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पश्चिमी यूपी को मैनेज करने में जुटे अखिलेश

उत्तर प्रदेशपश्चिमी यूपी को मैनेज करने में जुटे अखिलेश

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जाट नेता जयंत चौधरी भले ही सपा का साथ छोड़कर मोदी जी के NDA में चले गए हैं लेकिन अखिलेश यादव लगातार पश्चिमी यूपी से अपना संपर्क बनाये हुए है और दौरे कर रहे हैं. फिर बहाना चाहे किसी शादी समारोह में शामिल होने का ही क्यों ने हो. पश्चिमी यूपी की जाट बाहुल्य सीटों पर रालोद के साथ सपा का गठबंधन काफी मज़बूत माना जा रहा था, विधानसभा चुनाव में भी उसका असर दिखा था और कयास लगाए जा रहे थे कि अखिलेश और जयंत इस क्षेत्र से भाजपा को बड़ा झटका दे सकते हैं जो मोदी-3.0 के लिए एक बड़ी रूकावट बन सकती है लेकिन भाजपा जयंत को मैनेज करने में कामयाब हो गयी. भारत रत्न के एहसान तले जयंत बुरी तरह दब गए और उनके पास सपा को छोड़ने के सिवा कोई चारा न रहा. लेकिन अखिलेश यादव अब भी पश्चिमी यूपी से बड़ी आस लगाए हुए हैं.

बुधवार को वो मुरादाबाद के दौरे पर थे और आज वो मुजफ्फरनगर में हैं। कहने को तो वो एक शादी समारोह में शिरकत करने गए लेकिन सभी जानते हैं कि चुनावी बेला में शादी समारोह चुनावी सन्देश देने में कितने सहायक होते हैं. जाटों को सपा की तरफ आकर्षित करने के लिए अभी अखिलेश ने राज्यसभा के लिए जाट नेता हरेंद्र मलिक को उम्मीदवार बनाया। जयंत से हुए नुक्सान की भरपाई करने को ये तरीका बताया जा रहा है. यहीं नहीं, जाटों में अच्छा सन्देश जाय इसके लिए हरेंद्र मलिक को पार्टी महासचिव भी बनाया। पश्चिमी यूपी में पकड़ बनाने के लिए अखिलेश ने धर्मेंद्र यादव को हटाकर चाचा शिवपाल को उम्मीदवार घोषित किया। ये भी अखिलेश की एक सोची समझी रणनीति का हिस्सा है.

पश्चिमी यूपी की सात आठ सीटों पर मुस्लिम वोटर निर्णायक पोजीशन में है. सपा और कांग्रेस का गठबंधन भी फाइनल हो चूका है. माना जा रहा है कि अब मुस्लिम वोटर का बिखराव नहीं होगा और इसका फायदा दोनों ही पार्टियों को मिलेगा। हालाँकि पश्चिमी यूपी से समाजवादी पार्टी को सलीम शेरवानी ने भी झटका दिया है. अपने को मुस्लिम नेता कहलाने वाले सलीम शेरवानी ने 25 साल का साथ छोड़ा है. बदायूं से वो पांच बार लोकसभा पहुंचे हैं जिसमें से चार बार सपा के टिकट पर जीते हैं. सपा प्रमुख ने सलीम शेरवानी की काट के लिए ही अपने अनुभवी चाचा को बदायूं से मैदान में उतारा है। शेरवानी ने अखिलेश पर बड़े गंभीर आरोप लगाए, यहाँ तक कि उन्होंने ये भी कहा कि आपमें और भाजपा में क्या फर्क है। देखना है चाचा के सहारे वो पश्चिमी यूपी में हुए संभावित नुक्सान को अखिलेश कितना मैनेज कर पाते हैं.

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