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सोनम कपूर की फिल्म ब्लाइंड से फैंस क्यों है न खुश

एंटरटेनमेंटसोनम कपूर की फिल्म ब्लाइंड से फैंस क्यों है न खुश

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अभिनेत्री सोनम कपूर चार साल बाद क्राइम थ्रिलर फिल्म ‘ब्लाइंड’ से वापसी कर रही हैं। यह फिल्म 2011 में आई कोरियाई फिल्म ‘ब्लाइंड’ का हिंदी रीमेक है। सोनम कपूर आखिरी बार डायरेक्टर अभिषेक शर्मा की फिल्म ‘द जोया फैक्टर’ में साउथ सिनेमा के स्टार दुलकर सलमान के साथ नजर आई थीं, जो साल 2019 में रिलीज हुई थी। आपको बता दे यह फिल्म सिनेमा घरों में रिलीज होने के बजाय सीधा ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज हुई है।यह फिल्म आपको जिओ सिनेमा पर देखने को मिल जाएगी ।

फिल्म की ‘ब्लाइंड’ कहानी स्कॉटलैंड में रहने वाली एक पुलिस अधिकारी जिया सिंह के इर्द-गिर्द घूमती है। एक रात जिया सिंह अपने भाई को पब से अपनी कार में घर ले जाने की कोशिश कर रही थी, तभी उसका एक्सीडेंट हो गया। जिया सिंह की आंखों की रोशनी चली गई। एक अंधी लड़की के रूप में, वह अपनी रोजमर्रा की जिंदगी को आरामदायक बनाने की कोशिश करती है। इसी बीच शहर में कुछ लड़कियों के अपहरण और हत्या की घटनाएं बढ़ने लगती हैं. एक रात जब जिया सिंह अपनी मां से मिलकर लौटती है और रात में एक कैब में लिफ्ट लेती है, तो उसे पता चलता है कि अपहरण और हत्या की घटनाओं के पीछे का आरोपी वह ड्राइवर है जिसने उसे लिफ्ट दी थी।

फिल्म ‘ब्लाइंड’ में सोनम कपूर ने जिया सिंह का किरदार निभाया है। कोरियाई फिल्म में यही किरदार अभिनेत्री किम हा-नेउल ने निभाया था। जिन लोगों ने कोरियाई फिल्म ‘ब्लाइंड’ देखी है, वे इस फिल्म की पूरी कहानी समझ सकते हैं। जिस तरह की कहानी और घटनाएं कोरियाई फिल्म में होती हैं, उसी तरह की कहानी और घटनाएं इस फिल्म में दिखाई गई हैं। रीमेक फिल्में बनाते समय फिल्म के निर्देशक को इस बात का जरूर ध्यान रखना चाहिए कि फिल्म में कुछ नया हो जो मूल फिल्म की कहानी और घटनाओं से थोड़ा अलग लगे। लेकिन इस फिल्म में अलग होना तो दूर, मूल फिल्म से अलग इस फिल्म में कोई रोमांच है ही नहीं

फिल्म ‘ब्लाइंड’ में अपहरण और हत्या के पीछे वाला व्यक्ति एक मनोरोगी है। दिलचस्प बात यह है कि वह एक स्त्री रोग विशेषज्ञ हैं। वह अपहृत लड़कियों की बेरहमी से हत्या कर देता है। फिल्म में ये बताने की कोशिश नहीं की गई कि इसके पीछे उनका मकसद क्या है. फिल्म की कहानी विकसित करते समय शोम मखीजा और सुदीप निगम शायद भूल गए होंगे कि उन्होंने फिल्म की पृष्ठभूमि के रूप में स्कॉटलैंड को चुना है। चूके भी तो फिल्म के क्रिएटिव डायरेक्टर सुजॉय घोष कैसे चूक गए, जो फिल्म के प्रोड्यूसर भी हैं और ‘कहानी’ और ‘बदला’ जैसी सस्पेंस थ्रिलर बना चुके हैं।

फिल्म की पटकथा निर्देशक शोम मखीजा ने खुद लिखी है। जैसे-जैसे फिल्म की कहानी आगे बढ़ती है, इसका फ्लो और किरदार दोनों ही फ्लॉप होते जाते हैं। तनुप्रिया शर्मा का संपादन थोड़ा और कड़ा हो सकता था। गैरिक सरकार की सिनेमैटोग्राफी औसत दर्जे की है। फिल्म में अच्छे संगीत के नाम पर सिर्फ शोर है। अंधी पुलिस ऑफिसर की भूमिका में सोनम कपूर ने अपने किरदार को संजीदगी के साथ पेश किया है. उनके हिस्से में कुछ एक्शन सीन भी आए हैं, जिन पर वह खरी उतरी हैं. लेकिन किरदार की गहराई को थोड़ा और समझने की जरूरत थी, ये तभी संभव होता जब स्क्रिप्ट की डिटेलिंग ठीक से की जाये .

पुलिस इंस्पेक्टर पृथ्वी खन्ना के किरदार में विनय पाठक अपने अंदाज से अच्छी छाप छोड़ते हैं लेकिन उनका किरदार अचानक खत्म कर दिया जाता है. एक मनोरोगी हत्यारे की भूमिका में पूरब कोहली शुरुआत में थोड़ा सरप्राइज़ पैकेज लगते हैं लेकिन बाद में उनका किरदार थोड़ा अधूरा सा लगने लगता है। मतलब कुल मिला के हम ये कह सकते है कि ये फिल्म पूरी तरह से अधूरी है ।

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