नई दिल्ली। अमेरिका के सिलिकॉन वैली बैंक डूबने का सबसे बड़ा कारण स्टार्टअप्स रहा है। बड़े सपने दिखाने वाले स्टार्टअप्स वाली कंपनियों की 75 प्रतिशत फंडिंग बंद हो चुकी है। इसमें काम कर रहे लोगों को नौकरी जाने का खतरा सता रहा है। नए लोग नौकरी के लिए आ नही रहे हैं।
एक दौर था जब लोग स्टार्टअप्स में काम करना कईयों का सपना होता था। लेकिन आज एक दौर है कि लोग अब वहां ज्वाइन करना नहीं चाहते क्योंकि पता नहीं कब नौकरी चली जाए। दरअसल स्टार्टअप्स के बर्बादी की कहानी के पीछे कई कारण हैं लेकिन सबसे बड़ा कारण है उनके रीढ की ह्ड्डी का टूटना यानी फंडिंग का बंद हो जाना। उसपर सोने पे सुहागा लगा दिया आमदनी अठ्ठनी और खर्चा रुपया वाले फॉर्मूले ने।
स्टार्टअप्स का पैसा बैंकों में जमा, बैंकों की हालत खस्ता
अमेरिका के सिलिकॉन वैली बैंक डूबने का सबसे ज्यादा खामियाजा अगर किसी को भुगतना पड़ा है तो वो हैं स्टार्टअप्स। दरअसल बड़ी संख्या में स्टार्टअप्स का पैसा इस बैंक में जमा है। अब जब बैंक की हालत खस्ता हो चुकी है तो जाहिर है कि इन स्टार्टअप्स के माथे पर चिंता की लकीरें भी होंगी। हालांकि सिलिकॉन वैली बैंक को बचाने के प्रयास के बाद इन स्टार्टअप्स को थोड़ी राहत जरूर मिली। क्या आपको लगता है कि केवल सिलिकॉम वैली ही इन सबकी वजह है तो जी नहीं ऐसा बिल्कुल नहीं है। कुछ खास वजहें हैं जो स्टार्टअप्स के डूबने या यूं कहे उनकी हवा निकालने के लिए बड़े जिम्मेदार हैं।
फंडिंग में 75% की गिरावट
एक रिपोर्ट के मुताबिक स्टार्टअप्स को मिलने वाली फंडिंग में अब तक 75 प्रतिशत की गिरावट आ चुकी है। साल 2023 की पहली तिमाही में स्टार्टअप्स को जो कुल फंडिंग मिली है वो है 2.8 बिलियन डॉलर की थी। जबकि पिछले साल इसी अवधि के दौरान स्टार्टअप्स ने 11.9 बिलियन डॉलर की फंडिंग जुटाई थी। ये तो सब जानते हैं कि स्टार्टअप्स के लिए फंडिंग रीढ की हड्डी जैसा है। अब जब रीढ की हड्डी ही नहीं रहेगी तो कंपनी कब तक खड़ी रह पाएगी।
लगातार खराब हो रही बैलेंस शीट
स्टार्टअप्स के लिए दूसरा सबसे बड़ा विलेन है उनके बढ़ते खर्चे। आमदनी अठ्ठनी और खर्चा रुपया..ये कहावत तो इन स्टार्टअप्स पर फिट बैठती है। कोई बड़ा यूनिकॉर्न हो या फिर कोई छोटा-मोटा स्टार्टअप्स। हर स्टार्टअप्स की परेशानी है कि उनके पास फंडिंग जैसे ही आती है ये अपने खर्चे बढ़ा लेते हैं। इनकी सोच होती है कि पहले बड़ी हायरिंग और मार्केट में बज बनाकर नाम बना लो। फिर कमाई तो हो जाएगी। यहीं से बैलेंस शीट बिगड़ना शुरू हो जाता है। जिसकी वजह ज्यादातर स्टार्टअप्स मार खा जाते हैं।
बीते कुछ महीनों में जिस तरह से स्टार्टअप्स में ताबड़तोड़ छंटनियां हुई हैं। उसके बाद इनके यहां काम करने का माहौल भी काफी बिगड़ चुका है। बैंगलुरु के एक स्टार्टअप में काम करने वाली एक युवती का कहना है कि कैसे उनके यहां 600 कर्मचारियों की छंटनी के बाद माहौल बदल गया है। अब जो लोग काम कर रहे है उन्हे हर समय ये डर सताता है कि उनकी नौकरी पता नहीं कब तक है।