित हैं” प्रधानमंत्री मोदी के सौजन्य से है. सत्ता बरकरार रखने की कोशिश में जुटी महायुति ने अखबारों के पहले पन्ने पर ‘एक हैं तो सेफ हैं’ का विज्ञापन भी दे दिया है, विज्ञापन तो बंटने और कटने वाले का भी दिया जाना था लेकिन महायुति में ही इस नारे का विरोध हो रहा है, यहाँ तक भाजपा के लोग भी कह रहे हैं कि महाराष्ट्र में इस नारे की कोई ज़रुरत नहीं। अजीब बात है, इस नारे का विरोध करते हुए भी एकनाथ शिंदे हो, अजीत पवार हों या महाराष्ट्र बीजेपी के कुछ नेता वो योगी जी के इस नारे का समर्थन भी कर रहे हैं. उनकी बातों से पता चलता है कि इस नारे से उन्हें नुक्सान हो सकता है, शायद उनका अल्पसंख्यक वोटर भड़क सकता है इसलिए इस नारे का उपयोग महाराष्ट्र को छोड़ अन्य राज्यों में सही है, मतलब सुविधा वाली राजनीति। एक बात जो महाराष्ट्र में गलत है वो दूसरे राज्यों में सही है. क्या बात है, यही तो भगवा पार्टी की पहचान है.

यही वजह है कि इस नारे को थोड़ा सॉफ्ट करके और उसमें एकता और सुरक्षा का रंग डालकर प्रधानमंत्री जी ने नया नारा दिया और उसी नारे के विज्ञापन भी जारी किये गए जिसमें सभी सहयोगी दलों की मौजूदगी भी नज़र आ रही है. मतलब इस नारे को महायुति का पूरा समर्थन है, वैसे भी प्रधानमंत्री मोदी की बात काटने की हिम्मत महायुति की दोनों सहयोगियों में से कोई एक भी कर सकता है क्या?. बहरहाल विज्ञापनों में भले ही योगी जी के बंटने और कटने वाले नारे को जगह न मिली हो लेकिन चर्चा में वो मोदी जी के नारे से भी आगे है और बहस का विषय भी बना हुआ है. इन नारों के अपने अपने तरह से मतलब निकाले जा रहे हैं, विपक्ष इन नारों को जहाँ साम्प्रदायिक ध्रूवीकरण का नाम दे रहा है वहीँ राजनीतिक पंडितों का मानना है कि मराठा और ओबीसी समुदायों को एक मंच पर लाकर नया वोट गणित गढ़ने के लिए ये नारे दिए गए हैं. दरअसल पिछले कुछ सालों से मराठा आरक्षण आंदोलन ज़ोर पकड़ गया है, उधर राहुल गाँधी ने जातिगत जनगणना और सामाजिक बराबरी का अभियान चलाकर OBC समुदाय में भी एक चेतना जगा दी है ऐसे में मराठा आरक्षण आंदोलन एक तल्ख़ चुनावी मुद्दा बन गया है, मराठा और OBC आमने सामने खड़े हैं और महाविकास अघाड़ी और महायुति दोनों के लिए ये बड़े टेंशन की बात है.

महाराष्ट्र की राजनीती में मराठा समुदाय का हमेशा दबदबा रहा है, अविभाजित शिवसेना की पूरी राजनीति ही मराठा अस्मिता पर रही है और आज भी है, कम से कम शिवसेना यूबीटी अब भी उसी पर कायम है, शिवसेना शिंदे ने ज़रूर समझौता किया है जो उसकी मजबूरी है. पिछले विधानसभा चुनाव रहे हों या फिर इसी साल हुए लोकसभा चुनाव की बात हो, विधायकों और सांसदों की संख्या अगर देखेंगे तो पाएंगे कि लगभग 50 प्रतिशत भागीदारी मराठा समुदाय की रही है. OBC वर्ग भी एक बड़ा वोट बैंक है, लगभग 52 प्रतिशत भागीदारी महाराष्ट्र में है, इसके बावजूद सत्ता में भागीदारी कम है, वहीँ 28 प्रतिशत की भागीदारी होते हुए भी सत्ता में मराठा समुदाय की भागीदारी 50 प्रतिशत की है. यानि मराठा और OBC को मिलाने पर ये भागीदारी 80 प्रतिशत की हो जाती है, सीटों की बात करें तो 288 सीटों वाली विधानसभा में 116 सीटों पर मराठा निर्णायक रूप में है, ऐसे में कोई भी दल बिना मराठा के आगे बढ़ ही नहीं सकता। मराठा समुदाय की बात करें तो पहले इस समुदाय पर अपने वर्चस्व के लिए अविभाजित शिवसेना और अविभाजित एनसीपी में मारकाट होती आयी है लेकिन ये पहली बार होगा जब मराठा राजनीति करने वाले ठाकरे परिवार और शरद पवार दोनों एक ही गठबंधन में नज़र आएंगे। ऐसे में तो देखा जाय तो मराठा राजनीति पर MVA भारी पड़ती नज़र आ रही है, उधर कांग्रेस पार्टी नए राहुल गाँधी की मदद से OBC को अपनी तरफ खींचने में कामयाब होती दिख रही है, लोकसभा के नतीजे इसका सबूत हैं.

ऐसे में महायुति के लिए समस्या तो बड़ी है लेकिन प्रधानमंत्री मोदी इसकी काट खोजने में लगे हुए हैं. उनके चुनावी भाषणों में OBC वर्ग पर ख़ास फोकस रहता है, मराठा पर उन्होंने ज़िम्मेदारी राज्य के नेताओं और सहयोगी दलों को दे रखी है, उधर मनोज जरांगे मराठा आरक्षण आंदोलन को धार देते हुए नज़र आ रहे हैं, पहले तो चुनावी राजनीती में जा रहे थे लेकिन बाद में अपने कदम खींच लिए. जरांगे ने मराठा समाज के लिए कुनबी सर्टिफिकेट की मांग उठाकर दोनों समुदायों के बीच की दूरी और बढ़ा दी है और इस आग को और हवा दे दी है, प्रधानमंत्री मोदी ने इस आग पर रोटी सेंकने के लिए सीधे तौर पर खुद सामने न आकर दूसरों को इस आपदा में अवसर खोजने के लिए लगा रखा है. फिलहाल तो प्रधानमंत्री हरियाणा विधानसभा के सफल फॉर्मूले को ही महाराष्ट्र में लागू करने में लगे हुए, योगी जी इसमें अपने अंदाज़ में उनकी भरपूर मदद करने में लगे हुए. दोनों एक ही बात कह रहे हैं लेकिन थोड़ा अलग अंदाज़ और अलग रंग में क्योंकि महाराष्ट्र की सियासत भी अलग है.

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