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वरुण की उम्मीदवारी पर सस्पेंस

आर्टिकल/इंटरव्यूवरुण की उम्मीदवारी पर सस्पेंस

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अमित बिश्नोई
लोकसभा चुनाव के पहले दौर के मतदान के लिए अधिसूचना जारी हो चुकी है, आज से नॉमिनेशन भी शुरू हो चुके हैं. उत्तर प्रदेश की आठ सीटों के लिए भी आज से नॉमिनेशन शुरू हो चुके हैं। इन आठ सीटों में एक लोकसभा सीट पीलीभीत की भी है जहाँ गाँधी फैमिली के चश्मोचिराग़ वरुण गाँधी सांसद हैं। भाजपा के सांसद रहते हुए भी वरुण गाँधी ने पिछले पांच सालों में अपनी ही पार्टी के खिलाफ बयानबाज़ी करके, सरकार की नीतियों की आलोचना करके पार्टी को कई बार असहज किया है. कई बार तो वरुण गाँधी इतना खुलकर बोले हैं कि लोगों को इस बात पर हैरानी होने लगी कि उनके खिलाफ पार्टी अनुशासनात्मक कार्रवाई क्यों नहीं करती. भाजपा ने वरुण गाँधी को लेकर पिछले पांच सालों में बिलकुल चुप्पी साधे रखी, ये अलग बात है कि उन्हें अलग थलग भी कर दिया। वरुण गाँधी एक समय भाजपा के स्टार प्रचारकों में हुआ करते थे लेकिन बाद में वो प्रचारक भी नहीं रहे, इन सब बातों को देखते हुए राजनीतिक हलकों में ये बात आमतौर पर चलने लगी कि 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा क्या वरुण गाँधी पर फिर भरोसा करेगी या फिर गाँधी फैमिली से छुटकारा पा लेगी।

दरअसल इस बात ने ज़ोर इसलिए भी और पकड़ लिया है क्योंकि पीलीभीत पर भाजपा ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं. तो सवाल उठ रहे हैं कि पीलीभीत से भाजपा उम्मीदवार इस बार कौन? वरुण या कोई और. भाजपा और वरुण में सबकुछ ठीक नहीं है , खासकर तब जब वरुण के लिए सपा मुखिया अखिलेश यादव ने भी कहा है कि पार्टी के दरवाज़े खुले हुए हैं. अखिलेश ने ये बात तब कही जब उनसे सवाल किया गया कि क्या वरुण गाँधी पीलीभीत से इस बार साइकिल पर सवार दिख सकते हैं. सपा हेडक्वार्टर से निकलने वाली ख़बरों के मुताबिक पीलीभीत के लिए अभी उम्मीदवार फाइनल नहीं हुआ है, वेट एंड वाच का खेल चल रहा है। गंठबंधन में पीलीभीत सीट सपा के खाते में है और सपा भाजपा की तरफ देख रही है कि पहले वो पीलीभीत से उम्मीदवारी का एलान करे.

जो जानकारी सामने आ रही है उसके हिसाब से पीलीभीत के जो नाम सपा की तरफ से शॉर्टलिस्ट किये गए हैं उनमें एकनाम वरुण गाँधी का भी है. बावजूद इसके कि वरुण अभी तक भाजपा में ही हैं और न ही उनकी तरफ से सार्वजानिक तौर पर ऐसा कोई संकेत दिया गया है कि भाजपा छोड़ सकते हैं, हालाँकि भाजपा की तरफ से ऐसे कई संकेत मिल रहे हैं कि वरुण गाँधी का पत्ता साफ़ हो सकता है. फिलहाल शह और मात का खेल चल रहा है। चुनावी राजनीति में कई बार अंतिम समय पर फैसले लिए जाते हैं। अपने से ज़्यादा सामने वाले पर नज़र रखी जाती है और वरुण गाँधी के मामले में कुछ वैसा ही चल रहा है. ऊँट किस करवट बैठेगा अभी साफ़ नहीं हुआ है लेकिन अखिलेश यादव ने सार्वजानिक मंच से जिस तरह वरुण गाँधी पर पूछे गए सवाल का जवाब दिया है, राजनीतिक पंडित उसमें छुपा हुआ वरुण गाँधी का भविष्य तलाश रहे हैं. अखिलेश का ये कहना कि भाजपा किसे टिकट देती है ये उसका मामला है, जब ऐसा समय आएगा तो संगठन उसपर फैसला करेगा। अखिलेश की बात का साफ़ मतलब निकाला जा सकता है कि वरुण को लेकर राजनीतिक गलियारों में जो खुसफुसाहट सुनाई दे रही है उसमें कहीं न कहीं कुछ न कुछ सच्चाई ज़रूर है। बस रणनीति के तहत एलान किसी भी तरफ से नहीं हो रहा है.

इससे पहले भी वरुण गाँधी के कई बार कांग्रेस में जाने की बातें कही गयी हैं, कई बार बताया गया है कि प्रियंका गाँधी वरुण को कांग्रेस में लाना चाह रही हैं, रूकावट चाची यानि मेनका की तरफ से आ रही. इसबार भी कहा जा रहा है कि रायबरेली या अमेठी से वरुण गाँधी चुनावी मैदान में उतारे जा सकते हैं. हालाँकि कांग्रेस पार्टी की तरफ से इसपर ख़ामोशी ही है लेकिन खबर कहिये या अफवाह, वरुण गाँधी को लेकर हवा में बातें तो बहुत सी हैं. अब चूँकि अखिलेश ने वरुण गाँधी को लेकर एक बयान दिया है और पीलीभीत सीट को लेकर अभी तक सपा और भाजपा अपने पत्ते नहीं खोल रही हैं, वरुण गाँधी को लेकर चल रही बातों को दरकिनार नहीं किया जा सकता। पीलीभीत के लिए नामांकन शुरू हो चुके हैं, आखरी तारीख 27 मार्च है तो देखना होगा कि वरुण गाँधी को लेकर वेट एंड वाच का पीरियड कब ख़त्म होगा।

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