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हरियाणा में किसकी प्रतिष्ठा दांव पर?

आर्टिकल/इंटरव्यूहरियाणा में किसकी प्रतिष्ठा दांव पर?

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अमित बिश्नोई
हरियाणा की 90 विधानसभा सीटों के लिए मैदान में उतरने वाले 1027 उम्मीदवारों धड़कने बढ़ी हुई होंगी। प्रचार अभियान कल शाम समाप्त हो चूका है, चुनावी रैलियों का सिलसिला बंद हो चूका है, बड़ी पार्टियों के बड़े नेताओं की इन रैलियों में काफी भीड़ आयी, हालाँकि कुछ नेता ऐसे भी रहे जिनकी सभाओं में भीड़ अपेक्षा के मुताबिक नहीं रही. इन सबके बावजूद देखने वाली बात यही है कि वो भीड़ कल होने वाले मतदान में वोट डालने के लिए बाहर निकलती है या नहीं। निकलती है तो किसके लिए. हरियाणा के चुनाव में कल राज्य के कई बड़े बड़े नेताओं का बहुत कुछ दांव पर लगा है, ये अलग बात है कि उससे ज़्यादा प्रधानमंत्री मोदी, अमित शाह और राहुल गाँधी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है और साथ ही भविष्य की राजनीती भी दांव पर लगी है क्योंकि चुनाव का ये सिलसिला अभी ख़त्म नहीं होगा, कुछ ही दिनों में झारखण्ड और महाराष्ट्र में सबकुछ शिफ्ट हो जायेगा, बल्कि ऐसा कहा जाना चाहिए कि शिफ्टिंग शुरू हो चुकी है.

पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर हुड्डा हों या मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी, कांग्रेस उम्मीदवार विनेश फोगट हो या फिर जेजेपी के दुष्यंत चौटाला , कल सबकी किस्मत EVM में कैद हो जाएगी और शाम तक कहीं न कहीं इस बात की झलक भी मिल जाएगी कि हवा का रुख किधर का है, किसकी जीत की संभावनाएं ज़्यादा हैं और किसकी कम. क्योंकि शाम को एग्जिट पोल के नतीजे भी आ जायेंगे। हालाँकि पिछले चुनावों को अगर देखें , फिर वो चाहे मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों के नतीजे हों या फिर लोकसभा चुनाव के, हारने-जिताने वाले ये अनुमान पूरी तरह से गलत साबित हुए हैं, इसके बावजूद भी एग्जिट पोल तो आएंगे ही. सही या गलत अनुमान लगाएंगे ही और आठ अक्टूबर की सुबह तक इनके नतीजों पर लोग बहस भी करेंगे। ज़ाहिर सी बात है कि नतीजे जिनके पक्ष में होंगे उनका खून बढ़ेगा और जिनके विपरीत होंगे उनका खून जलेगा। अब किसी का भी खून जले या बढ़े TRP के चक्कर में एग्जिट पोल दिखाना टीवी चैनलों की मजबूरी है. क्या फ़र्क़ पड़ता जो गलत हो जायेंगे, कोई जवाबदेही तो होती नहीं, अगर तुक्के से सही निकल गए तो फिर वही बात, देखिये मैंने तो पहले ही बता दिया था.

खैर ये सब तो कल शाम से शुरू होगा लेकिन उससे पहले हरियाणा में आने वाले कुछ घंटों में अभी भी बहुत कुछ हो रहा होगा, कहीं न कहीं सेटिंग भी हो रही होगी। अब सेटिंग का मतलब आप चुनाव आयोग से सेटिंग का मत निकाल लीजियेगा। चुनाव में और भी बहुत तरह की सेटिंग होती हैं. जैसे कि अगर ये कन्फर्म हो जाए कि मेरे उम्मीदवार से ज़्यादा कोई ऐसा उम्मीदवार ज़्यादा मज़बूत है और वो हमारे मुख्य विपक्षी को हराने में सक्षम हो सकता है तो फिर बात दुश्मन का दुश्मन दोस्त वाली हो जाती है, अपने को छोड़कर अपने दुश्मन के दुश्मन को मदद करना एक कर्तव्य बन जाता है. अब हरियाणा से जो खबरे आ रही हैं उनमें इस बात को काफी बल भी मिल रहा है. कहा जा रहा कि लोगों ने बदलाव का मन बना लिया है, अब सत्ताधारी पार्टी का कुछ नहीं हो सकता। ये बात सत्ताधारी पार्टी के उन बड़े नेताओं को भी मालूम पड़ चुकी है और यही वजह है कि 2019 के विधान सभा चुनाव प्रधानमंत्री की अंतिम सप्ताह में तीन सभाये होनी थीं जो बढ़ाकर सात कर दी गयी थीं लेकिन इसबार ऐसा नहीं है, आखरी हफ्ते में सिर्फ एक सभा और अंतिम तीन दिनों में एक भी नहीं, वहीँ राहुल और प्रियंका ने अंतिम चार दिनों हरियाणा का वो हिस्सा मथ डाला जो भाजपा का गढ़ माना जाने लगा था.

सबसे बड़ी चोट तो सत्ताधारी पार्टी को उस वक्त लगी जब चुनाव प्रचार के अंतिम घंटों में दलित समुदाय के एक बड़े नेता जो दो घंटे पहले एक चुनावी मंच से भाजपा उम्मीदवार का प्रचार कर रहे थे, अचानक राहुल गाँधी के चुनावी मंच पर पहुंचते हैं और घर वापसी का एलान कर देते हैं हालाँकि उनकी आधिकारिक जोइनिंग दिल्ली में एक दिन बाद होती है. फरीदाबाद में राहुल गाँधी के चुनावी मंच पर अचानक प्रकट होने वाले नेता और कोई नहीं बल्कि हरियाणा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अशोक तंवर हैं जो भाजपा में चले गए थे. अशोक तंवर को भाजपा कितना बड़ा नेता मानती थी इसे आप ऐसे समझ सकते हैं कि भाजपा में जब तंवर शामिल हुए तो कहा गया कि हरियाणा में कांग्रेस आज से ख़त्म हो गयी. आज वहीँ तंवर कांग्रेस में वापस आ गए हैं. तंवर की लास्ट मिनट कांग्रेस में वापसी भाजपा के लिए एक सेटबैक से कम नहीं है क्योंकि कुमारी शैलजा को लेकर भाजपा कांग्रेस के खिलाफ एक नैरेटिव गढ़ रही थी कि देश की सबसे पुरानी पार्टी में दलितों को सम्मान और स्थान नहीं मिलता। पहले शैलजा को मनाकर और फिर अंत समय अशोक तंवर को पार्टी में शामिल कर कांग्रेस ने भाजपा के इस नैरेटिव की हवा निकाल दी.

बहरहाल अब जिसकी जो हवा निकलनी थी, निकल चुकी। वोटरों ने भी अब मन बना लिया होगा कि उसे किसे वोट देना है, अब कल सुबह जाकर उसे बस अमलीजामा पहनाना है. फिलहाल ज़मीन पर तो हरियाणा में कांग्रेस ही कांग्रेस नज़र आ रही है, EVM में नज़र आयेगी या नहीं बड़ा सवाल यही है और इसके लिए आठ अक्टूबर का इंतज़ार रहेगा, फिलहाल कल शाम एग्जिट पोल का मज़ा उठाने की तैयारी कीजिये।

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