अमित बिश्नोई
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में आज बड़े ही धूमधाम के साथ ग्लोबल इन्वेस्टर समिट की शुरुआत हुई. शुभारम्भ प्रधानमंत्री मोदी जी ने किया। इस मौके पर सम्बोधन करने वाले बिजनेस टायकून्स में मुकेश अम्बानी रहे, कुमार मंगलम बिड़ला रहे, टाटा संस् के सीईओ चंद्रशेखरन रहे. इनके साथ कुछ विदेशी इन्वेस्टर ने भी प्रधानमंत्री की मौजूदगी में उनकी और यूपी की योगी सरकार की शान में कसीदे पढ़े. लखनऊ का प्रतिनिधि होने के नाते केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने भी प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री योगी की खूब तारीफ की, उन्होंने तो यूपी को आज इस तरह परिभाषित किया जैसा इससे पहले कभी किसी ने नहीं किया होगा. राजनाथ सिंह का भाषण सुनने वाला है, कभी मौका मिले तो यूपी गवर्नमेंट या योगी जी के ट्विटर हैंडल पर जाकर सुन सकते हैं. प्रधानमंत्री योगी जी का भाषण तो एक अलग विषय होता है उसे बाकी सबके साथ नहीं लिखा जा सकता। लेकिन आज के इस पूरे कार्यक्रम के दौरान सबकी नज़रे किसी एक को खोजती हुई नज़र आ रही थी, विशेषकर मीडिया को. हालाँकि नाम कोई नहीं ले रहा था कि किसको निगाहें तलाश कर रही हैं फिर भी अंदाज़ा तो सबको था ही कि मोदी जी के आज तक के सभी करीबी उद्योगपति अडानी जी नज़र नहीं आ रहे हैं.
अडानी जी को इन्वेस्टर समिट में खोजने की बहुत सी वजहें भी थी, एक तो वो आजकल पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बने हुए हैं, इतने चर्चित तो वो शायद तब भी नहीं हुए थे जब दुनिया के दूसरे नंबर के अमीर बन बैठे थे (अब बन बैठे से आप गलत मतलब मत निकालिएगा, क्योंकि अडानी जी कह चुके हैं कि वो इस मुकाम पर अपनी मेहनत से पहुंचे हैं). इसके अलावा उनकी प्रधानमंत्री मोदी से दोस्ती जगज़ाहिर है, तीसरे जहाँ इन्वेस्टमेंट की बात होती है वहां अडानी जी का न होना हैरानी वाली ही बात कही जाएगी, चौथा अभी हाल ही में अडानी को लेकर योगी सरकार का विपरीत फैसला आया था, इसके लिए भी लोगों को अडानी जी की तलाश थी. शायद मौका मिल जाय कुछ पूछने का. हालाँकि अडानी जी से कोई पत्रकार तब ही बात कर सकता है जब वो बात करना चाहें, बिलकुल मोदी जी की तरह. खैर यह अलग विषय है.
विषय यही है कि निवेश की इतनी बड़ी महफ़िल में अडानी जी क्यों नहीं? बता दूँ की अडानी जी के आज न होने की खबर है, हो सकता है कि कल या परसों दिखाई भी दे जांय। लेकिन सवाल फिर यह उठेगा कि मोदी जी के साथ अडानी जी लखनऊ में क्यों नहीं दिखे। क्या यह एक संयोग है, क्या यह सिर्फ इसलिए कि फिलहाल अडानी जी काफी मुश्किलों में घिरे दिखाई दे रहे हैं और वो उन मुश्किलों से निकलने की कोशिशों में बिज़ी हैं या कहीं ऐसा तो नहीं कि दोस्त के कहने पर उन्होंने ऐसा किया हो कि भाई तू आज मत आना फिर कभी आ जाना। अभी तेरा मेरा एकसाथ दिखना ठीक नहीं। संसद का और देश का माहौल कुछ बिगड़ा हुआ है. वैसे यह बात काफी कुछ समझ में भी आने वाली है. होता है-दोस्ती के लिए बड़ी बड़ी कुर्बानियां देनी पड़ती हैं.
अभी पिछले साल जून की ही बात है जब लखनऊ के इंदिरागांधी प्रतिष्ठान में ग्राउंड ब्रेकिंग सरेमोनी हुई थी और तब भी प्रधानमंत्री मोदी मौजूद थे और अडानी जी भी साथ में थे, देश के और नामचीन उद्योगपति भी मौजूद थे. तब अडानी जी ने यूपी 70000 करोड़ रुपए के निवेश की बात कही थी. खूब तालियां बजी थी कि इतना बड़ा निवेश आएगा तो लाखों नौकरियां भी आएँगी लेकिन समय ऐसा बदला कि लोग आँखें फेरने लगे. सबसे पहले तो योगी जी ने ही आँखें फेरीं और हिंडेनबर्ग की रिपोर्ट पर बवाल मचते ही स्मार्ट मीटर का वो टेंडर ही रद्द कर दिया जो अडानी जी कंपनी को मिलने वाला था. ऐसा भी क्या सिर्फ सात आठ महीनों में ऐसी बेरुखी। अडानी जी ने भी नहीं सोचा होगा कि ऐसा हो सकता है लेकिन पुराने लोग कह गए हैं कि मुश्किल में सबसे पहले अपने ही साथ छोड़ते हैं। बेचारे अडानी जी.