- नवेद शिकोह
देश के हर माफिया की कहानी कलंक की रोशनाई से लिखी जानी चाहिए, पर दुर्भाग्य कि कलमकार और पत्रकार आपना स्वार्थ साधने के लिए खलनायकों और उनकी कहानियों को रोचक और दिलचस्प बना देते है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा और अमरीका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की यात्राओं को भारतीय टीवी मीडिया में खूब जगह मिलना लाज़मी थी। पर पंजाब के रोपड़ जेल से यूपी के बांदा जेल तक की माफिया मुख्तार अंसारी की यात्रा को भी टीवी चैनल्स ने इससे कम जगह नहीं दी ये आश्चर्य का विषय है।
सियासी आक़ाओं की गर्दिश के अंधेरों में गुम मुख्तार असारी को अंजाने मे ही सही पर चर्चा की रोशनी मिल गई। ये सूबे का चर्चित माफिया है। दूसरे राज्य के जेल से अपने राज्य (यूपी) के बांदा जेल में ये लाया जा रहा है। ये खबर तो है लेकिन इतनी बड़ी खबर नहीं कि कोरोना से खबरदार करने वाली खबरें दब जाएं। जबकि आम इंसान के लिए कोरोना की भयावह स्थिति और उससे बचाव के उपाय से जुड़ी खबरें ज्यादा अहम हैं।
दरअसल कोई अकेले दम पर माफिया नहीं बनता। सियासत, सरकारें, नौकरशाही, मीडिया, समाज, धर्म-जाति, लिंग, क्षेत्र..का वाद किसी गुंडे को माफिया बनाने में अलग-अलग रंगों की ताकत देते हैं।
शायद ही कोई ऐसा सियासी दल ना हो जिसने किसी माफिया को दामाद की तरह मान-सम्मान, इज्जत, ताकत, संरक्षण और चुनावी टिकट ना दिया हो। इस दल के अपने-अपने मुख्तार हैं, अपने अपने माफिया हैं। जिसके बाहुल्यबल को कभी-कभी कानून से ऊपर दर्जा देने में सियासत और हुकुमत को शर्म नहीं आती।
हमारी हुकुमत होती है तो हम अपने वाले माफिया के सात खून माफ कर देते हैं और हमारा माफिया हमारी हुकुमत में कानून की आंखों में धूल झोंकता है। और तुम्हारे वाले माफिया को उसकी औक़ात दिखा जाते हैं। क्योंकि तुम भी तो अपनी हुकुमत में हमारे वाले माफिया के साथ ऐसा करके हमें नीचा दिखाते थे।
क्रिकेट के खेल में दो टीमों की बोलिंग और बैटिंग की तरह इस सियासी खेल में मुख्य लक्ष्य दर्शक दीर्घा होती है।
मुंबई के तमाम माफिया डॉन से लेकर यूपी खासकर पूर्वांचल के माफियाओं की आतंकित, कलंकित और अमानवीय कहानियां ऐसे ही रोचक और दिलचस्प नहीं बन गई। सफेदपोश सियासी ताकतों ने मीडिया के जरिए इन कहानियों में रोचकता, ग्लेमर और झूठी शौर्यता के रंग भरे हैं। सियासतदानों के आपसी तालमेल ने इन्हें धर्म,जाति और क्षेत्रों का नायक बनाकर एक दूसरे के हिस्से में बांटा है। इन्हें बाहुबली जैसे ख़िताबों से नवाज़ा है।
यूपी के इतिहास-वर्तमान का कलंक बने मुख्तार अंसारी, अतीक अहमद, बृजेश सिंह,धनंजय सिंह, बब्लू श्रीवास्तव, हरिशंकर तिवारी.. जैसों को उनके धर्म-जाति के समाज में बतौर हीरो प्रोजेक्ट करने की प्लानिंग पर काम हुआ है ताकि इनके बाहुबल के जरिए ना सिर्फ धन उगाही, बूथ मैनेजमेंट और डराने धमकाने की कार्यकुशलता का लाभ लिया जाये बल्कि उनकी झूठी शौर्यता का बखान करके उन्हें उनकी धर्म-जाति में हीरो बनाकर पेश किया जाए। ताकि ये अपने धर्म-जाति के वोट पार्टी की झोली में डाल सकें।
जबकि सच ये है कि किसी भी क्षेत्र, धर्म-जाति का माफिया अपने क्षेत्र और धर्म-जाति का कलंक होता है। वो अपनी धर्म-जाति के निर्दोष लोगों पर ज्यादा जुल्म ढाता है। इस बात को नहीं नकारा जा सकता कि माफिया मुख्तार अंसारी के राइट हैंड, शूटर और गैंग के सदस्य नब्बे प्रतिशत गैर मुस्लिम हैं और इसी तरह बृजेश सिंह और बृजेश सिंह जैसे माफियाओं पर दाऊद का साथ देने का आरोप है।