अमित बिश्नोई
भारत में इन दिनों क्रिकेट का विश्व कप खेला जा रहा है, इसके बावजूद ऐसा नहीं लग रहा है कि लोगों पर इसका बुखार चढ़ा हुआ है और इसकी वजह सिर्फ ये है कि क्रिकेट के साथ देश में इन दिनों राजनीति के मिनी विश्व कप की तैयारी भी चल रही है, बिगुल फूंका जा चुका है, चुनाव आयोग ने पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों की तारीख का एलान कर दिया है, नवंबर महीने की अलग अलग तारीखों में पांचों राज्यों में मतदान होगा, शुरुआत 7 नवंबर को मिजोरम से होगी और 3 दिसंबर को नतीजे आएंगे। इन पांच राज्यों में दो राज्यों में कांग्रेस सरकार है, मध्य प्रदेश भाजपा के कब्ज़े में हैं, तेलंगाना में BRS और मिजोरम में क्षेत्रीय पार्टियों की सरकार है. ऐसे में अपनी अपनी सरकार बचाने और दूसरे राज्यों पर कब्ज़ा करने के लिए भाजपा और कांग्रेस में ज़बरदस्त टक्कर है, सच कहा जाय तो कांग्रेस से ज़्यादा भाजपा के लिए यह चुनाव ज़्यादा अहमियत रखते हैं क्योंकि चार महीने बाद ही आम चुनाव होने हैं और भाजपा को मोदी सरकार बचाना है. तो ये असेंबली चुनाव भाजपा के लिए लिटमस टेस्ट कहे जाएंगे क्योंकि इनके नतीजों में कहीं न कहीं 2024 के नतीजे की झलक मिलेगी।
आप कह सकते हैं कि विधानसभा चुनाव और आम चुनाव में काफी फर्क है. फर्क ज़रूर होता है लेकिन आने वाले दिनों के संकेत ज़रूर मिलते हैं। 2019 की बात करें तो मोदी मैजिक के बावजूद कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में भाजपा को हार मिली थी, हालाँकि बाद में कर्नाटक और मध्य प्रदेश को भाजपा ने तोड़फोड़ करके वापस हथिया लिया। इन राज्यों में हार के बावजूद आम चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी 2019 में और मज़बूत होकर सामने आये, ऐसा क्यों हुआ इसके पीछे के हालात कुछ और थे जिनमें पुलवामा सबसे बड़ी वजह थी. हम बात अभी इन पाँचों विधानसभा चुनावों में भाजपा के अवसर और उनकी तैयारियों को लेकर करते हैं.
भाजपा इन चुनावों में एकबार फिर प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे को ही आगे करके जा रही है क्योंकि किसी भी राज्य में उसने सीएम चेहरे को सामने नहीं किया है यहाँ तक कि शिवराज चौहान जो दशकों से एमपी की सत्ता संभाले हुए हैं उनका नाम भी सीएम उम्मीदवारी के लिए नहीं है. जो भाजपा कभी इस बात के लिए कांग्रेस पार्टी को घेरती रही है और राज्यों के चुनावों में मुख्यमंत्री कौन के सवाल को ज़ोरदार ढंग से उठाती रही है यहाँ तक इंडिया गठबंधन में पीएम उम्मीदवार कौन का सवाल बार बार उठा रही है लेकिन यही सवाल जब उससे इन राज्यों के लिए पूछा जाता है तो अमित शाह जी सामूहिक नेतृत्व की बात करते हैं। सवाल ये है कि भाजपा कांग्रेस की शैली को क्यों अपना रही है क्यों वो शिवराज, रमन सिंह और वसुंधरा राजे को या किसी और को सीएम उम्मीदवार के रूप में नहीं पेश कर रही है. मध्य प्रदेश में तो समझा जा सकता है कि शिवराज के खिलाफ इतने सालों एंटी इंकम्बेंसी हो सकती है लेकिन छत्तीसगढ़ और राजस्थान में तो ऐसा कुछ नहीं है, वहां पर तो वो विपक्ष में है, फिर ऐसा क्यों?
क्या भाजपा को अपने क्षेत्रीय नेतृत्व पर भरोसा नहीं रहा, क्या उसे लगता है कि भाजपा को चुनावों में जीत सिर्फ मोदी जी ही दिला सकते हैं, हालाँकि जब हम राज्यों के चुनावों के नतीजों को देखें तो रिकॉर्ड कुछ और ही कहानी कहते हैं। कर्नाटक और हिमाचल के हालिया चुनाव तो यही कहानी कहते हैं जबकि इन चुनावों में मोदी जी ने पूरा ज़ोर लगाया था, चुनावी दौरों की झड़ी लगाई थी, भाजपा की जगह मोदी गारंटी की बातें की थीं, रैलियों में लोगों से कह रहे थे कि आपका हर वोट मोदी को जायेगा। इन चुनावों में भी वो यही सब कह रहे हैं, मध्य प्रदेश में वो भाजपा की नहीं मोदी की गारंटी की बात करते हैं, छत्तीसगढ़-राजस्थान में भी वो सिर्फ मोदी -मोदी ही कह रहे हैं. ऐसा लग रहा है जैसे मोदी जी इस ज़िद पर अड़े हुए हैं कि राज्यों के चुनाव भी अपने दम पर जीत कर रहेंगे , क्षेत्रीय नेतृत्व उन्हें ज़रुरत नहीं। वो बताना चाहते हैं कि बीजेपी को मिलने वाला हर वोट सिर्फ मोदी के नाम पर पड़ता है न कि शिवराज, रमन सिंह और वसुंधरा राजे के नाम पर.
सवाल ये भी है कि मोदी और शाह की जोड़ी क्षेत्रीय नेतृत्व को दरकिनार क्यों कर रही है, इससे भाजपा का क्या भला होने वाला है? साफ़ देखा जा सकता है मोदी-शाह की रणनीति से राज्य के क्षत्रपों में काफी नाराज़गी बढ़ रही है, वो साफ़ तौर पर देख रहे हैं कि राज्यों में केंद्र से सांसदों को चुनाव लड़ने को भेजा जा रहा है, अबतक 17 सांसदों को विधायकी का चुनाव लड़ने भेजा गया है और इनमें कई केंद्रीय मंत्री हैं और अपने को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार भी समझ रहे हैं, विजयवर्गीय जैसे नेता तो खुले आम इस बात को चुनावी सभा में कह भी रहे हैं कि वो यहाँ विधायक बनने नहीं आये हैं. शिवराज चौहान भी अच्छी तरह जानते हैं कि नरेंद्र सिंह तोमर हों, विजयवर्गीय हो या फग्गन सिंह कुलस्ते, पार्टी के ये बड़े नेता डिमोशन के लिए नहीं आये हैं, यही हाल राजस्थान में भी है , सांसदों को वहां भी भेजा गया है जो वसुंधरा कतई अच्छा नहीं लग रहा है और नज़र भी आ रहा है, वसुंधरा की नाराज़गी दूर करने के लिए दिल्ली में अमित शाह के साथ बैठक भी हुई लेकिन कहा जा रहा है कि बात बनने की जगह और बिगड़ गयी. सवाल ये भी है कि भाजपा कांग्रेस की राह पर क्यों चल रही है और बिना सीएम चेहरे के राज्यों के चुनावों में क्यों जा रही है, आखिर उसकी क्या मजबूरी है.