अमित बिश्नोई
20 जनवरी को डोनाल्ड ट्रंप दूसरी बार अमेरिका के राष्ट्रपति पद की शपथ लेंगे। ट्रंप ने अपने शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने के लिए चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग समेत कई वैश्विक नेताओं को आमंत्रित किया है हालांकि इस सूची में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम नहीं है, जिससे राजनीतिक और कूटनीतिक हलकों में चर्चा तेज हो गई है, होनी भी चाहिए क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी खुद को डोनाल्ड ट्रम्प का दोस्त मानते हैं, ट्रम्प से उनके बड़े अच्छे रिश्ते हैं, इतने अच्छे रिश्ते कि कभी वो खुद को अमरीका जाकर ट्रम्प का चुनाव प्रचार करने से रोक नहीं पाए थे, ये अलग बात है कि भारतवंशियों पर उनके नारे अबकी ट्रम्प सरकार का कोई असर नहीं पड़ा था और ट्रम्प चुनाव हार गए थे, शायद यही वजह रही होगी कि इस बार मोदी जी अपने दोस्त का चुनाव प्रचार करने नहीं गए और संयोग देखिये कि ट्रम्प चुनाव जीत भी गए। हालाँकि वो अमेरिका के ऐसे राष्ट्रपति बन गए हैं जिनको अपराध करने के लिए सजा मिल चुकी है मगर उन्हें जेल नहीं भेजा गया है, भेजा भी नहीं जा सकता क्योंकि अमेरिका का कानून ही कुछ ऐसा है, कल जज ने सजा सुनाते हुए कहा भी कि उनके हाथ कानून से बंधे हुए हैं.
सितंबर 2024 में जब अमेरिकी राष्ट्रपति पद की दौड़ में कमला हैरिस और डोनाल्ड ट्रंप आमने-सामने थे तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अमेरिका दौरा हुआ था , लेकिन वो दौरा व्यक्तिगत या किसी सरकार के निमंत्रण पर नहीं हुआ था, प्रधानमंत्री मोदी संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में भाग लेने न्यूयॉर्क गए थे। कहा जाता है कि उस समय डोनाल्ड ट्रंप ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा था कि वह भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने की इच्छा रखते हैं क्योंकि ट्रंप का मानना था कि प्रधानमंत्री मोदी से उनकी मुलाकात उन्हें चुनाव में मज़बूती देगी और भारतवंशियों में उनकी छवि में सुधार होगा। उस समय ट्रम्प को अर्जेंटीना के राष्ट्रपति, हंगरी और इटली की प्रधानमंत्री जैसे वैश्विक नेताओं से समर्थन मिल रहा था और वो उनसे मुलाकात भी कर रहे थे , इसलिए प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात कर ट्रम्प अपनी छवि को बेदाग़ दिखाने के प्रयास में थे। मोदी से मुलाकात होने से ट्रंप के समर्थकों और आम अमेरिकी जनता के बीच एक बड़ा संदेश जाता। जब ट्रंप ने पीएम मोदी से मिलने की इच्छा जताई तो भारतीय राजनयिकों के सामने एक मुश्किल सवाल खड़ा हो गया। 2019 में ‘हाउडी मोदी’ कार्यक्रम के दौरान ट्रंप की अप्रत्यक्ष चुनावी बढ़त को मान बैठना कूटनीतिक गलती माना गया। भारतीय विदेश मंत्रालय ने फैसला किया कि अमेरिकी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों से दूरी बनाए रखना भारत के दीर्घकालिक हित में होगा। दूसरे चुनाव में कांटे की टक्कर दिख रही थी, ट्रम्प की जीत को यकीनी नहीं माना जा रहा था.
