अमित बिश्नोई
शपथ ग्रहण के बाद मोदी सरकार की कैबिनेट फाइनल हो गयी, सबको उनकी औकात के हिसाब से मंत्रालय आबंटित हो गए. किसी को औकात से बढ़कर मिला तो किसी को उसकी औकात दिखा दी गयी. अगर संख्या बल की बात करें तो कई पार्टियों को सिर्फ दो सदस्यों पर एक कैबिनेट मंत्रालय मिल गया, यहाँ तक कि एक सदस्य वाली पार्टी को भी कैबिनेट मंत्री बनाया गया वहीं शिवसेना शिंदे जैसी पार्टी के सात सदस्य होने के बावजूद कैबिनेट दर्जे के काबिल नहीं समझा गया, एनसीपी को भी इसके काबिल नहीं समझा गया. अब ये तो दर्जे की बात हुई, असली बात तो मंत्रालय के आबंटन की थी जिसमें प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी मंशा साफ़ ज़ाहिर कर दी कि अपने सहयोगियों के साथ वो आगे क्या करने जा रहे हैं या फिर क्या कर सकते हैं. खासकर अपने बड़े सहयोगियों तेदेपा और जदयू जिनके दम पर मोदी जी तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने में कामयाब हुए. मंत्रालय के आबंटन के बाद एक बात साफ़ तौर उभर कर आ गयी कि चंद्रबाबू नायुडु और नितीश कुमार ने शेर की सवारी कर ली है, बैठे रहे तो खतरा और नीचे उतरे तो भी खतरा।
सरकार के गठन और फिर उसके बाद मंत्रालय के आबंटन से पहले बड़ा शोर था कि मोदी जी को दोनों बैसाखियों को साधने के लिए बड़े समझौते करने पड़ेंगे। मंत्रालयों के आबंटन पर इस बार उनकी मनमर्ज़ी नहीं चल पायेगी। टॉप मंत्रालयों पर इस बार सिर्फ भाजपा का कब्ज़ा नहीं होगा लेकिन कल जब सूची सामने आयी तो पिछले कई दिनों से चल रही सारी बातें अफवाह साबित हो गयी. सहयोगियों को एक भी अहम विभाग नहीं मिला। गृह, वित्त, विदेश, रेल, पावर, एजुकेशन, हेल्थ जैसे सभी मुख्य मंत्रालय मोदी जी ने अपने ही पुराने साथियों को सौंपे. अमित शाह हो, राजनाथ सिंह हों, इस जयशंकर प्रसाद हों, नितिन गडकरी हों या निर्मला सीतारमण, विभागों में कोई बदलाव नहीं। मतलब मोदी जी ने अपनी पूरी कोर टीम को बरकरार रखा है. अमित शाह का फिर से गृह मंत्री बनने का मतलब ED, CBI का वही रंग देखने को मिल सकता है जो पिछले दस वर्षों से देखा जा रहा है।
मोदी जी के पैर छूने वाले नितीश कुमार के सिर्फ एक सांसद को कैबिनेट मंत्रालय का दर्जा और वो भी पंचायती राज का, इसी तरह TDP के भी एक सदस्य को कैबिनेट मंत्री का पद मिला और वो भी नागरिक उड्डयन मंत्रालय, जब इन बड़े सहयोगियों को ये विभाग मिले तो बाकी सहयोगियों की तो बात करना ही बेकार है। चिराग़ पासवान कहते हैं कि कोई भी विभाग छोटा नहीं होता जबकि उनकी पार्टी का स्ट्राइक रेट 100 प्रतिशत है, पांच के पांचों उम्मीदवार सांसद बन गए. चलिए एक ही कैबिनेट मंत्री पद मिला मगर मंत्रालय तो कोई ढंग का मिलता, मिला क्या, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय। बड़ी बातें हो रही थी कि तेदेपा भारी उद्योग से कम पर राज़ी नहीं होगी, इसी तरह जदयू के लिए तो यहाँ तक कहा गया कि वो गृह मंत्रालय अपने पास रखना चाहेंगे, या रेल मंत्रालय से तो नीचे बात ही नहीं करेंगे मगर ललन सिंह को पंचायती राज सौंप कर मोदी जी ने बता दिया कि चलेगी तो उनकी ही।
अब सवाल ये उठता है कि सिर्फ नाम मात्र वाले मंत्रालयों को पाकर भी जदयू और तेदेपा खामोश क्यों हैं जबकि एनसीपी और शिवसेना शिंदे गुट ने तो विरोध जता दिया। इन दो बड़े सहयोगी दलों की क्या मजबूरी रही होगी जो एक भी अहम् मंत्रालय इन्हे नहीं मिला। मंत्रालयों का मनमाना आबंटन करके मोदी जी ने दिखा दिया कि लोकसभा स्पीकर भी भाजपा से होगा क्योंकि इसपर भी राजनीतिक गलियारों में बड़ी चर्चा हो रही है कि स्पीकर के पद के लिए तेलुगु देशम पार्टी दबाव बना रही है लेकिन लगता नहीं कि मोदी जी पर किसी का दबाव है, खैर जल्द ही सामने आ जायेगा कि वाकई तेदेपा के साथ स्पीकर के लिए कोई डील हुई है या ये भी सिर्फ अफवाह भर है. फिलहाल प्रधानमंत्री मोदी ने सहयोगियों को मंत्रालयों के रूप में झुनझुना पकड़ा दिया है और अपने इरादे भी ज़ाहिर कर दिए हैं उनके काम करने के तरीके में कोई बदलाव नहीं होने वाला। उन्हें जो तरीका आता है वो उसी तरह से काम कर सकते हैं, कुछ समय के लिए वो अपने व्यवहार में भले ही बदलाव ले आये लेकिन काम निकलने के बाद वो फिर असली रंग में आ जाते हैं.
अगर देखें तो शुरुआत हो चुकी है, पूर्णिया से सबको पीछे छोड़ निर्दलीय जीतने वाले पप्पू यादव पर रंगदारी वसूलने की FIR दर्ज हो चुकी, ये FIR कब उनकी सदस्यता को खत्म कर दे, कहा नहीं जा सकता। एक तरीका है उनके पास बचने का, भाजपा में शामिल होकर उसकी संख्या में इज़ाफ़ा कर दें. कुछ इसी तरह के केस दूसरे निर्दलीय और एक एक सदस्य वाली पार्टियों के सांसदों के खिलाफ भी दर्ज हो सकते हैं. कहने का मतलब अगले पांच 6 महीने में भाजपा की संख्या 272 के पार या उसके करीब पहुँच सकती है और उस सूरत में मोदी जी को आत्म निर्भर बनने के लिए ज़्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ेगी और तब खतरे में तेदेपा और जदयू होंगी जिन्होंने आज न जाने किन कारणों से शेर की सवारी करना बेहतर समझा लेकिन शेर की सवारी करने वालों का अंजाम क्या होता है शायद उन्हें नहीं मालूम। अगर मालूम है तो हो सकता है कि उनके पास कोई प्लान भी हो क्योंकि मोदी जी और अमित शाह की कार्यशैली से तो आज देश का बच्चा बच्चा वाकिफ हो चूका है, पिछले दस वर्षों में मोदी जी की भाजपा ने अपने सहयोगियों का क्या हश्र किया है सभी जानते हैं और अब लगता है बारी तेदेपा और जदयू की है.