साहब, देश आपका, सरकार आपकी और किसान भी आपके ही हैं
अमित बिश्नोई
जी हां साहब, मैं किसान हूं। जय जवान जय किसान के देश वाला किसान, उजाड़ जंगल को हरियाला बनाने वाला किसान। वो किसान जिसे आपने गांव के रास्तों पर कंधे पर हल रखकर चलते देखा है। वो किसान जो सर्दी-गर्मी और बरसात में भी खेतों में काम करता दिखता है। वो किसान जो सर्द, कोहरे वाली रातों में अपनी फसलों को बचाने के लिये आग तापते हुए खेतों मेें रात गुजारता है। मैं वो किसान हूं जो कर्ज लेकर फसल उगाता हूं और फसल में घाटा हो जाने पर साहूकार के यहां कर्ज के लिये गुहार लगाता हूं।
मैं वो किसान हूं जो सारे साल कड़ी मेहनत कर के भी बैंक का कर्जा नहीं चुका पाता और बैंक वालों के ताने सुनकर शर्म के मारे आत्महत्या कर लेता हूं। पहचान लिजिये साहब, बदन पर फटे कपड़े, पैरों में पड़ी बिवाईयां लेकर मदद पाने को सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटता दिखता हूूं। मैं वही किसान हूं जिसके खेत की कभी बिजली कट जाती है तो कभी सरकारी कारिंदा बैंक का नोटिस लेकर सामने आ खड़ा होता तो कभी मेरा खेत विकास की भेंट चढ़ जाता है औैर मैं किसान सबके सामने हाथ जोड़कर गुहार लगाता दिखता हूं। जी साहब, मैं वहीं किसान हूं जिसे चुनाव के दौरान हर पार्टी, हर नेता धरती का भगवान बताता है। वही किसान जो चुनाव में नेताओं का अपना, घर का बड़ा-बुजुर्ग देश के विकास में योगदान देने वाला कहा जाता हूं।
जी हां साहब, मैं वही किसान हूं जो नेताओं की कृषि कानूनों को जबरन लागू करने की जिद के कारण आज धरती पर बैठा हूं। और अपने ही देश की धरती पर बैठा हूं तब भी साहब को लगता है कि बहुत बड़ा जुर्म कर रहा हूं। कभी मुझे धरती का भगवान कहते थे मगर वही साहब आज मुझ को खालिस्तानी, आतंकवादी, माओवादी और पाकिस्तानी तक साबित करने में जुटे हैं। साहब और उनके प्यादों को आज काजू-बादाम खाता हुआ, मालिश कराता हुुआ किसान तो दिख रहा है मगर घने कोहरे के बीच सर्द रातें टेंट के नीचे ठंड से ठिठुरते हुए रातें गुजारता किसान नहीं दिखता। सर्दियों की बारिश को सहता किसान साहब की आखोें से दूर है। किसान आंदोलन में जो 121 किसान भाई शहीद हो गये वह भी सरकार को नहीं दिखते। अब दिखते नहीं या साहब देखना नहीं चाहते यह तो वही जाने मगर हम इतना जानते हैं कि हम साहब को देखना और समझना चाहते हैं।
साहेब को देखना इसलिये चाहते हैं कि चुनाव के दौरान तो वह अक्सर हमसे मिलते थे, हमें गले लगाते थे, हमारे सुख-दुख का साथी बनने का दावा करते थे। मगर आज जब हम किसान खुद दूर-दूर से चलकर उनसे मिलने आये हैं तो साहेब हमें छोड़ कर दूर चले जा रहे हैं। आखिर तब के किसान और आज के किसान में फर्क क्या है। क्या यह कि उस वक्त किसान वोट दे सकता था, सत्ता दिला सकता था इसलिये अपना था। और आज किसान कुछ मांग रहा है या कहें आप जबरन जो देना चाहते हैं उसे लेने से इंकार कर रहा है तो वह साहेब को दुश्मन दिखाई दे रहा है।
