राजस्थान भाजपा में अंदुरुनी सियासत एकबार फिर गरमा गयी है. केंद्र सरकार ने राजस्थान विधानसभा के लीडर ऑफ़ अपोज़ीशन गुलाब सिंह कटारिया को अब असम का राज्यपाल बनाकर भेज दिया है, ऐसे में भाजपा की तरफ से अब नेता विपक्ष कौन होगा इस पर गुटबाज़ी तेज़ हो गयी है. चूँकि राजस्थान में यह चुनावी वर्ष है इसलिए अब खामोश बैठी वसुंधरा राजे सिंधिया भी एक्टिव हो चुकी हैं. उनके एक्टिव होने का सीधा मतलब है कि पार्टी आला कमान को भी इस मामले में मनमर्ज़ी नहीं चलाने देना चाहती है.
वसुंधरा की दिलचस्पी नहीं
वैसे वसुंधरा राजे का खुद प्रतिपक्ष का नेता बनने में कोई दिलचस्पी नहीं है लेकिन वो यह ज़रूर चाहती हैं इस जगह पर जो भी आये वो उनका आदमी होना होना चाहिए। वहीँ भाजपा की तरफ से नेता प्रतिपक्ष के लिए राजेंद्र राठौर का नाम भी चल रहा है लेकिन चूँकि यह चुनावी वर्ष है इसलिए ऐसा भी हो सकता है कि भाजपा आला कमान कोई ऐसा चेहरा सामने ले आये जो सबको अचंभित कर दे. वहीँ चर्चा इस बात की भी है कि बजट आ चूका है, अब विधानसभा भी ज़्यादा चलने वाली नहीं इसलिए ऐसा भी हो सकता है कि भाजपा गुटबाज़ी को टालने के लिए नेता प्रतिपक्ष के लिए कोई दावा ही न करे.
राठौर का हो सकता है प्रमोशन
बता दें कि राजेंद्र राठौर अभी असेम्ब्ली में पार्टी के उपनेता हैं तो जो भी बचे हुए दिन हैं उनमें उन्हीं से काम चला ले या उनका नेता प्रतिपक्ष के रूप में प्रमोशन कर दे. अब इसमें विधायकों की असहमति का मुद्दा आड़े आ सकता है क्योंकि राठौर के विरोधी भी भाजपा में काफी हैं. हालाँकि नेता प्रतिपक्ष बनने का मतलब यह नहीं कि वो सीएम पद का उम्मीदवार भी होगा, भाजपा में ऐसा ही चलता है, राजस्थान की बात अगर कि जाय तो 2003 और 2013 में जब भाजपा सत्ता में आई तो मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे बनीं, हालाँकि दोनों ही बार नेता प्रतिपक्ष गुलाबंचद कटारिया थे।