अमित बिश्नोई
राजनीती में हार अच्छे अच्छों की हेकड़ी निकाल देती है फिर वो चाहे कितना ही मज़बूत क्यों न हो, फिर वो चाहे विश्व गुरु कहलाये जाने वाले नरेंद्र मोदी हों या फिर उनके चेले कहे जाने वाले योगी आदित्यनाथ ही क्यों न हों. लोकसभा चुनाव में मोदी जी को अपेक्षित सफलता न मिलने का ऐसा झटका लगा कि उनके मिजाज में चिड़चिड़ापन आ गया लेकिन बात जब उत्तर प्रदेश की करें तो यहाँ चुनाव में भाजपा को जो करारी हार मिली है उसे देश की सबसे अमीर पार्टी और देश के सबसे मज़बूत मुख्यमंत्री कहे जाने वाले योगी आदित्यनाथ की दुर्गति कहा जा रहा है, यही वजह है कि आज वो मज़बूत की जगह मजबूर मुख्यमंत्री नज़र आ रहे हैं और इस मजबूरी वाली स्थिति से निकलने के लिए वो हाथ पाँव मार रहे हैं और कुछ ऐसे आदेश जारी कर रहे हैं जो देश के सांप्रदायिक सौहार्द के लिए बहुत बड़ा खतरा हैं और जिनकी वजह से NDA में फूट पड़ने का खतरा भी है जो कम से कम आजके राजनीतिक हालात में केंद्र की मोदी 3.0 सरकार बिलकुल भी सही स्थिति नहीं कहलाई जाएगी। कांवड़ यात्रा को लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फर नगर ज़िले में प्रदेश सरकार के निर्देश पर जिला पुलिस के अधिकारीयों ने दुकानों पर नेम प्लेट लगाने का जो आदेश दिया और उसपर अमल शुरू किया वो मामला राजनीतिक विरोध से होता हुआ सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच चूका है. संसद का बजट सत्र कल से होना है, इकनोमिक सर्वे आज पेश किया गया है और विपक्ष के तेवर बहुत तीखे हैं इसलिए ये भी मानकर चला जा रहा है कि नीट के साथ नेम प्लेट का विवाद भी संसद में चमकेगा।
सवाल ये उठता है कि कांवड़ यात्रा के दौरान जो कभी नहीं हुआ वो इस बार क्यों हो रहा है और इसका केंद्र बिंदु मुज़फ्फरनगर ही क्यों है? मुज़फ्फरनगर जहाँ से इस बार केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान की हार हुई है, मुज़फ्फरनगर ही क्यों, पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कैराना, सहारनपुर और नगीना में भी भाजपा को बुरी हार का सामना करना पड़ा, मेरठ में रील वाले राम, अरुण गोविल किसी तरह जीत हासिल करने में कामयाब हुए. दुकानों के आगे ये लिखवाकर कि ये दूकान राम की है या फिर रहीम की, योगी जी क्या सन्देश देना चाहते हैं. दंगों की आग से झुलसने के बाद मुश्किल से संभलने वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इस तरह के आदेश जारी करके योगी आदित्यनाथ क्यों ये दिखाना चाहते हैं कि ये दूकान बहुसंख्यक की है और ये दूकान अल्संख्यक की. ये बात सिर्फ नेम प्लेट लगाने की नहीं है बल्कि इस बात की है कि इसकी ज़रुरत क्यों आन पड़ी.
तो बात लौटकर वहीँ पार आ जाती है कि हार से बदलने वाली राजनीतिक परिस्थितियां बड़े बड़ों बदलने पर मजबूर कर देती हैं. फिलहाल इस नेम प्लेट विवाद को सिर्फ योगी आदित्यनाथ से जोड़ा जा रहा है, कहा जा रहा है कि इसका दिल्ली से कोई रिश्ता नहीं है. ये उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के दिमाग़ की ही उपज है। दिल्ली फिलहाल इस मुद्दे पर खामोश हो कर तमाशा देख रहा है. जिस तरह से कुछ दिन पहले योगी आदित्यनाथ के विरोध में लखनऊ से दिल्ली तक एक बवंडर उठा था, वो अचानक शांत हो गया. फिलहाल मुखर रूप से योगी आदित्यनाथ के खिलाफ कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आ रही है लेकिन ज्वालामुखी तो धधक ही रहा है, इंतज़ार समय का हो रहा है, शायद दिल्ली जाकर पार्टी के बड़े नेताओं से मिलने वाले योगी विरोधियों को फिलहाल खामोश रहने का निर्देश दिया है और वेट एंड वाच की पालिसी अपनाने को कहा गया है. खबर है कि कम से कम यूपी में होने वाले उपचुनावों तक ऐसा करने को कहा गया है.
