अमित बिश्नोई
हरियाणा के बाद महाराष्ट्र के चुनाव में मिली हार के बाद पिछले तीन दिनों से इंडिया ब्लॉक् के अंदर नेतृत्व परिवर्तन को लेकर आवाज़ें तेज़ हो गयी हैं. लोकसभा चुनाव में अच्छे प्रदर्शन के बाद यही इंडिया ब्लॉक् एकजुट नज़र आ रहा था मगर अब उसे लगने लगा है कि गठबंधन में नेतृत्व परिवर्तन होना चाहिए। राहुल गाँधी पर पूरा भरोसा करने वाले दल अचानक उन्हें अलग थलग करना चाह रहे हैं. लेकिन यहाँ पर सवाल यही उठता है कि लोकसभा चुनाव के बाद ऐसा क्या हो गया कि इंडिया ब्लॉक् के दलों को कांग्रेस से भरोसा उठने लगा. नतीजे देखे जांय तो बेशक कांग्रेस पार्टी के लिए एक झटका है, हरियाणा जहाँ सबने कांग्रेस की जीत का एलान कर दिया था, सत्ता हासिल न कर सकी, वहीँ महाराष्ट्र में भी इंडिया ब्लॉक् के दलों को यकीन था कि सत्ता परिवर्तन की लहर चल रही है लेकिन लहर MVA की जगह महायुति की निकली और सत्ताधारी गठबंधन की सभी पार्टियों ने पहले से बेहतर प्रदर्शन किया। दूसरी तरफ MVA के घटक दलों ने बुरी तरह निराश किया, फिर वो चाहे कांग्रेस हो, शरद पवार वाली एनसीपी हो या फिर उद्धव ठाकरे वाली शिवसेना हो. ऐसे में महाराष्ट्र में सिर्फ कांग्रेस को क्यों दोष दिया जा रहा है. दूसरे सहयोगी दलों पर ऊँगली क्यों नहीं उठ रही है, सबसे बुरी हालत तो शरद पवार की हुई है, भतीजे के हाथों उन्हें अपनी राजनीति के अंतिम पड़ाव में ऐसी हार मिलेगी, सपने में नहीं सोचा होगा लेकिन इंडिया ब्लॉक में नेतृत्व परिवर्तन हो, इस मांग में उनका सुर भी शामिल है.
दरअसल इंडिया ब्लॉक को लेकर कांग्रेस कहिये या फिर राहुल गाँधी, नेतृत्व परिवर्तन पर बहस की शुरुआत समाजवादी पार्टी से हुई. दरअसल महाराष्ट्र में सपा MVA घटक के तौर पर ज़्यादा सीटें चाहती थी लेकिन ऐसा संभव नहीं हो पाया, सपा का मानना था कि कांग्रेस पार्टी ने इस मामले में उसका साथ नहीं दिया। नतीजे में उसे पिछली बार की तरह सिर्फ दो सीटें ही मिल पाईं। इसके बाद कहीं न कहीं राहुल को घेरने की कोशिश होने लगी, लोकसभा में अयोध्या वाले अवधेश को पीछे की सीट पर भेजने के मामले पर समाजवादी पार्टी ने एक तरह से विरोध जताते हुए स्पीकर ओम बिरला से हस्तक्षेप की मांग भी कर दी. उधर रामगोपाल शर्मा ने भी कांग्रेस को लेकर विवादित बयान दिए. इंडिया गठबंधन में नेतृत्व परिवर्तन का मामला तब और ज़ोर से उछला जब ममता बनर्जी ने अपने एक बयान में कह दिया कि वो इंडिया ब्लॉक का नेतृत्व करने की इच्छा रखती हैं. अगर उन्हें मौका मिला तो वो बंगाल में रहकर ही इंडिया ब्लॉक का नेतृत्व कर सकती हैं. ममता के इस बयान के बाद शरद पवार और तेजस्वी यादव ने भी बदलाव की बात पर मुहर लगाई। शरद पवार ने कहा कि अगर ममता बनर्जी चाहती हैं तो उन्हें इंडिया ब्लॉक की कमान देने में कोई हर्ज नहीं है. उधर राजद के तेजस्वी यादव ने लालू प्रसाद का नाम लेकर एक अलग ही बहस छेड़ दी. तेजस्वी यादव ने कहा कि इंडिया ब्लॉक की कल्पना लालू प्रसाद यादव की थी और इसलिए पटना में पहली बैठक हुई थी. तेजस्वी ने हालाँकि ममता का नाम नहीं लिया लेकिन ये ज़रूर कहा कि सभी दलों को बैठकर नेतृत्व के मुद्दे पर बात करनी चाहिए और जिसपर सभी लोग सहमत हों उसे नेतृत्व सौंप देना चाहिए।
