नई दिल्ली। ट्रेन का कंफर्म टिकट चाहिए और इसके लिए रिजर्वेशन लाइन में सुबह से लगने पर भी टिकट नहीं मिल पाती। जब तक रिजर्वेशन काउंटर खुलता है। पूरी ट्रेन बुक हो जाती है लाइन में लगे व्यक्ति के हाथ में आती है वेटिंग की टिकट। लेकिन क्या जानते हैं कि ऐसा सब होता कैसे है। इसी के लिए अगर किसी टिकट बुक करने वाले दलाल को पकडे़ तो सौ फीसदी कंफर्म टिकट देगा। उसके बदले कुछ रूपये लेगा। लेकिन ये सब दलाल करते कैंसे हैं। आइए बताते हैं दलालों द्वारा टिकट बुक करने का पूरा गणित। कुछ ऐसा ही आईआरसीटीसी की वेबसाइट और एप पर लोगों को औसतन दो से तीन मिनट का समय टिकट बुकिंग में लगता है। लेकिन कई बार इंटरनेट स्पीड या अन्य तकनीकी कारणों से इससे अधिक समय भी लग जाता है। जिस कारण जब तक टिकट की बुकिंग प्रक्रिया पूरी होती है तब तक ट्रेन पूरी बुक हो जाती हैं। इसी काम को दलाल महज चंद सेकंडों में करके टिकटें कंफर्म करा लेते हैं। हाल में आरपीएफ ने कुछ दलालों और सॉफ्टवेयर डेवलपर्स के खेल का पर्दाफाश किया।
आमतौर पर जब किसी को रेलवे टिकट बुक करना हो तो वह आईआरसीटीसी वेबसाइट पर जाकर टिकट बुक करता है। इस दौरान व्यक्ति को आईडी और पासवर्ड डालने के बाद लॉगिन कैप्चा डालना जरूरी होता है। इसके बाद यात्रियों की डिटेल इत्यादी। इसमें एक यूजर अपनी आईडी से एक से लेकर छह लोगों की टिकट बुक कर सकता है। वेबसाइट और एप पर जरूरी प्रक्रिया पूरी होने के बाद सबमिट करने के लिए कैप्चा भरना होता है। पेमेंट करने के लिए संबंधित रजिस्टर्ड मोबाइल में ओटीपी आता है। जिसे डालने के बाद पेमेंट करना होता है। इसके बाद कंफर्म टिकट मिल पाती है। इसमें औसतन दो मिनट का समय लग जाता है।
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जबकि दूसरी तरफ दलाल रेलवे टिकट बुकिंग के लिए सॉफ्टवेयर का उपयेाग करते हैं। इस सॉफ्टवेयर की मदद से दोनों कैप्चा भरने की जरूरत नहीं होती है। सॉफ्टवेयर इसे बायपास कराता है। वहीं, पेमेंट के लिए ओटीपी की जरूरत नहीं होती। सीधा पेमेंट होता है। इस तरह कुछ सेकेंड में दलाल कंफर्म टिकट बुक कराते हैं। एक आईडी से मात्र छह यात्रियों के टिकट बुक होते हैं। यानी बुकिंग की कतार में वर्चुअल छह लोग लग सकते हैं। जबकि दलाल एक आईडी से करीब 144 लोगों की टिकट बुक कराता है। यहीं कारण है कि आम लोगों को टिकट नहीं मिल पाता। जबकि कुछ सेकंडों में टिकट बुक होता है। जबकि दलाल एक साथ 144 लोगों का टिकट बुक कराता है। इतना ही नहीं सॉफ्टवेयर की सहायत से 144 यात्रियों की डिटेल पहले तैयार रहती थी। जिसे निर्धारित समय होते ही सिर्फ साफ्टवेयर में एड करा जाता है। इस तरह डिटेल भरने में लगने वाला समय बच जाता है।
आरपीएफ से मिली जानकारी के मुताबिक पकड़े दलालों और सॉफ्टवेयर डेवलपर ने बताया कि इस तरह के सॉफ्टवेयर रूस में डेवलप कराए गए हैं। इनका किराया भी अलग होता है। एक आईडी में दो वर्चुअल यात्रियों वाले सॉफ्टवेयर का किराया 600 रुपये प्रतिमाह और 24 वर्चुअल वाले यात्रियों वाले सॉफ्टवेयर का किराया दस हजार रुपये प्रतिमाह है। इसके माध्यम से वर्चुअल यात्रियों की संख्या छह गुना तक बढ़ाई जा सकती है। क्योंकि एक आईडी में छह लोगों का टिकट ही बुक हो सकता है।