russia ukraine war effect: रूस और यूक्रेन युद्ध का असर विश्व की अर्थव्यवस्था पर दिखाई देने लगा है। यूक्रेन युद्ध के कारण विदेश व्यापार घाटे की चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं। फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गेनाइजेशंस (फियो) की एक रिपोर्ट के अनुसार रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से आने वाला समय देश से निर्यात के लिए चुनौतीपूर्ण और कठिन होने जा रहा है। ऐसे में जहां निर्यात के नए बाजार खोजने की पहल करनी होगी। वहीं कम उत्पादों का आयात नियंत्रित करना होगा। तभी देश के विदेश व्यापार घाटे में कमी आ सकेगी।
2022-23 में घटा व्यापार का निर्यात
हाल में जारी आंकड़ों के अनुसार, वित्तवर्ष 2022-23 में देश से उत्पादों का निर्यात 447 अरब डॉलर, सेवा निर्यात 323 अरब डॉलर रहा। यानी दोनों मिलाकर कुल 770 अरब डॉलर का व्यापार रहा है। यह देश से निर्यात का सर्वोच्च स्तर बताया गया है। लेकिन 2022—23 में कुल व्यापार घाटा पिछले वर्ष के 83 अरब डॉलर से बढ़कर 122 अरब डॉलर पर पहुंच गया है। अब इस साल व्यापार घाटा और बढ़ने की आशंका है। भारत अपने कुल उत्पाद निर्यात का सबसे अधिक करीब 17.50 फीसद निर्यात अमेरिका को करता है। जो आज मंदी की चपेट में दिखाई दे रहा है।
अमेरिका मंदी की चपेट में, महंगाई चरम पर
अमेरिका में इस समय महंगाई चरम पर है। इसको रोकने के लिए अमेरिकी फेडरल बैंक ब्याज दरों में बढ़ोत्तरी कर रहा है। यूरोप की आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं है। रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच यूरोप के अधिकांश देश गैस व खाद्य संकट से प्रभावित हैं। जिससे यूरोप में महंगाई बढ़ने के साथ वहां औद्योगिक उत्पादन कम हुआ है। यही कारण है कि वहां के लिए वाणिज्य विभाग की तरफ से वित्त वर्ष 2023-24 के लिए निर्यात का कोई लक्ष्य अब तक नहीं रखा गया है। पिछले साल वित्त वर्ष में उत्पाद व सेवा निर्यात जिस ऊंचाई पर पहुंचा। इस बार निर्यात को उस ऊंचाई तक पहुंचाना बहुत कठिन माना जा रहा है।
बढ़ते आयात को रोकना इस बार मुश्किल है। भारत का कुल आयात 2022-23 में 892 अरब डॉलर रहा था। जो वित्त वर्ष 2021-22 में 760 अरब डॉलर रहा था। आयात में कमी लाना काफी चुनौतीपूर्ण है। हालांकि चीन और भारत के बीच सीमा पर तनाव भी बढ़ा है। ऐसे में विदेश व्यापार के क्षेत्र में भारत की चीन पर निर्भरता अभी बनी हुई है।
नई विदेश नीति का क्रियान्वयन जरूरी
देश का निर्यात बढ़ाने के लिए 1 अप्रैल 2023 में लागू की गई नई विदेश व्यापार नीति का क्रियान्वयन जरूरी है। इससे इंसेंटिव की जगह टैक्स और शुल्कों में राहत प्रदान कर निर्यात संबंधी काम को आसान बनाने की व्यवस्थाएं सुनिश्चित किए जाने का लक्ष्य रखा है। इससे वर्ष 2030 तक उत्पाद एवं सेवा निर्यात दो लाख करोड़ डॉलर ले जाने का भी लक्ष्य रखा है। नई विदेश व्यापार नीति से सरकार ने निर्यात के दायरे को बढ़ाने के लिए जिला स्तर पर एक्सपोर्ट हब की स्थापना करने की घोषणा की थी। जिससे निर्यात से जुड़े इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी दूर होगी।
वैश्विक निर्यात में भारत का योगदान 1.8 प्रतिशत
इस समय वैश्विक आर्थिक एवं व्यापार चुनौतियों के बीच कुल वैश्विक निर्यात में देश का योगदान 1.8 प्रतिशत और वैश्विक व्यापार में इसकी हिस्सेदारी दो प्रतिशत से कम है। ऐसे में व्यापार घाटा कम करना चुनौतीपूर्ण है। भारतीय विदेश व्यापार के सामने बड़ी चुनौतियां खड़ी हैं। माल परिवहन की लागत 13-14 प्रतिशत तक बढ़ी है। विश्व बैंक के अनुसार, भारत लॉजिस्टिक खर्च के मामले में दुनिया के अन्य देशों से बहुत पीछे है। शोध और नवाचार के मामले में देश दुनिया में 40वें नंबर पर है। हमारी श्रमशक्ति भी नई डिजिटल कौशल योग्यता से कोसों दूर है। प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेटिव (पीएलआई) के उत्साहजनक परिणाम मिलने शुरू नहीं हुए हैं।