समाजवादी पार्टी के ममता बनर्जी से अच्छे सम्बन्ध हैं इसलिए उन्हें भी ममता के नाम पर कोई ऐतराज़ नहीं होगा। लेकिन सवाल ये उठता है कि इंडिया ब्लॉक में 27-28 दल हैं, बाकियों की इस बारे में क्या राय है. नेशनल कांफ्रेंस के फ़ारूक़ अब्दुल्ला तो ये कहकर अलग हो गए कि उन्हें ममता बनर्जी के बयान या नेतृत्व परिवर्तन पर किसी और के दिए गए बयानों के बारे में कोई जानकारी नहीं है, JMM अभी तक इस बहस दूर है, हेमंत सोरेन कांग्रेस के साथ कैबिनेट विस्तार में लगे हैं, अभी ताज़ा ताज़ा उसी इंडिया ब्लॉक के साथ JMM को ऐतिहासिक कामयाबी मिली है जिसका नेतृत्व राहुल गाँधी कर रहे हैं, जम्मू कश्मीर में भी नेशनल कांफ्रेंस को कांग्रेस के साथ कामयाबी मिली और उमर अब्दुल्लाह के नेतृत्व में सरकार चल रही है. तमिलनाडु में स्टालिन कांग्रेस के साथ सरकार चला रहे हैं. कहीं से भी नेतृत्व परिवर्तन की कोई बात नहीं हुई. फिर अखिलेश यादव हों, ममता बनर्जी हों, तेजस्वी हों या फिर शरद पवार, क्या सोचकर नेतृत्व परिवर्तन की बात कर रहे हैं. चलिए नतीजों पर बात करते हैं, महाराष्ट्र में शरद पवार की पार्टी की बुरी तरह हार हुई, महाराष्ट्र के बाहर उनका कोई वजूद नहीं है, राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा छिन चूका है. लोकसभा चुनाव में सफलता के घोड़े पर सवार हुए अखिलेश यादव ने विधानसभा के उपचुनाव में क्या झंडे गाड़ दिए. 9 में सिर्फ 2 सीटें ही जीत पाए. जीत का प्रतिशत क्या रहा. इसे विधानसभा की सभी सीटों को सामने रखकर देखें तो 2027 में सपा कितनी सीटें जीतती हुई नज़र आ रही है. बिहार में हुए विधानसभा उपचुनाव में राजद एक भी सीट नहीं जीत पायी, हाँ ममता बनर्जी ने ज़रूर बंगाल में अपना रुतबा बरक़रार रखा लेकिन बंगाल के बाहर उनकी क्या हैसियत है ये सभी लोग जानते हैं, ममता को भी ये बात मालूम है और इसलिए उन्होंने इंडिया ब्लॉक का नेतृत्व करने की इच्छा के साथ ये शर्त भी लगा दी कि बंगाल में रहकर ही वो इंडिया ब्लॉक का नेतृत्व कर सकती हैं।
दरअसल इंडिया ब्लॉक के सभी घटक दलों को ये बात अच्छी तरह मालूम है कि प्रधानमंत्री मोदी के बाद पूरे देश में अगर किसी एक नेता की स्वीकार्यता है तो वो राहुल गाँधी की है. पूरे देश में अगर किसी भी विपक्षी पार्टी का वजूद है तो वो कांग्रेस का है और फिर कांग्रेस ने कभी इंडिया ब्लॉक का नेतृत्व की बात नहीं कही. दरअसल जब बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार की अथक कोशिशों के बाद इंडिया ब्लॉक् वजूद में आया तब मल्लिकार्जुन खरगे ने नितीश कुमार को ही इंडिया ब्लॉक का संयोजक बनाने का प्रस्ताव पेश किया था लेकिन नितीश ने अनिच्छा दिखाते हुए इंकार किया था. इंकार क्यों किया था ये बात बाद में सब लोगों को पता चल गयी थी कि उनकी भाजपा से बात चल रही थी और फिर बाद में नितीश भाजपा के साथ चले भी गए थे. बाद में सभी सहयोगी दलों ने एक तरह से कांग्रेस को मजबूर कर दिया था कि इंडिया ब्लॉक का नेतृत्व कांग्रेस पार्टी करे. अब उनमें से कई दलों को कांग्रेस के नेतृत्व पर ऐतराज़ हो रहा है. अचानक नेतृत्व परिवर्तन की बातें क्यों उठने लगी हैं इसकी वजह जल्द ही सामने भी आ जाएगी लेकिन बड़ा सवाल ये है कि जिन दलों की तरफ से ये मांग की जा रही है क्या उनमें से किसी भी दल के पास ऐसा नेता है जिसकी पूरे देश में पहचान हो और जिसकी स्वीकार्यता हो.