नई दिल्ली। शरद यादव का नाम पहली बाद राष्ट्रीय स्तर पर तब सामने आया। जब उन्होंने 1974 में जबलपुर के उपचुनाव में कांग्रेस के दिग्गज नेता गोविंद दास को हराया। इसके बाद वो राष्ट्रीय स्तर पर युवा नेता के रूप में उभरे। इसके पहले शरद यादव जबलपुर विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष थे। एक छात्र संघ अध्यक्ष के रूप में शरद यादव युवा आंदोलन के बड़े अगुआ चेहरा बन चुके थे। उनके जुझारुपन व बेबाक भाषण शैली से सभी प्रभावित हुआ था।
शरद यादव का छात्र जीवन वैचारिक झुकाव समाजवादी विचारधारा के प्रति था। शरद यादव सभी के स्वाभाविक नेता थे। जब 1984 में शरद यादव अमेठी लोकसभा सीट से प्रधानमंत्री राजीव गांधी के खिलाफ चुनाव लड़े तब उनके राजनीतिक साहस पर रश्क हुआ। भले ही शरद यादव इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल में जेल गए हो। बाद में उनके वारिस राजीव गांधी के खिलाफ चुनाव लड़े। 1989 में राजीव गांधी के खिलाफ बने विपक्षी गठबंधन शिल्पकारों में वह प्रमुख नेता थे। लेकिन एक हकीकत यह भी है कि शरद यादव प्रधानमंत्री के रूप में सबसे अधिक इंदिरा गांधी को पसंद करते थे। यह बात एक बार उन्होंने कही थी जब खुद अटल बिहारी वाजपेई सरकार मंत्री थे।
उनसे पूछा गया कि आपने इतने प्रधानमंत्रियों की सरकारें देखी हैं, आप किसे सबसे बेहतर मानते हैं। उन्होंने कहा था इंदिरा गांधी को। इसके बाद सभी आश्चर्य में पड़ गए थे। उनसे कहा कि आप तो कांग्रेस विरोध की राजनीति की उपज हैं और इंदिरा गांधी ने आपातकाल में जेल भेजा था। उन्होंने कहा कि वह राजनीतिक विरोध था। लेकिन इंदिरा गांधी जितनी संवेदनशील नेता थीं, वैसा दूसरा और कोई नहीं है।
उन्होंने बताया कि जब 1974 में पहली बार लोकसभा में पहुंचे उस समय इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं। संसद सत्र के दौरान वो प्रतिदिन महिलाओं, दलितों,आदिवासियों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों पर हमले और उत्पीड़न के मामले शून्य काल में उठाते थे। सदन स्थगित होने पर इंदिरा उनको अपने चैंबर में बुला लेतीं और सारी जानकारी लेती थीं। अगले दिन संसद सत्र शुरु होने से पहले ही उठाए मामलों में क्या कार्रवाई हुई या की जा रही है इसकी जानकारी प्रधानमंत्री कार्यालय से मिल जाती थी।