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क्या मोदी दरबार के दरबारी बनेंगे शिंदे?

आर्टिकल/इंटरव्यूक्या मोदी दरबार के दरबारी बनेंगे शिंदे?

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अमित बिश्नोई
महाराष्ट्र में नई सरकार का गठन कब होगा, हालाँकि सरकार बनाने की आखरी तारिख 26 नवंबर थी. अब सरकार तो तभी बनेगी जब मुख्यमंत्री कौन बनेगा, ये बात फाइनल होगी। ये बात तभी फाइनल होगी जब भाजपा किसी का नाम आधिकारिक तौर पर घोषित करेगी, फिलहाल तो वो अपनी छोड़ सहयोगी पार्टियों को लेकर माथपच्ची कर रही है. काफी उठापटक के बाद वो एकनाथ शिंदे से ये बुलवाने में तो कामयाब हो गयी वो मुख्यमंत्री की दौड़ से बाहर हैं, उन्हें भाजपा का हर फैसला मंज़ूर है, वो जिसे चाहे मुख्यमंत्री बनाये। शिवसेना पूरी तरह से नए मुख्यमंत्री का समर्थन करेगी। एकनाथ शिंदे ने कल रात प्रेस के सामने जिस तरह से खुद को सीएम की दौड़ से अलग किया वो भले ही सरेंडर करने जैसा हो लेकिन उन्होंने इस बात का संकेत ज़रूर दे दिया कि वो महाराष्ट्र छोड़कर जाने वाले नहीं।

दरअसल भाजपा इस बात के लिए पूरा ज़ोर लगा रही है कि एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र छोड़ केंद्र की राजनीति करें लेकिन शिवसेना या एकनाथ शिंदे इस बात के लिए बिलकुल भी तैयार नहीं हैं. भले उनके पास असली शिवसेना का नाम और निशान है लेकिन उन्हें ये अच्छी तरह मालूम है कि इस असली शिवसेना की उम्र सिर्फ दो ढाई साल ही है, हालाँकि इतनी कम आयु में शिवसेना ने अपनी बढ़त बनाई है लेकिन ये असली शिवसेना के लिए काफी नहीं है, उसे महाराष्ट्र में अपनी ज़मीन को अभी मज़बूत करना है. बता दें कि शिंदे के नेतृत्व में लोकसभा चुनाव के बाद विधानसभा चुनाव में भी नई असली शिवसेना ने अच्छा प्रदर्शन किया और विधायकों की संख्या में भी इज़ाफ़ा हुआ लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी हाथ से चली गयी है ऐसे में एकनाथ शिंदे की महाराष्ट्र में मौजूदगी पार्टी के लिए और भी ज़रूरी है. भूलना नहीं चाहिए कि ठाकरे परिवार से बग़ावत करने वाले और अपने आपको असली शिवसैनिक कहने वाले एकनाथ शिंदे के साथ मंत्री पद के लालच में चले गए ऐसे में इस बात की क्या गारंटी है कि नई असली शिवसेना के ये नकली शिवसैनिक एकनाथ शिंदे का साथ नहीं छोड़ सकते, वो सीधे तौर पर उस पार्टी से हाथ मिला सकते हैं जिसने शिवसेना को तोड़ने का चक्रव्यूह रचा.

एकनाथ शिंदे इन सब बातों से परिचित हैं और वैसे भी राजनीती में अक्सर ऐसा होता है कि जो बगावत करके आपके साथ आया वही आपसे बग़ावत करके दुसरे के साथ चला जाता है. अगर इस सन्दर्भ में बात करें तो शरद पवार ज़िंदा मिसाल हैं. कभी शरद पवार ने कांग्रेस के साथ यही किया था जैसा उनके भतीजे ने उनके साथ किया। तो ऐसा बहुत संभव है कि शिंदे ने जो असली शिवसेना के साथ किया वहीँ उनकी नई असली शिवसेना के साथ भी हो जाय. इसलिए एकनाथ शिंदे कुछ एक्स्ट्रा अलर्टनेस दिखा रहे हैं और केंद्र में जाने के ऑफर को ठुकरा रहे हैं. उधर भाजपा कई तरीकों से उनपर दबाव बना रही है कि महाराष्ट्र में अपना दरबार लगाने के बजाय दिल्ली जाकर मोदी जी के दरबार के दरबारी बने.

अभी जो नई जानकारी आयी है उसके मुताबिक भाजपा ने ये सन्देश दिया है कि महाराष्ट्र सरकार में शिवसेना को उपमुख्यमंत्री पद तभी मिलेगा जब एकनाथ शिंदे ही इस पद को स्वीकारेंगे लेकिन उसे ये भी पता है कि शिंदे कभी उपमुख्यमंत्री का पद नहीं स्वीकार करेंगे। यहाँ पर बात को आपको विरोधाभासी ज़रूर लगेगी लेकिन भाजपा के काम करने का तरीका यही है। अपने सहयोगियों को वो इसी तरह के हथकंडे अपनाकर अपनी बात मनवाने पर मजबूर कर देती है. साम साम दंड भेद के उसूल को अच्छी तरह से अपनाने वाली भाजपा एकनाथ शिंदे को महाराष्ट्र छोड़ने पर ज़रूर मजबूर कर देगी। अभी लेटेस्ट उसने मध्य प्रदेश में भी यही किया, शिवराज चौहान को मध्य प्रदेश में अपना दरबार लगाने से रोक दिया और दिल्ली में दरबारी बना दिया। मध्य प्रदेश में रहते तो कहीं कहीं मोहन यादव की परेशानियां बढ़ाते। इसी तरह भाजपा शिंदे को महाराष्ट्र से हटाना चाहती है ताकि वो जिसे भी महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनाये उसे सहयोगियों से कोई समस्या का सामना न करना पड़े. जहाँ तक अजित पवार की बात है तो भाजपा ने उसे अच्छे से हैंडल कर लिया। उसे नई असली एनसीपी से कोई खतरा नहीं लेकिन नई असली शिवसेना उसके लिए सिरदर्द बने ये भी उसे मंज़ूर नहीं। अब देखना है सीएम पद पर हथियार डालने वाले शिंदे क्या एकबार फिर घुटने टेकेंगे और महाराष्ट्र में दरबार लगाने बजाय दिल्ली दरबार के दरबारी बनेंगे?

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