तौक़ीर सिद्दीक़ी
2024 में आने से कुछ ही सप्ताह पहले बिहार में उथल-पुथल मच गई, क्योंकि राज्य के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे नीतीश कुमार ने अपने पुराने सहयोगी भाजपा के साथ फिर से गठबंधन करने के लिए एक और नाटकीय मोड़ लिया। नीतीश कुमार, जो सत्ता पर अपनी पकड़ बनाए रखते हुए अपनी इच्छानुसार राजनीतिक निष्ठाओं को बदलने की अपनी अद्भुत क्षमता के लिए प्रसिद्ध हैं, ने उस INDIA ब्लॉक को छोड़ दिया, जिसे बनाने में उन्होंने बड़ी लगन से मदद की थी, राजनीति में “राष्ट्रीय भूमिका” हासिल करने की अपनी उम्मीदों को भी त्याग दिया। इस अप्रत्याशित कदम ने उस राजनीतिक परिदृश्य में हलचल मचा दी जिससे कुमार की हमेशा बदलती राजनीतिक यात्रा में एक और मोड़ का संकेत मिला। शायद पहले से ही यह महसूस करते हुए कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कद को कम किया जा सकता है लेकिन ख़त्म नहीं किया जा सकता, नितीश कुमार एक बार फिर ऐसे सहयोगी बनने के लिए सहमत हुए जिसके समर्थन पर भाजपा अब केंद्र में सत्ता में बने रहने के लिए निर्भर है।
इस सौदे में नितीश कुमार ने बिहार में भाजपा और उसके सभी कनिष्ठ सहयोगियों का समर्थन हासिल किया है जिसका फायदा 2025 में होने वाले विधानसभा चुनाव में नितीश कुमार को मिलने वाला है या मिल सकता है, हालांकि राजनीतिक रणनीतिकार से राजनेता बने प्रशांत किशोर अब उनके लिए एक नया रोड़ा बनकर उभरे हैं. हालाँकि इस बारे में लोगों की राय बंटी हुई है कि प्रशांत किशोर की जन सुराज जेडीयू को ज़्यादा नुकसान पहुंचा सकती है या फिर राजद को. हालाँकि विधानसभा के उपचुनाव में देखें तो प्रशांत किशोर जेडीयू यानि नितीश कुमार को कोई नुक्सान नहीं पहुंचा सके हैं. इसके बावजूद देखना होगा कि बिहार की चुनावी राजनीति में इस समय चर्चा का विषय बनी जन सुराज विधानसभा चुनाव में मतदाताओं को कैसे प्रभावित करेगी। वैसे प्रशांत किशोर को पूरा भरोसा है कि उनकी पार्टी सत्तारूढ़ एनडीए की मुख्य प्रतिद्वंद्वी बनकर उभरेगी और उनका यह आशावाद काफी हद तक नीतीश कुमार के भाजपा में चले जाने के बाद से इंडिया ब्लॉक में व्याप्त अव्यवस्था के कारण है।
नीतीश कुमार के साथ रहने तक सरकार में भागीदार रहे राजद और कांग्रेस अपने गुट को एकजुट रखने में विफल रहे और राज्य में नई सरकार बनने के कुछ ही दिनों के भीतर दोनों दलों के कई विधायक एनडीए में शामिल हो गए। कुछ महीने बाद, लोकसभा चुनावों में बिहार में भारतीय जनता पार्टी का प्रदर्शन औसत से कम रहा, जबकि उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, हरियाणा और राजस्थान जैसे भाजपा के गढ़ों में विपक्षी गठबंधन ने बढ़त हासिल की। बिहार में राजद, कांग्रेस और वाम दलों का गठबंधन ‘महागठबंधन’ उपचुनावों में भी लड़खड़ाता रहा और अपनी मौजूदा विधानसभा सीटें भी नहीं बचा पाया। हाल ही में, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को भारतीय जनता पार्टी का नेतृत्व करने दिया जाए या नहीं, इस पर राजद-कांग्रेस के बीच विवाद ने गठबंधन की कमियों को और उजागर किया है। इन सब बातों ने एनडीए खेमे में राहत की भावना भर दी है, जो प्रीपेड बिजली मीटर, भूमि सर्वेक्षण और अवैध शराब की घटनाओं को लेकर जनता के असंतोष से चिंतित था, जिसने बहुचर्चित शराबबंदी कानून पर सवालिया निशान लगा दिया और खस्ताहाल बुनियादी ढांचे की वजह से राज्य भर में दर्जनों पुल और पुलिया ढह गई और मीडिया में सुर्खियां बन गयीं।
पटना उच्च न्यायालय द्वारा वंचित जातियों के लिए बढ़ाए गए कोटे को रद्द करने जैसे झटकों के बावजूद मुख्यमंत्री नितीश कुमार काफी निश्चिंत दिखते हैं, वहीं उनके पूर्व विरोधी जो अब सहयोगी बन गए हैं, सत्ता में अपनी हिस्सेदारी का आनंद लेते हुए संतुष्ट दिखते हैं। ऐसे सहयोगियों में सबसे उल्लेखनीय हैं चिराग पासवान हैं। नितीश सरकार ने पासवान को वही बंगला आवंटित किया है, जिसमें कभी उनके दिवंगत पिता रहते थे। राज्य में आयोजित अधिकांश प्रतियोगी परीक्षाओं में विवाद उठे इस साल की खास बात रही, प्रश्नपत्र लीक होने के कारण रद्द कई परीक्षाओं को रद्द करवाना करना पड़ा जबकि कुछ अन्य परीक्षाओं के मामलों में अधिकारियों ने दावा किया कि “षड्यंत्र” के तहत परीक्षाओं की निष्पक्षता के बारे में “अफवाहें” फैलाई जा रही थीं। संयोग से यह बिहार में भी हुआ जो कि राज्य की राजधानी है, जहां कुछ लोगों की गिरफ्तारी ने NEET में कथित अनियमितताओं से पर्दा उठाया था, जिससे देश भर से पीड़ित मेडिकल उम्मीदवार सड़कों पर उतर आए थे। मामला अब भी गर्म है, बिहार लोक सेवा आयोग (बीपीएससी) की 70वीं पीटी परीक्षा रद्द करने की मांग को लेकर पर अभ्यर्थियों का धरना प्रदर्शन खान सर के नेतृत्व में जारी है. कई दिन से भूख हड़ताल पर बैठे अभ्यर्थियों में कई की हालत 23 दिसंबर को बिगड़ गयी और उन्हें अस्पताल में भर्ती करना पड़ा. ये मामला राजनीतिक रूप से तूल पकड़ता जा रहा है और विपक्ष का पूरा समर्थन मिल रहा है. ऐसे में छात्रों और परीक्षाओं का मुद्दा नितीश कुमार पर भारी पड़ सकता है, फिलहाल मुख्यमंत्री जी बिहार की हवा का रुख समझने के लिए यात्रा पर निकले हुए हैं. नितीश कुमार हवा के रुख को अच्छे से समझने और फिर हवा के साथ बहने के लिए मशहूर हैं और यही वजह है कि कम विधायक संख्या के बावजूद मुख्यमंत्री की कुर्सी पर वही विराजमान होते हैं. फ़िलहाल आठ बार शपथ ले चुके हैं और इस कोशिश में हैं कि 9वीं बार भी वो शपथ लें.