पार्टी को यथास्थिति से उबरना और राजनीति का discourse बदलना होगा
उबैदुल्लाह नासिर
अन्ना मूवमेंट के बाद से भारत की राजनीति में ऐसा बदलाव आया कि ट्रेडिशनल अंदाज़ में राजनीति करने वाली सभी पार्टियों के हाथ पैर फूल गए और उनकी जड़ें हिल गयीं लेकिन सब से ज़्यादा दुर्दशा हुई देश की सब से पुरानी देश को आज़ाद कराने और फिर देश के नवनिर्माण में सब से अग्रणी भूमिका निभाने वाली भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की I वास्तव में 2004 में कांग्रेस की अप्रत्याशित जीत से संघ परिवार दुविधा में पड़ गया था उसके बाद 2009 में उससे भी अच्छी जीत मिलने से तो संघ परिवार के कान ही खड़े हो गए क्योंकि मध्यमवर्गीय जनता जो बीजेपी का सबसे मज़बूत वोट बैंक थी वह मनमोहन सिंह और सोनिया गाँधी की नेतृत्व वाली यूपीए सरकार की आर्थिक नीतियों के कारण और भी संपन्न हुआ था इसके साथ ही करीब 25 करोड़ लोग गरीबी रेखा से ऊपर लाये गए, किसानों की क़र्ज़ माफ़ी, महात्मा गाँधी ग्रामीण रोज़गार योजना, छटे वेतन आयोग की सिफारिशें लागू करने जैसे जनहित के फैसलों से उसकी लोकप्रियता बढती जा रही थी I संघ के चिंतकों की चिंताएं बढती जा रही है ऐसे में विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन में बैठे संघ समर्थित विचारकों ने बहुत सोच समझ के देश में भ्रष्टाचार का मामला उठा के उसे देश में लोकपाल की व्यवस्था लागू करने के लिए आंदोलन आरम्भ करने का निर्णय लिया और इसके लिए कथित गांधी वादी अन्ना हजारे को आगे लाया गया I अन्ना हजारे उस मूवमेंट का चेहरा बने और अरविन्द केजरीवाल का दिमाग, पीछे थी संघ परिवार की बढ़िया तेल पानी पिलाई सुसज्जित फ़ौज| इस मूवमेंट ने देश में ऐसा तहलका मचाया और टीवी चैनलों ने इसे ऐसे घर घर पहुंचा दिया जैसे लगता था अब भारत में सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र का शासन लेन से कम किसी बात पर भारतीय अवाम राज़ी नहीं होंगे I मनमोहन सरकार इस अन्दोलन से निपटने में मूर्खताओं के तमाम रिकॉर्ड तोडती चली गयी यहाँ तक की बाबा राम देव जैसे एक कथित योग गुरु लेकिन वास्तव में एक चतुर बिजनेसमैन के दिल्ली पहुँचने पर उसे हवाई अड्डे पर रिसीव करने के लिए केंद्र सरकार के चार वरिष्ट मंत्री पहुँच गए| उधर अन्ना और केजरीवाल जैसों की जिद पर लोकपाल का कानून बनाने के लिए उनकी मंत्रियों के साथ मीटिंग भी होने लगी I भ्रष्टाचार के नित नए इलज़ाम मनमोहन सरकार पर लगने लगे| देश के CAG महोदय ने तो जैसे अनुमानित घाटे में जीरो बढाने का मुकाबला शुरू कर दिया था| हंगामा जैसे जैसे बढ़ता गया वैसे वैसे सच्चाई छुपती चली गयी| अनुमानित घाटा (Presumptive loss) के अर्थ बदल के कब घपला /घोटाला हो गया और किसी को पता ही नहीं चला| पूरे सिस्टम में ऊपर से लेकर नीचे तक बैठे संघ के कार्यकर्ताओं ने अभी नहीं तो कभी नहीं के फार्मूले पर अमल करते हुए कांग्रेस और उसकी सरका की छवि इतनी धूमिल कर दी की 2009 से 2014 तक के हीरो मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी 2014 आते आते विलन बन गए और 2002 के विलन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को देश का नया तारण हार बना दिया I प्रचार माध्यमों पर कब्जा और उनके भरपूर प्रयोग का इससे बढ़िया उदाहरण मिला कठिन है I
