- नवेद शिकोह
उत्तर प्रदेश में कोरोना संक्रमण के खराब हालात के दौरान लखनऊ की हालत बद से बदतर होती जा रही है। दिखाई देने वाली जमीनी हकीकत के विपरीत दो दिन से सरकारी आकड़ों में संक्रमण के मामलों में पहले की अपेक्षा कुछ गिरावट आई है। आलाधिकारियों ने चिकित्सा सुविधाओं को बेहतर ढंग से संचालित करने का दावा भी किया है। राहत देने वाली इस खबर को ज़मीनी हक़ीकत तो झुठला ही रही है योगी सरकार के एक मंत्री ने ही सरकार के दावों को बाक़ायदा झुठला दिया है।
अपनी सरकार की लचर व्यवस्था को सच का आईना दिखाने वाले कानून मंत्री बृजेश पाठक ने अपने मंंत्री पद के साथ न्याय करके परेशान जनता का दिल जीत लिया है। लखनऊ की जनता और खुद की लाचारी को बयान करके श्री पाठक की साफगोई ने ये भी साबित कर दिया कि यूपी सरकार में नौकरशाहों और जनप्रतिनिधियों के बीच सामंजस्य नहींं है। जनता के विश्वास पर जनप्रतिनिधि बने विधायक/सांसद और मंत्री जनता की तकलीफों को दूर करना यदि चाहते भी हैं तो सरकारी मशीनरी/नौकरशाही की एकलाचलों कार्यप्रणाली हर मोर्चे पर फेल हो रही है। अफसर जनप्रतिनिधियों की एक नहीं सुनते। जमीनी हालात नहीं जानना चाहते। कोरोना से बिगड़ते खराब हालत पर आकड़ों की बाजीगरी का पर्दा डाल देना चाहते हैं।
यूपी के स्वास्थ्य मोहकमे पर सवाल उठाने वाले कानून मंत्री बृजेश पाठक ने चिकित्सा एंव स्वास्थ्य विभाग के अपर मुख्य सचिव को लिखे पत्र में कोविड संक्रमण के क़हर में प्रदेश में बिगड़ते हालात में लखनऊ के बद से बदतर हालात को बयां करते हुए बदतर स्वास्थ्य सेवाओं की पोल खोल दी है। उन्होंने अपने विधासभा क्षेत्र के निवासी विख्यात इतिहासकार योगेश प्रवीन की एंबुलेस के आभार में मौत पर अफसोस ज़ाहिर किया। इसकी सफाई में यूपी के स्वास्थ्य मंत्री ने अजीबोगरीब सफाई देते हुए कहा कि जाम के कारण योगेश प्रवीन जी के लिए एंबुलेंस देर से पंहुची। जबकि सच ये था कि कहीं इतना जाम था ही नहीं कि पांच घंटे एंबुलेस देर से पंहुचे।
बृजेश पाठक ने कोरोनों की तबाही में राजधानी लखनऊ में मची हाहाकार को को लेकर मुख्य सचिव चिकित्सा एवं स्वास्थ्य और प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा को जो खत लिखा वो लीक होकर सोशल मीडिया में वायरल हो गया। पत्र में राजधानी लखनऊ में स्वास्थ्य सेवाओं की खराब हालत पर जताई चिंताते हुए उन्होंने लिखा कि परेशान मरीजों और तीमारदार मदद के लिए कई दिनों से लगातार फोन पर फोन कर रहे किंतु वो चाह कर भी उनकी मदद नहीं कर पा रहे हैं। सीएमओ कार्यालय लखनऊ में फोन पर कोई रिस्पांस नहीं मिलता। मरीजों को एंबुलेंस ना मिलने की लगातार शिकायतें मिल रही हैं। कोरोना जांच बहुत मुश्किल से हो.पा रही है, हो भी जाए तो चार से सात दिन लग जाये हैं। किडनी, लीवर, कैंसर जैसी सीरियस बीमारियों से पीड़ित मरीजों के इलाज के लिए इंतजाम नहीं है। इतिहासकार योगेश प्रवीन के निधन के पीछे भी सस्वास्थ्य विभाग की लापरवाही सामने आई है।
उन्होंने लिखा कि राजधानी वासियों की शिकायत हकीकत है।राजधानी के निजी पैथालॉजी सेंटर लगभग ठप्प पड़े हैं। सोशल मीडिया पर वायरल कानून मंत्री का ये ख़त लखनऊ की डरावनी हकीकत का आइना कहा जा रहा है।