साफ्टवेयर इंजीनियर से राजनेता बने अजित चौधरी का राजनीतिक अंदाज बहुत ही निराला था। आज वे इस दुनियां में नहीं हैं। लेकिन उनकी आज पुण्यतिथि पर किसान और उनके नजदीक से जानने वाले याद कर रहे हैं। किसानों से दिली लगाव और उनके लिए कुछ करने की इच्छा ही आईबीएम जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनी के सॉफ्टवेयर इंजीनियर अपने देश ले आई। एक नहीं अनेक बार अजित सिंह ने अपने राजनीतिक हितों की परवाह नहीं की। अजित सिंह जब तक जिये किसानों के लिए चौधरियों के चौधरी बनकर रहे।
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कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर में वे इस महामारी की चपेट में आए और आज ही के दिन यानी 6 मई 2021 को देश और दुनियां को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया। आज अजित चौधरी की पहली पुण्यतिथि है। पिछले चार दशक की अजित सिंह की राजनैतिक यात्रा काफी उतार चढाव वाली रही। पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के बेटे अजित चौधरी का जन्म मेरठ के ही भडोला गांव में 12 फरवरी 1939 को हुआ था। अजित सिंह की अधिकांश पढ़ाई मेरठ से बाहर ही हुई। आधुनिक प्रौद्योगिकी की पढ़ाई के बाद भी अजित चौधरी के मन में अपने पिता की तरह ही किसानों की दशा में सुधार करने और उनके लिए कुछ नया करने की चाहत थी। अजीत चौधरी के तीन बच्चों में एक बेटा जयंत सिंह चौधरी इस समय अपने पिता की तरह राजनीति में सक्रिय होकर उनकी विरासत संभाल रहे हैं। दो बेटियां निधि सिंह, दीपा सिंह हैं।
1980 में रखा था राजनैतिक कदम :
1980 के राजनीतिक स्थिरता का वो दौर जिसमें चौधरी चरण सिंह प्रधानमंत्री का कार्यकाल पूरा कर चुके और प्रभाव फीका पड़ गया था। राजनैतिक हालात देखकर चौधरी चरण सिंह नहीं चाहते थे कि उनका इंजीनियर बेटा राजनीति में आए। लेकिन इसके बावजूद भी अजित चौधरी राजनीति में आए। उन्होंने अपने पिता के बनाए दल लोकदल को 1980 में पुनर्जीवित किया। पिता चौधरी चरण सिंह की मृत्यु के बाद चौधरी अजित सिंह ने राजनीतिक राह अपना ली।
1987 में उन्होंने अपनी नई पार्टी राष्ट्रीय लोकदल बनाई। अजित चौधरी ने राष्ट्रीय लोकदल पार्टी के साथ किसानों के लिए लंबा संघर्ष किया। वो फरवरी 1995 से मई 1996 तक प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की सरकार में केन्द्रीय खाद्य प्रसंस्कृरण एवं उद्योग मंत्री बने। प्रधानमंत्री अटल की भाजपा सरकार में अजित चौधरी केंद्रीय कृषि मंत्री बने।
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वर्ष 1989 में उद्योग मंत्री बने तेा किसानों के लिए बड़ा काम किया। उन्होंने चीनी मिल की 25 किमी की परिधि को घटाकर 15 किमी कर दिया। इसी के साथ ही देश में करीब 40 नई चीनी मिलों को लगवाया। शुगर कॉम्पलैक्स के लाइसेंस भी बांटे गन्ने फसल का बेसिक कोटा 450 किवंटल प्रति हेक्टेयर से बढ़कर 880 क्विंटल प्रति हेक्टेयर कर दिया। पिछले साल अजित चौधरी के एक फोन से किसान आंदोलन ने एक नया मोड़ ले लिया था।
जब भाकियू नेता राकेश टिकैट पर हमले के बाद वो रो रहे थे। उनके इस फोन से पश्चिम उत्तर प्रदेश के किसानों में जोश भर गया और उन्होंने दिल्ली की ओर कूच कर दिया। जिसको देश का किसान कभी नहीं भूल सकता। आज अजित चौधरी किसानों के बीच नहीं हैं। लेकिन किसान उनकी कमी को जरूर महसूस कर रहा है।