2014 के संसदीय चुनाव में कांग्रेस को अपने इतिहास की सब से शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा| देश पर लगभग 60-65 वर्षों तक राज्य करने वाली पार्टी को इतनी कम सीटें मिलीं की वह विपक्ष के नाता की कुर्सी भी नहीं पा सकी उसके बाद से कांग्रेस आज तक मुसलसल नीचे ही गिरती जा रही है I दुखद स्थिति यह है कि अपनी इन मुसलसल असफलताओं से पार्टी ने कोई सबक नहीं लिया| कभी बीजेपी को लोकसभा में कुल दो सीटें मिली थी बहुत दिनों बाद वह दहाई में आ सकी थी और अयोध्या मूवमेंट के द्वारा देश में जबर्दस्त धार्मिक ध्रुवीकरण कराकर भी दूसरी पार्टियों के सहयोग और अपने कोर इश्यूज को छोड़ कर ही सत्ता पा सकी थी लेकिन उसके नेताओं और कार्यकर्त्ताओं में कभी ऐसे बेहिम्मती और अदूरदर्शिता और बदलाव से डर देखने को नहीं मिला जैसा कांग्रेस में दिखाई दे रहा है I बेशक सोनिया जी के नेतृत्व में ही 2004 में कांग्रेस दुबारा सत्ता में आ सकी थी पार्टी के कार्यकर्ताओं में ही नहीं कांग्रेस के supporters में भी नेहरु गाँधी परिवार को ले कर जो आस्था और प्रेम है वह इतनी हार के बाद भी डिगा नहीं है जो डरपोक और लालची कांग्रेसी थे वह भले ही डूबते जहाज़ के चूहों की तरह पार्टी छोड़ गए हैं लेकिन आम कार्यकर्त्ता अब भी पार्टी के नेतृत्व उसकी पॉलिसियों और विचारधारा पर अडिग विश्वास रखता है I देश विगत सात वर्षों के मोदी राज्य में जिस स्थिति को पहुँच गया है उससे आम नागरिक के साथ ही साथ कांग्रेस का हर छोटा बड़ा कार्यकर्त्ता भी चिंतित है I सब इससे भी सहमत हैं कि देश को इस भंवर से सिर्फ कांग्रेस ही निकाल सकती है,लेकिन कांग्रेस को इस नयी तरह की राजनीति जो मोदी के नेतृत्व में शुरू हुई जिसमें न देश की भावनात्मक एकता को संजोये रखने की चाहत है न ही भाषा कि मार्यादा का ध्यान है न ही आम शिष्टाचार जो केवल प्रचार तंत्र के सहारे सच को झूठ और झूठ को सच बनाने में माहिर है उस से कैसा निपटा जाये I
इसके लिए कांग्रेस को अपने ढाँचे में मूल भूत बदलाव लाने होंगे विचारधारा के प्रति ठोस लगाव जनता के हित के लिए सड़क पर उतर कर संघर्ष करने अपने इतिहास और देश के लिए की गयी कुर्बानियों और देश के निर्माण में किये गए कामों के साथ ही साथ संघ परिवार के इतिहास को भी जनता के सामने तथ्यात्मक ढंग से रखना होगा I मोदी सरकार ने किस प्रकार देश को आर्थिक तौर से खोखला समाजी तौर से बिखरा और सुरक्षा के मैदान में किस प्रकार देश की सरहदों को असुरक्षित बना दिया है इसके ठोस सुबूत जनता के सामने रखना होंगे I मोदी सर्कार का देश के प्रचार तंत्र पर एक क्षत्र अधिकार है इसके काट के उपाय भी कांग्रेस को सोचने होंगे और सब से बड़ी बात पार्टी के ढाँचे को ऊपर से नीचे तक लोकतांत्रिक बनाना होगा I बेशक नेहरु गाँधी परिवार पार्टी के लिए अपरिहार्य है उसके बिना कांघ्रेस एक रह ही नहीं सकती I कांग्रेस के नेत्रित्व किसी के हाथ में हो नेतृत्व और नम्बर एक की पोजीशन सोनिया गांधी राहुल गाँधी और प्रियंका गांधी की कहीं जा नहीं सकती I इस लिए पार्टी के हक में यही बेहतर होगा की पार्टी के नए अध्यक्ष का चुनाव लोकतांत्रिक ढंग से कराया जाए वह भी केवल दो वर्षों के लिए और कोई भी अध्यक्ष दो टर्म से ज्यादा पद पर न रहने का कानून बनाया जाए I पार्टी में यथास्थित को अगर बरक़रार रखा गया तो पार्टी संघ परिवार के दोषारोपण के जावाब में ही फंसी रहेगी और कुछ नया नहीं कर सकेगी I यही समय है कि पार्टी के ढाँचे में क्रांतिकारी बदलाव किये जाएँ ताकि राजनीति का discourse बदल सके नए ढंग की राजनीति में नया पन लाना कुछ नया तो करना ही पड़ेगा अन्यथा ऐतिहासिक पार्टी इतिहास का हिसा बन जायेगी जो देश के लिए बहुत ही भयावह होगा I