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क्लाइमेक्स पर पहुंची राजस्थान की कहानी

आर्टिकल/इंटरव्यूक्लाइमेक्स पर पहुंची राजस्थान की कहानी

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राजस्थान की कहानी अब क्लाइमेक्स की ओर बढ़ चुकी है. सोनिया गाँधी से अशोक गेहलोत की मुलाक़ात हो चुकी है, पता चला है कि राजस्थान में पिछले कुछ दिनों में जो घटनाएं हुई हैं उसके लिए माफ़ी मांगी है, साथ ही यह भी क्लियर हो गया है कि गेहलोत कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव नहीं लड़ेंगे, राजस्थान का मुख्यमंत्री बने रहेंगे या नहीं इसपर अभी सस्पेंस बना हुआ है. कांग्रेस अध्यक्ष पद पर गेहलोत के चुनाव लड़ने से इंकार के बाद अब इस रेस में किसके किसके बीच मुकाबला होगा यह देखना दिलचस्प होगा। दिग्विजय सिंह और शशि थरूर ने परचा खरीद लिया है और दोनों ही नामांकन के अंतिम दिन यानि कल अपना नामांकन दाखिल करेंगे, ऐसा मीडिया में कहा जा रहा है. लेकिन सबसे बड़ा सवाल अभी बाकी है जो इस पूरे फसाद की जड़ है, वो है राजस्थान का मुख्यमंत्री पद.

दरअसल पूरे घटनाक्रम पर अगर गौर से देखा जाय तो एक लिखी लिखाई पटकथा जैसा सबकुछ हो रहा है, पटकथा किसने लिखी यह आज उस कागज़ के टुकड़े से साबित हो गया जिसे माफीनामा बताया जा रहा है और जिसे अशोक गेहलोत ने आज सोनिया गाँधी से हुई डेढ़ घंटे की मुलाकात में उन्हें दिया। कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव न लड़ने का फैसला भी यह बताता है कि वह किसी भी हालत में मुख्यमंत्री पद को छोड़ना नहीं चाहते। भले ही वो अपने आपको 50 साल पुराना कांग्रेस का वफादार सिपाही बताते हैं लेकिन उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष पद का काँटों भरा ताज पहनना बिलकुल मंज़ूर नहीं। 

अगर आप आज के भी घटनाक्रम को देखें तो गहलोत पहले से ही सबकुछ सेट करके आये थे. एक तरफ जहाँ वो सोनिया गाँधी से मुलाकात कर रहे थे वहीँ उनका खेमा राजस्थान से आला कमान को धमकी दे रहा था कि सीएम की कुर्सी पर कोई और आया तो परिणाम अच्छे नहीं होंगे, सामूहिक इस्तीफ़ा तैयार है, मध्यावधि चुनाव की भी तैयारियां हैं, मतलब यह कि सोनिया गाँधी के सामने ऐसा कोई विकल्प नहीं छोड़ा कि वो कुछ अलग सोचने की हिम्मत कर सकें।

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सोनिया से मुलाकात में गेहलोत की मासूमियत के भी क्या कहने। उनके मुताबिक वो इस बात पर शर्मिंदा हैं कि वो एक पंक्ति का प्रस्ताव नहीं पास कर सके. उनका अपने उन विधायकों पर कोई कण्ट्रोल नहीं जो उनके लिए सीधे आला कमान से टकराने को तैयार हो गए. खून बहाने को तैयार हो गए, जिन्हें मध्यावधि चुनाव से भी दर नहीं लगा. जो विधायक गेहलोत को इतना मानते हैं इतना सम्मान करते हैं उन विधायकों से गेहलोत एक पंक्ति का प्रस्ताव पास नहीं करा सके. इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा, लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं। सच में गेहलोत की सादगी बरसों तक कांग्रेस आला कमान को याद रहेगी।

वैसे राजस्थान में पिछले कुछ दिनों में जो कुछ भी हुआ उसके पीछे मकसद सिर्फ एक ही था कि अशोक गेहलोत कैसे कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव से अलग हो सकते हैं. राजस्थान में जो कुछ हुआ उससे यह साफ़ ज़ाहिर हो रहा था कि एक व्यक्ति एक पद का मुद्दा उभरने के बाद गेहलोत की राहें काफी मुश्किल हो गयी हैं, इससे बाहर निकलने का एक ही रास्ता था कि ऐसा माहौल बनाया जाय जिससे आला कमान पर इतना दबाव बना दिया जाय कि वो खुद अशोक गेहलोत को कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव से अलग कर दे. और हुआ भी बिलकुल वैसा ही, पिछले दो तीन दिनों से कांग्रेस पार्टी के लिए वाकई ऐसे हालात बन गए कि कांग्रेस पार्टी को कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए गेहलोत से अलग सोचना पड़ा और दिग्विजय का नाम सामने आया. बहरहाल राजस्थान की कहानी अपने क्लाइमेक्स के पास पहुँच चुकी है. उम्मीद है कल के बाद पूरा क्लाइमेक्स सामने आ जायेगा।

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