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इंडिया अलायन्स में बनती बातें!

आर्टिकल/इंटरव्यूइंडिया अलायन्स में बनती बातें!

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अमित बिश्नोई
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी से सीट शेयरिंग फाइनल, दिल्ली-हरियाणा में आम आदमी पार्टी से सीटों का एडजस्टमेंट फाइनल, बकौल जयराम रमेश बंगाल में भी बस औपचारिक एलान आना बाकी, महाराष्ट्र में पहले ही उद्धव और शरद से बातचीत लॉक हो चुकी है, कुल मिलाकर कहने का मतलब ये है कि एक हफ्ता पहले जब ये लग रहा था कि इंडिया गठबंधन बिखरने की कगार पर पहुँच चुका, फिर एकजुट होता नज़र आ रहा है. बेशक कांग्रेस पार्टी को इसमें काफी समझौते करने पड़ रहे हैं लेकिन ये उसके लिए मजबूरी भी है और वक्त का तकाज़ा भी है.

अभी कुछ समय पहले ही ममता बनर्जी ने अलग राह पकड़ ली थी, आम आदमी पार्टी भी अलग राग अलापने लगी थी और तो और अखिलेश यादव के सुर भी कांग्रेस के प्रति बदल गए थे लेकिन एक हफ्ते के अंदर ऐसा बहुत कुछ हो गया जिसने नाराज़गी का बिगुल बजाने वाले इन सभी क्षेत्रीय क्षत्रपों को कांग्रेस या फिर इंडिया गठबंधन के साथ आने पर मजबूर कर दिया। इस बीच सिर्फ बिहार ही ऐसा प्रदेश रहा जहाँ इंडिया गठबंधन मज़बूती से जमा रहा, बावजूद इसके कि नितीश कुमार के सहारे भाजपा ने बिहार में इंडिया अलायन्स को सबसे ज़्यादा चोट पहुँचाने की कुत्सित कोशिश की मगर तेजस्वी यादव के नेतृत्व में बिहार में इंडिया गठबंधन चट्टान की तरह मज़बूत रहा, ये अलग बात है कि सत्ता हाथ से खोने पड़ी और साथ में नितीश कुमार को भी. वैसे ये बहस का विषय है नितीश को खोकर इंडिया गठबंधन ने वाकई कुछ खोया है या फिर खोकर बहुत कुछ पाया है.

ममता बनर्जी जो राहुल गाँधी के बंगाल दौरे से बहुत नाराज़ थीं, हालाँकि राहुल गाँधी ने बंगाल में भारत जोड़ो यात्रा के दौरान ममता के खिलाफ एक शब्द भी नहीं कहा था, हाँ ! तारीफ भी नहीं की थी, बंगाल में भी राहुल के निशाने पर भाजपा और मोदी ही थे, फिर भी ममता नाराज़ थीं. ममता अक्सर नाराज़ ही रहती हैं, उनकी शायद राजनीति ही नाराज़गी वाली है. बहरहाल इस बीच संदेशखाली की घटना ने ममता को थोड़ा बैकफुट पर ला दिया। इस मौके पर उन्हें एक मज़बूत साथ की ज़रुरत महसूस हुई और इंडिया गठबंधन से मज़बूत साथ उन्हें कहाँ मिल सकता था यही वजह है कि कांग्रेस के साथ दो सीट वाली बात अब पांच सीट पर पहुँचती हुई दिखाई दे रही है. ऐसी ख़बरें हैं कि ममता बनर्जी कांग्रेस पार्टी को पांच लोकसभा सीटें छोड़ने को तैयार हैं। आज हुई वसूली भाई वाली पत्रकार वार्ता में कांग्रेस पार्टी के महासचिव जयराम रमेश ने इस बात का खुलासा भी किया कि TMC से बातचीत फाइनल हो चुकी और औपचारिक एलान जल्द हो जायेगा।

यूपी से समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का गठबंधन भी अब लॉक हो चूका है और सीटें भी, जयंत चौधरी का दिया झटका अखिलेश के लिए किसी शॉक से कम नहीं था, बहरहाल कांग्रेस पार्टी को इसका फायदा मिला और पहले जो 11 सीटें मिलने वाली थी वो बढ़कर 17 हो गयीं। कांग्रेस को जयंत चौधरी का एहसान मानना चाहिए। वो भाजपा के साथ न जाते तो कांग्रेस को इतनी सीटों पर चुनाव लड़ने का मौका भी न मिलता। यहाँ पर सपा को भी एक तरह से फायदा हासिल हुआ और मध्य प्रदेश की एक सीट उनके हिस्से में आ गयी. कमलनाथ के हटने से शायद ऐसा संभव हुआ क्योंकि विधानसभा चुनाव में कमलनाथ की वजह से सपा से गठबंधन अंतिम समय पर टूट गया था जिसका एक तरह से कांग्रेस पार्टी को काफी नुक्सान हुआ।

देश के अन्य राज्यों की बात करें तो पंजाब में मामला फंसा हुआ है। दिल्ली-हरियाणा में कांग्रेस से तालमेल करने वाली AAP पंजाब में कांग्रेस को वापसी का मौका नहीं देना चाहती। इसीलिए उसने पंजाब में गठबंधन से साफ़ इंकार कर दिया है, कांग्रेस पार्टी भी पंजाब को लेकर कोई समझौता करने के मूड में नहीं है और वो भी आम आदमी पार्टी को लोकसभा चुनाव में कोई अवसर नहीं देना चाहती। महाराष्ट्र में कांग्रेस, शरद और उद्धव के बीच 19-20 के साथ विधानसभा वाला फार्मूला ही फाइनल है. दक्षिण में तेलंगाना और कर्नाटक में कांग्रेस की सरकारें हैं, यहाँ किसी क्षेत्रीय क्षत्रप से समझौते की कोई गुंजाईश नहीं है, तमिल नाडु में स्टालिन की पार्टी से समझौता है, कांग्रेस यहाँ पर ज़िद करने की हालत में नहीं है और न ही इस तरह की कोई खबर है. तेलंगाना में जीत के बाद आंध्रा प्रदेश में ज़रूर कांग्रेस पार्टी उम्मीद लगाए हुए है, हालाँकि यहाँ भी किसी से समझौते की कोई बात नहीं है. आंध्रा में वाई एस आर कांग्रेस और TDP-BJP गठबंधन आमने सामने है लेकिन कांग्रेस इसबार मुकाबले को त्रिकोणीय बनाएगी ये पक्की बात है. बहरहाल जो ख़बरें आ रही हैं उनके मुताबिक 15 मार्च के बाद चुनाव की घोषणा हो सकती है लेकिन उससे पहले इंडिया गठबंधन का पटरी पर आना न सिर्फ संयुक्त विपक्ष के लिए एक सुखद खबर है बल्कि भाजपा के लिए चिंता बढ़ाने वाली भी है.

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