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राहुल जी! ये तो वायनाड से धोखेबाज़ी होगी

आर्टिकल/इंटरव्यूराहुल जी! ये तो वायनाड से धोखेबाज़ी होगी

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अमित बिश्नोई
जैसे ही केरल के वायनाड में मतदान समाप्त होगा, राहुल गाँधी का ध्यान उत्तर प्रदेश के अमेठी पर केंद्रित हो जाएगा। ये बात प्रधानमंत्री मोदी जी, भाजपा और सियासत से जुड़े सभी लोग कह रहे हैं. कांग्रेस ने अब तक उत्तर प्रदेश के दो निर्वाचन क्षेत्रों, अमेठी और रायबरेली पर सस्पेंस बरकरार रखा है। सब लोग यही जानना चाहते हैं कि कांग्रेस इसपर से सस्पेंस कब हटाएगी। लेकिन इस सब से इतर बड़ा सवाल ये है कि अमेठी के लोग क्या चाहते हैं, क्या अमेठी के लोग राहुल गाँधी की वापसी चाहते हैं, या फिर वो स्मृति ईरानी से खुश हैं.

लोकसभा चुनाव के पांचवें चरण में अमेठी में 20 मई को मतदान होना है। नामांकन दाखिल करने की आखिरी तारीख 3 मई है। इसलिए उम्मीद है कि कांग्रेस जल्द ही कोई फैसला लेगी। 2019 में, राहुल अमेठी में केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता स्मृति ईरानी से हार गए, तब इसे कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा का विषय माना गया था। स्मृति ईरानी के लिए व्यक्तिगत तौर पर ये एक बड़ी उपलब्धि थी जिसने भाजपा और मोदी जी की नज़रों में उनका कद को काफी बड़ा कर दिया। राहुल गाँधी की अमेठी से हार ने प्रधानमंत्री मोदी को व्यक्तिगत तौर पर बड़ी संतुष्टि दी होगी।

2019 में हार के बाद राहुल गाँधी का पूरा ध्यान केरल के वायनाड पर केंद्रित हो गया जहाँ से वो चुनाव जीतने में कामयाब हुए थे. हालाँकि राहुल गांधी ने अमेठी से अपने नाते को बरकरार रखा , 2019 के बाद कई बार सार्वजनिक भाषणों मंचों से उन्होंने अमेठी को “अपना घर” कहा और कहा कि “कोई भी उन्हें अमेठी से अलग नहीं कर सकता”। अमेठी से उनके चाचा संजय गाँधी और उनके पिता राजीव गाँधी ने प्रतिनिधित्व किया, खुद राहुल गाँधी तीन बार अमेठी से चुनाव जीते, ऐसे में अमेठी को भुला पाना उनके लिए बड़ी मुश्किल बात होगी।

जहाँ तक अमेठी के लोगों की बात है तो राहुल गाँधी के अमेठी से चुनाव लड़ने की बात पर अमेठी का मतदाता बंटा हुआ मालूम होता है. ये अलग बात है कि लोगों का झुकाव राहुल गाँधी की तरफ ज़्यादा है. अगर आप नुक्कड़ों, चाय के होटलों, चाट के ठेलों और पान की दुकानों पर जाकर ये सवाल करेंगे तो वहां आपको लगेगा कि अमेठी के लोगों को शायद अपनी गलती का एहसास है और वो इस बार दिल से चाहते हैं कि राहुल गाँधी की घर वापसी हो लेकिन जब यही सवाल आप कर्मचारी वर्ग से जाकर पूछते है या फिर संपन्न लोगों से पूछते है तो वहां पर आपको राहुल को लेकर कोई उत्साह नहीं दिखेगा।

राहुल गाँधी के अमेठी से चुनाव लड़ने के सवाल पर कुछ लोगों का ये जवाब कि जो व्यक्ति ये निर्णय नहीं पा रहा है कि वो चुनाव लड़े या नहीं लड़े वो अमेठी के लिए क्या काम करेगा। यहाँ पर काम करने की बात तो शायद गलत है लेकिन इस बात में दम है कि अमेठी पर अनिर्णय की स्थिति में क्यों हैं राहुल और कांग्रेस पार्टी। कांग्रेस पार्टी या राहुल गाँधी वायनाड में मतदान का इंतज़ार क्यों कर रहे हैं. ये तो एक तरह से वायनाड के लोगों के साथ धोखेबाज़ी ही कही जाएगी। वायनाड के लोगों ने तो राहुल गाँधी को ये सोचकर वोट दिया होगा कि वो चुनाव जीतकर यहाँ के लोगों के लोगों के लिए काम करेंगे, ऐसे में अब राहुल गाँधी अमेठी से चुनाव लड़ने का एलान करते हैं तो वायनाड के लोग तो ठगा सा महसूस करेंगे।

जहाँ तक पिछले चुनाव की बात है तो लोगों को पहले से ही मालूम था कि राहुल गाँधी अमेठी और वायनाड से चुनाव लड़ रहे हैं. ये हकीकत जानकर ही वायनाड के लोगों ने राहुल को जिताया लेकिन इस बार तो उनसे इस बात को छुपाया गया है, नैतिकता की राजनीती करने का हर समय ज्ञान देने वाले राहुल गाँधी के लिए वायनाड के लोगों से धोखेबाज़ी करके क्या ये अनैतिक काम करेंगे। दो जगहों से चुनाव लड़ना कोई गलत काम नहीं है, मोदी जी भी लड़ चुके हैं. उन्होंने तो संसदीय चुनाव में पदार्पण ही दो जगह से चुनाव लड़कर किया। राहुल गाँधी की दादी भी दो जगहों से चुनाव लड़ चुकी हैं, अटल बिहारी वाजपेयी भी विदिशा और लखनऊ से एक साथ चुनाव लड़ चुके हैं लेकिन इनमें से किसी ने ऐसा नहीं किया कि जब एक जगह का मतदान हो जाय तब दूसरे चुनाव क्षेत्र से भी नामांकन किया जाय. मतदाता को अँधेरे में रखकर दो जगहों से चुनाव लड़ना कानूनी रूप से भले ही सही हो लेकिन नैतिक रूप से गलत ही कहा जायेगा। हालाँकि अभी तक राहुल गाँधी के अमेठी से चुनाव लड़ने का आधिकारिक एलान नहीं हुआ लेकिन कांग्रेस के अंदर और बाहर इसी बात की चर्चा है कि राहुल गाँधी अमेठी से चुनाव लड़ेंगे। अब चुनाव लड़ेंगे या नहीं ये बात जल्द ही पता लग जाएगी लेकिन मेरे हिसाब से तो उन्हें नहीं लड़ना चाहिए, अगर लड़ना था तो पहले से इसका एलान करना था, कम से कम वायनाड वालों को इस बात का मौका तो मिलना चाहिए था कि राहुल को वो अपना समझें या फिर परदेसी।

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