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अभी तो ये अंगड़ाई है

आर्टिकल/इंटरव्यूअभी तो ये अंगड़ाई है

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अमित बिश्नोई
18वीं लोकसभा की शुरुआत टकराव से हुई है, जो नज़ारा सदस्यों के शपथ ग्रहण के बाद स्पीकर के चुनाव के दिन दिखा उसने साफ़ कर दिया कि अभी तो ये अंगड़ाई है, आगे बहुत लड़ाई है. स्पीकर पद के लिए अपना उम्मीदवार खड़ा करने के बावजूद विपक्ष ने सदन में मत विभाजन पर ज़ोर नहीं दिया हालाँकि ध्वनि मत से चुनाव में ओम बिरला के नाम पर विपक्ष ने ज़ोरदार ‘नो’ कहा और बाद में एनसीपी शरद पवार गुट की सुप्रिया सुले ने इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार के सुरेश के पक्ष में प्रस्ताव भी पढ़ा और कहा कि वो स्पीकर के पद पर के. सुरेश के नाम का समर्थन करती हैं, मतलब ये बात स्पष्ट हो गयी कि ओम बिरला सहमति वाले स्पीकर नहीं हैं. वो अब जब भी संसद में इस बात को कहेंगे कि मुझे तो आप लोगों ने ही स्पीकर बनाया है तब विपक्ष ये कह सकता है कि नहीं ऐसा नहीं है, मैंने तो विरोध किया था.

संसद में स्पीकर पद पर ओम बिरला की नियुक्ति पर नेता विपक्ष राहुल गाँधी और अखिलेश यादव समेत इंडिया गठबंधन के उन सभी नेताओं ने लोकसभा अध्यक्ष को मुबारकबाद दी जिन्हें बोलने का मौका मिला, मगर इशारों इशारों में उन्हें ये भी बताया कि पिछले पांच सालों में उन्होंने इस पद पर रहकर क्या क्या किया। राहुल गाँधी ने पहली बार विपक्ष के नेता के रूप बोलते हुए स्पष्ट तौर पर कहा कि बेशक लोकतंत्र में सरकार एक पावर होती है लेकिन विपक्ष भी जनता की आवाज़ होती है और इस बार विपक्ष के पास जनता की ज़्यादा आवाज़ है, जनता ने उसे संविधान की रक्षा करने की ज़िम्मेदारी दी है. राहुल गाँधी ने ये भी याद दिलाया कि संसद को सफलता से चलाना ही बड़ी बात नहीं होती, बड़ी बात वो होती है कि संसद में जनता के मुद्दों पर कितनी बात हुई, जनता की समस्याओं पर विपक्ष को बोलने का कितना मौका दिया गया.

संख्या बल के हिसाब से देश की सबसे बड़ी तीसरी पार्टी के रूप में उभरी समाजवादी पार्टी के मुखिया ने भी अपने विशेष अंदाज़ में ओम बिरला को मुबारकबाद दी और कहा कि वो उम्मीद करते हैं कि स्पीकर महोदय अपने इशारों पर सदन को चलाएंगे, किसी और के इशारों पर नहीं। दरअसल पिछले पांच सालों पर ओम बिरला पर यही आरोप लगता रहा है कि सदन के अंदर जब भी विपक्ष हावी होता है और सरकार फंसती है तो स्पीकर महोदय सत्ता पक्ष की पहली बेंच पर बैठे नेताओं की तरफ देखते हुए नज़र आते थे. अखिलेश ने ये कहकर कि उन्हें उम्मीद है कि इस बार सदस्यों के निष्काषन जैसी घटनाये सदन में नहीं होंगी और स्पीकर महोदय विपक्ष के नेताओं के साथ भेदभाव नहीं करेंगे और उन्हें बोलने का पूरा मौका देंगे। राहुल और अखिलेश के बाद भी विपक्ष के लगभग सभी नेता स्पीकर महोदय को सलाह देते और पुरानी बातें याद दिलाते नज़र आये.

लेकिन सरकार भी अपनी तैयारी में दिखी, स्पीकर महोदय ने इमरजेंसी की बात छेड़कर सरकार के इरादों को ज़ाहिर कर दिया कि इसबार भी सरकार उसी तेवर में चलेगी जैसी पिछले 10 वर्षों से चल रही थी. प्रधानमंत्री मोदी भले ही सदन के बाहर पत्रकारों से आम सहमति की बात करते हैं लेकिन उनके कहने और करने में ज़मीन आसमान का अंतर है. उन्होंने विपक्ष से साथ किसी भी मसले पर आम सहमति नहीं बनाई, न ही प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति पर और न ही स्पीकर के चुनाव पर. कहने को तो प्रधानमंत्री मोदी ने राजनाथ सिंह को विपक्ष के नेताओं के साथ स्पीकर को लेकर आम सहमति के लिए बात करने भेजा मगर वहां पर आम सहमति नहीं बल्कि आदेश और निर्देश की बात थी, विपक्ष के नेताओं को सिर्फ ये बताने के लिए कि स्पीकर पर सरकार का ये फैसला है, आप सहमत हैं तो ठीक वरना कोई बात नहीं। बातचीत में खड़गे ने स्पष्ट रूप से विपक्ष की मंशा बता दी थी, कि डिप्टी स्पीकर हमें दीजिये और स्पीकर पर सहमति लीजिये लेकिन सरकार को ये मंज़ूर नहीं था. यही वजह है विपक्ष ने सांकेतिक रूप से के सुरेश की उम्मीदवारी घोषित कर सरकार को ये सन्देश दिया कि बेशक संख्या बल आपके पास है लेकिन विपक्ष इसबार असहाय नहीं है. सरकार को हर मोड़ पर विपक्ष के चैलेंजों का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। दस साल से चले आ रहे taken for granted का दौर अब चला गया.

विपक्ष के नेता के तौर राहुल गाँधी द्वारा कही गयी ये बातें कि सरकार के पास राजनीतिक शक्ति है लेकिन विपक्ष भी भारत के लोगों की आवाज़ का प्रतिनिधित्व करता है , इस बार पिछली बार की तुलना में काफी अधिक देशवासियों की आवाज़ का प्रतिनिधित्व करेगा। कुशल सदन संचालन की बखिया उधेड़ते हुए ये कहना कि विपक्ष की आवाज़ को बंद करके सदन को कुशलतापूर्वक चलाना एक गैरलोकतांत्रिक विचार है और ये कहना कि इस चुनाव ने ये साबित कर दिया कि देश के लोग विपक्ष से संविधान की रक्षा करने की उम्मीद करते हैं, साबित करता है कि सदन में आगे किस तरह का माहौल होने वाला है. पहली बार नेता सदन और नेता विपक्ष के रूप में मोदी और राहुल आमने सामने होंगे, दोनों की राजनीती में आक्रमकता है और जहाँ पर आक्रमकता होती है वहां पर टकराव तो हर हाल में होता है।

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