इस नेम प्लेट मामले को अब सीधा उपचुनावों से जोड़ा जा रहा है और कहा जा रहा है कि योगी आदित्यनाथ के पास उनका जो सबसे आज़माया हुआ ध्रूवीकरण का हथियार है उसे आज़माया जा रहा है लेकिन योगी आदित्यनाथ को शायद ये अंदाजा नहीं था कि इस आदेश का विरोध विपक्ष से ज़्यादा सत्ता पक्ष की तरफ से आएगा। इस मुद्दे पर सबसे पहला विरोध तो भाजपा से ही उस समय हुआ जब पूर्व केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नक़वी इसे हड़बड़ी में लिया जाने वाला गड़बड़ फैसला बताया , इसके बाद बिहार से NDA के सहयोगी दलों जेडीयू और चिराग़ पासवान की पार्टी की तरफ से विरोध जताया गया. यहाँ तक भी योगी आदित्यनाथ को चल जाता लेकिन जब योगी सरकार में सहयोगी रालोद ने मुखर होकर इसका विरोध किया तो मामला काफी बिगड़ गया. योगी आदित्यनाथ इस आदेश के सहारे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जो माहौल बनाना चाह रहे थे, जयंत चौधरी के मुखर विरोध ने उस योजना पर पूरी तरह पानी फेर दिया।
जयंत चौधरी ने बहुत तीखे शब्दों योगी आदित्यनाथ के इस फैसले का विरोध किया। रालोद प्रमुख ने कहा कि मुख्यमंत्री द्वारा लिया गया ये एक ऐसा फैसला है जो पूरी तरह गलत है और सरकार इस गलती को सुधारने के बजाय उस पर और सख्त नज़र आ रही और दिखाना चाहती है सरकार कभी गलत फैसले नहीं लेती। जयंत चौधरी ने योगी आदित्यनाथ पर कटाक्ष करते हुए आगे कहा कि इन दुकानों पर तो आप नाम लिखवा लोगो लेकिन बर्गर किंग और मैक्डोनल पर नाम कैसे लिखवाओगे, और क्या लोगों के कुर्ते पर नाम लिखवा दोगे कि पता चल सके कि किस व्यक्ति से हाथ जोड़ने हैं और किस्से गले मिलना है. जयंत ने आगे और भी तीखा हमला करते हुए कहा कि बहुत से ऐसे मुसलमान होते हैं जो पूरी तरह वेजेटेरियन होते हैं और बहुत से हिन्दू मीट खाते हैं, तो सरकार कहाँ कहाँ किस किसपर नाम का ठप्पा लगाती फिरेगी। जयंत चौधरी जिस समय इस फैसले को लेकर योगी आदित्यनाथ पर हमले कर रहे थे उस समय उनके साथ योगी कैबिनेट में मंत्री अनिल कुमार मौजूद थे जो रालोद कोटे से मंत्री बने हैं.
दरअसल योगी आदित्यनाथ इस समय संकट में हैं और विनाश काले विपरीत बुद्धि वाली कहावत पर अमल कर रहे हैं. आने वाले 10 सीटों के उपचुनाव योगी सरकार के लिए जीवन मरण का सवाल है, जो ख़बरें हैं उनके मुताबिक इन उपचुनावों के लिए योगी आदित्यनाथ को फ्री हैंड दे दिया गया और उनके विरोधियों को फिलहाल खामोश रहने को कह दिया गया है. योगी आदित्यनाथ को इन उपचुनावों में साबित करना होगा कि प्रदेश की जनता, सरकार और संगठन में उनका इकबाल अभी भी बुलंद है. सरकार तो उनके कंट्रोल में है लेकिन संगठन और जनता पर उनका कितना कंट्रोल है इसपर बहुत बड़ा सवालिया निशान है इसलिए इन उपचुनावों में कामयाबी योगी आदित्यनाथ के राजनीतिक जीवन के बहुत अहम् है. अगर इन दस सीटों के उपचुनावों में भी लोकसभा चुनाव जैसा हाल हुआ तो फिर योगी आदित्यनाथ 2027 तक मुख्यमंत्री बने रहेंगे इसमें बहुत बड़ा संदेह पैदा हो जायेगा।