अगर प्रधानमंत्री मोदी ट्रंप से मिलते और कमला हैरिस राष्ट्रपति पद चुनाव जीत जातीं तो इसका भारत-अमेरिका संबंधों पर नकारात्मक असर पड़ सकता था। यही वजह थी कि ट्रम्प से प्रधानमंत्री मोदी की मुलाकात को टाल दिया गया। ट्रंप ने इस इंकार को अपना अपमान माना, उन्हें अपने दोस्त से इस बात की उम्मीद नहीं थी. ट्रंप चुनाव जीत गए और अब वे दोबारा राष्ट्रपति पद की शपथ लेने जा रहे हैं और शपथ ग्रहण समारोह में उन्हीं नेताओं को आमंत्रित किया है जो वैचारिक रूप से उनके करीब हैं या जिन्होंने उनका खुलकर समर्थन किया है लेकिन उसमें प्रधानमंत्री मोदी का नाम नहीं है जिसका मतलब ट्रम्प ने मुलाकात वाली बात को दिल पर लिया है, यहाँ तक चीन के साथ बिगड़ते संबंधों के बावजूद ट्रंप ने राष्ट्रपति शी जिनपिंग को आमंत्रित किया, हालांकि जिनपिंग ने अपने एक वरिष्ठ प्रतिनिधि को भेजने का फैसला किया है।
प्रधानमंत्री मोदी को आमंत्रित न किए जाने की अटकलों के बीच विदेश मंत्री एस. जयशंकर दिसंबर के आखिर में अमेरिका गए थे। उन्होंने ट्रंप प्रशासन की ट्रांजिशन टीम और अन्य शीर्ष अधिकारियों से मुलाकात की। भारत सरकार ने स्पष्ट किया कि यह दौरा दोनों देशों के बीच संबंधों को मजबूत करने के लिए था। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि विदेश मंत्री के वाशिंगटन डीसी दौरे का उद्देश्य पिछले कुछ वर्षों में भारत-अमेरिका व्यापक वैश्विक रणनीतिक साझेदारी में हुई प्रगति की समीक्षा करना था। हालाँकि राजनीतिक हलकों में खबर यही गश्त कर रही है कि एस जयशंकर बिगड़े मामले को बनाने गए थे ताकि ट्रम्प के शपथ ग्रहण समारोह में आधिकारिक रूप से भारत के प्रधानमंत्री को निमंत्रण भेजा जाय.
कहा जा रहा है कि अमेरिका के साथ भारत सरकार के संबंध किसी एक राजनीतिक दल तक सीमित न रहें, यही मोदी सरकार की कोशिश है। ट्रंप और मोदी के बीच भले ही संबंध अच्छे रहे हों लेकिन भारत ने उन संबंधों को एक तरफ रखकर अपना कूटनीतिक संतुलन बनाए रखने का फैसला किया। शपथ ग्रहण समारोह में पीएम मोदी की अनुपस्थिति का कोई दीर्घकालिक प्रभाव पड़ेगा या नहीं यह तो समय ही बताएगा। हालाँकि सरकार का कहना है व्हाइट हाउस में ट्रंप हों या कोई और, भारत-अमेरिका संबंध मजबूत बने रहेंगे। यह बात अपनी जगह बिलकुल सही है क्योंकि ट्रम्प का चुनाव प्रचार करने के बावजूद बिडेन सरकार के मोदी सरकार से सम्बन्ध अच्छे ही रहे हैं लेकिन इस बार के चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने ट्रम्प से जो दूरी बनाई उसे किसी और नज़रिये से देखा जा रहा है. पिछली बार हाउ डी मोदी में इस तरह खुले आम ट्रम्प के प्रचार करना किसी भी देश के प्रधानमंत्री के लिए सही नहीं कहा जा सकता। जो बिडेन ने कभी यह महसूस नहीं होने दिया कि वह पीएम मोदी के इस रव्वैये से नाखुश हैं लेकिन ट्रम्प ने पीएम मोदी को दोस्त होने के बावजूद अपने शपथ ग्रहण समारोह में न बुलाकर यह ज़रूर जता दिया है कि दोस्ती एकतरफा है.