पहली बार मधुशाला को गायन शैली में नहीं नाटक के रूप में ढालने की तैयारी कर रहे हैं शहर के रंगकर्मी
Zeba Hasan
मदिरालय जाने को घर से चलता है पीने वाला, किस पथ से जाऊं असमंजस में है वह भोला-भाला, अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूं, राह पकड़ तू, एक चलाचल पा जाएगा मधुशाला। महान कवि हरिवंश राय बच्चन (Harivansh Rai Bachchan) की अमर कृति मधुशालर को अभी तक मंच से अलग अलग गायन शैली में तो सुना होगा। लेकिन इस बार इस अमर कृति ‘मधुशाला’ को नाटक के रूप में दिखाए जाने की तैयारी लखनऊ शहर में चल रही है। दरअस्ल मधुशाला का नाट्य रुपांतण कर रहे हैं शहर के युवा प्रयोगधर्मी थिएटर आर्टिस्ट मुकेश वर्मा। नाटक की पटकथा लिखी जा चुकी है जुलाई तक मधुशालर को हम नाटक के रूप में मंच पर देख सकते हैं।
कई साल पहले लिखी थी स्क्रिप्ट
मधुशाला (Madhushala) को कई नामी गायकों ने गाकर शोहरत हासिल की है। अब इसका एक अलग अंदाज देखने को मिलेगा। नाटक के लिए पटकथ लिखने वाले मुकेश वर्मा ने बताया कि 2005 में इसकी स्क्रिप्ट लिखी थी। लेकिन कुछ कारणों से इसका मंचन नहीं किया जा सका। लेकिन इस बार हमने जुलाई तक इसका मंचन करने का सोचा है। हम इसे जल्दी ही मंच तक लाते लेकिन अभी तो ऑडीटोरियम की भी परेशानी है। शहर में राय उमानाथ बली जो पिछले तीन साल से बंद चल रहा है हम उसके बनकर खुलने का इंतजार कर रहे हैं। वैसे अगहर शहर में मंचन नहीं कर सके तो कहीं बाहर करेंगे। इसके अलावा हम दिल्ल मुम्बई में भी इस शो को करना चाह रहे हैं।
कहानी को मंच पर लाना आसान होता है
मुकेश कहते हैं कि मधुशाला को नाटक के रूप में प्रस्तुत करना आसान नहीं होगा। इसके उलट किसी कहानी को नाटक के रूप में पेश करना आसान होता है। हम इसमें तीन किरदारों को पेया करेंगे जिसमें मुख्य किरदार हो महान कवि हरिवंश राय बच्चन जी का। इसमें हम उनकी रूबाईया भी प्रयोग करेंगे। वह आगे कहते हैं कि नाटक का सेट और संगीत इसका सबसे मजबूत पहलू होगा। जिसमें पूरी कृति को एक साथ समेटा जा सके। करीब दो घंटे की इस प्रस्तुति में कोशिश होगी कि मधुशाला की मुख्य बातों को दर्शकों तक पहुंचा सकूं। जहां तक कलाकारों का सवाल है अभी हमें हमारा मेन पात्र नहीं मिला है। हरिवंश जी जैसी रर्सनैलिटी की तलाश जारी है।
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गंगा किनारे रहने वाले मल्लाहों की जिंदगी पर बेस्ड है फिल्म
इससे पहले भी कई अनकही कहानियों को मंच पर लाने वाले मुकेश वर्मा फिल्म मल्लाह भी लेकर आ रहे हैं। यह एक फीचर फिल्म होगी जिसकी शूटिंग पूरी होने वाली है। इस बारे में मुकेश कहते हैं कि यह फिल्म नदी किनारे रहने वाले मल्लाहों की जिंदगी पर आधारित है। वह मल्लाह जो दिनभर लोगों को नदी पार कराते हैं, उन्हें घुमाते हैं लेकिन उनकी जिंदगी कैसे गुजर रही है यह जानने की कोशिश कोई नहीं करता। जबकि वह पूरी जिंदगी यहां से वहां बंजारों की तरह रहते हैं। जब एक तरफ बाड़ से जमीन कटती है तो वह दूसरे किनारे पर रहने चले जाते हैं। ना ही उनके बच्चों को तालीम मिल पाती है और ना ही कोई दूसर सुख सुविधाएं। हमने गंगा किनारे रहने वाले मल्लाहों की जिंदगी को इसमें दिखाया है। फिल्म में यूपी के साथ मुम्बई के कलाकार भी हैं। फिल्म की शूटिंग लगभग पूरी ही हो चुकी है। इसका पूरा शूट बनारस में किया है।