अमित बिश्नोई
पाकिस्तान फाइनल में क्या पहुंची, हर तरफ 92 का शोर होने लगा, जिसको देखो 1992 की बातें लेकिन इस शोर के बीच इंग्लैंड की टीम ने अपने सफर को 2022 की सबसे शानदार जीत पर ख़त्म किया। बता दिया कि क्रिकेट सिर्फ बातों से नहीं खेली जाती, साबित करना पड़ता है कि आप चैम्पियन टीम हैं. वह खेल भी दिखाना पड़ता है जो एक चैम्पियन टीम के खिलाडी खेलते हैं. इंग्लैंड की टीम ने अपने खेल से साबित किया कि आज आप क्या हो यह बड़ी बात है, 1992 में आप क्या थे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। साबित कर दिया कि आज में जीने वाला चैम्पियन बनता है न कि अतीत की यादों में रहने वाला। इंग्लैंड ने यह भी साबित कर दिया कि संयोग हमेशा आपका साथ नहीं देंगे, किस्मत हमेशा आप पर मेहरबान नहीं होगी। आप कब तक किस्मत का बहाना बनाते रहेंगे. कुछ पाना है तो कुछ करना होगा। इंग्लैंड ने किया और उन्हें उसका फल भी मिला.
बड़ा अजीब सा लगता था जब तीस साल पुरानी बातों को खोदा जा रहा था, ढूंढ ढूंढकर समानताएं ढूंढी जा रही थी. यहाँ तक कि पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड के चेयरमैन रमीज़ राजा जो इत्तेफ़ाक़ से 1992 की टीम का हिस्सा भी थे और जिनका उस मैच में सिर्फ इतना योगदान था कि उन्होंने एक आसान सा कैच पकड़ा था, टीम के होटल भी पहुँच गए, प्रैक्टिस सेशन में भी पहुँच गए, और वहां जाकर उन्होंने भी वही सब घिसी पिटी बातें दोहराई, 1992 में यह हुआ था वह हुआ था, इमरान खान ने यह कहा था वो कहा था, 1992 और 2022 में 30 साल का गैप है, पाकिस्तान के ज़्यादातर खिलाडी तो पैदा भी नहीं हुए होंगे तब. उस ज़माने में क्या क्रिकेट थी और आज के ज़माने में क्या क्रिकेट होती। कोई समानता नहीं तब और आज की क्रिकेट में. हमें तो लगता है कि बाबर की टीम पर ज़बरदस्ती इमरान खान की टीम का दबाव डाल दिया गया. वैसे भी miracle उसे ही कहते है जो जीवन में एकबार हों. बार बार नहीं होते, बार बार अगर हुए तो फिर miracle काहे का. खैर अच्छा हुआ जो 1992 का चैप्टर बंद हुआ, उम्मीद है पाकिस्तान की टीम अब आगे किसी ICC मुकाबले में इसकी चर्चा नहीं करेगी।
इंग्लैंड की टीम की बात करें तो उन्होंने बताया कि सफेद बॉल की क्रिकेट क्या होती है. उसने बाकी टीमों को दिखा दिया है कि फटाफट क्रिकेट एक कला है जिसे सीखे बिना विश्व कप के लिए आपको तरसना ही पड़ेगा। भारत हो या पाकिस्तान या फिर श्रीलंका सब चैम्पियन बने मगर दोबारा चैम्पियन बनने को अब तरस रहे हैं, वहीँ मात्र सात सालों में अपने खेल और अपनी सोच में बदलाव कर इंग्लैंड सफ़ेद बाल क्रिकेट में कामयाबियां हासिल करता जा रहा है. उसने अपने पारम्परिक खेल को तिलांजलि दी, उन खिलाडियों पर भरोसा किया जो उस क्रिकेट की डिमांड पर खरे उतरते, कई बड़े खिलाडियों से दूरी बनाई, यहाँ तक कि कोचिंग स्टाफ को भी अलग कर दिया, बताया कि इस नए ज़माने की क्रिकेट को नई सोच के साथ खेलना होगा। कुछ उतार चढाव आएंगे मगर कामयाबी मिलने की सम्भावना भी ज़्यादा होगी। और अब वही हो रहा है, इंग्लैंड ने इयान मॉर्गेन की देखरेख में जो शुरुआत की थी उसका फल मिलने लगा है, मॉर्गेन भले ही अब दूर हो गए हैं लेकिन टीम को सही रस्ते पर छोड़ गए है और टीम भी कामयाबी के साथ उस रास्ते पर आगे बढ़ती जा रही है.
इस विश्व कप के फाइनल में इंग्लैंड की टीम किसी तुक्के से नहीं पहुंची, हां आयरलैंड से वो ज़रूर हारे लेकिन सेमीफाइनल और फिर फाइनल का उनका सफर एक चैम्पियन की तरह रहा, पाकिस्तान की तरह नहीं जिसे अंतिम दिन तक नहीं मालूम था कि सेमीफाइनल में भी पहुंचेगी या नहीं। शायद यही वजह है कि उसे किस्मत का धनी माना जा रहा था और 1992 के विश्व कप से उसे जोड़ा जा रहा था. मगर आज 1992 पर 2022 भारी पड़ गया.