और साहेब को समझना इसलिये चाहते हैं कि आखिर ऐसा क्यों है कि जो कानून आपने किसानों के हक में बनाये हैं वह कानून किसानों को समझ क्यों नहीं आ रहे। हो सकता है कि किसान समझदार न हों लेकिन साहेब आपकी सरकार है, आपके अधिकारी हैं, क्या कानून लागू करने से पहले नहीं समझा सकते थे कि उससे हमारा क्या हित होगा। साहेब, आप सही हो सकते हैं लेकिन गलत तो हम भी नहीं हैं। जिस धरती को बच्चों की तरह पाला-पोसा, बारह मास उसकी रक्षा की अगर उसी धरती के छिनने का डर हमें सता रहा है तो क्या यह हमारा जुर्म है। साहेब, आप किसान की तरक्की होने की बात कह रहे हैं तो कानून क्यों नहीं बना देते ताकि हमें कम दामों पर फसल न बेचनी पड़े। साहेब, ऐसा क्यों हैं कि आपके बनाये कानून आपको और आपके प्यादों को ही समझ में आ रहे हैं लेकिन जिन किसानों के लिये कानून बनाया है वहीं इसे समझ नहीं पा रहे। साहेब, अगर हमारे समझने में कमी है तो आपके समझाने में भी कमी जरूर है।
और साहेब, मैं तो किसान हूं, बैठा हूं अपनी बात को कहने के लिये। यदि आपको लगता है कि किसान ऐश काट रहा है तो साहेब भेज दीजिये अपने किसी प्यादे को हमारे पास। चार दिन हमारे पास रहे, काजू-बादाम खाये, पिज्जा-हलवा खाये और गुड़ के साथ दूध पिये। और चार दिन सर्द रातें हमारे साथ गुजारने के बाद कहके दिखाये कि किसान मौज मना रहे हैं। अरे साहब, मैं तो किसान हूं, प्याज से रोटी खाकर, गुड़ के साथ मट्ठा पीकर भी मौज लेता हूँ । मगर साहब मेरी मेहनत से आप आज हवाई जहाज में घुमते हैं, फाइव स्टार होटल में खाना खाते हैं, लंबी गाड़ियों में सफर करते हैं। तो साहेब किजिये सब काम, विकास को दिखाईये हरी झंडी, देश को नाम दुनिया में रोशन करिये मगर थोड़ा ध्यान हम पर भी दीजिये। 53 दिन हो गये आपके दर पर बैठे हुए और आपकी सरकार अब भी यही कह रही है कि कानून वापस नहीं होगा। अरे साहब, देश आपका है, सरकार आपकी है और हम किसान भी आपके हैं। आखिर ऐसी जल्दी क्यों है आपको। थोड़ा रूक जाईये, थोड़ा हमें समझाईये और थोड़ा खुद भी समझिये फिर कर दीजियेगा कानूनों का लागू। साहब, हमे दुश्मन की निगाह से न देखिये, एक बार हमारे दर्द को भी समझिये। हमने तो हमेशा ही आपका साथ दिया है तो एक बार हमारी बात भी मान कर देख लिजिये।
न अड़िये जिद पर क्योंकि चार दिन बाद आप भी हमारे दर पर खड़े होेंगे। और साहेब आपकी तरह हम भी मुंह मोड कर खडे़ हो गये तो आप भी सत्ता सुख न भोग पायेंगे। तो साहेब, छोड़ दीजिये जिद को, इस जिद से हमारा भी नुकसान हो रहा है। हमें भी घर-परिवार की याद आती है साहब, अपनी खेती की चिंता में रातों को नींद भी नहीं आती। साहेब मान भी लिजिये हमारी बात, यकीं मानिये हम आपकी भी जय-जयकार करेंगे। बस जबरन का अहसान न किजिये, और जो दे रहे हैं उसे देने से पहले समझा दीजिये। क्योंकि साहेब, मैं सीधा-साधा किसान हूं,, फिर याद दिलाता हूं जय जवान-जय किसान वाले देश का किसान, आपके अपने देश का किसान।