अमित बिश्नोई
पिछले पांच वर्षों की मोदी सरकार की बात करें तो उसपर विपक्ष का जो सबसे बड़ा आरोप था वो ये था कि सरकार संसद में विपक्ष के नेताओं को बोलने नहीं दे रही है, विपक्ष के नेता अपनी बात न रख सकें इसके लिए तरह तरह के हथकंडे लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति के माध्यम से चलाये गए, एकबार नहीं, बार बार ऐसा हुआ, विशेषकर सदन में जब भी राहुल गाँधी बोलने के लिए खड़े होते थे या फिर राज्यसभा में कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे बोलने के लिए खड़े होते तो एक आम शिकायत उनका माइक बंद कर देने की होती थी जिसको राहुल गाँधी अपने चुनावी मंचों पर मुद्दा भी बनाते रहे हैं. माना जा रहा था कि इसबार शायद वो सब बातें न दोहराई जांय लेकिन ऐसा नहीं, माइक ऑफ का खेल एकबार फिर से शुरू हो गया।
आज जब राष्ट्रपति के अभिभाषण पर राजनीतिक दलों को अपनी बात रखनी थीं लेकिन विपक्ष राष्ट्रपति के अभिभाषण की जगह देश में इन दिनों चल रहे सबसे बड़े मुद्दे NEET परीक्षा में धांधली पर बहस चाहता था लेकिन राज्यसभा और लोकसभा दोनों सदनों के सभापतियों ने विपक्ष के नेताओं को इस मामले में बोलने नहीं दिया और उन्हें नियम समझाने लगे. लोकसभा में जब राहुल गाँधी NEET पर कुछ बोल रहे थे, वो कह रहे थे कि हम चाहते हैं कि पार्लियामेंट से एक मैसेज जाना चाहिए कि सत्ता पक्ष और विपक्ष को देश के युवाओं की चिंता है, और इसलिए राष्ट्रपति के अभिभाषण पर भाषणों से पहले नीट पर चर्चा हो तो ज़्यादा अच्छा है लेकिन राहुल गाँधी को बोलने की अनुमति देने के बजाय उनका माइक ऑफ कर दिया। ऐसा ही राज्यसभा में मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ भी हुआ, यहाँ तक कि देश के वरिष्टतम नेताओं में से एक मल्लिकार्जुन खड़गे पूरे दस मिनट तक सभापति जगदीप धनकड़ का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए के लिए हाथ उठाकर खड़े रहे और सभापति महोदय ने उनकी तरफ देखना तक गंवारा नहीं किया। क्या ऐसा राज्यसभा के सभापति को शोभा देता है, मल्लिकार्जुन खड़गे का ये तो एक तरह से अपमान था और ये बात खड़गे ने बाद में सदन के बाहर मीडिया से बातचीत में कही भी और आरोप लगाया कि जगदीप धनकड़ ने उन्हें अपमानित किया।
अब विपक्ष ने NEET और दुसरे कई मुद्दों के साथ माइक ऑफ को भी एक मुद्दा बनाने की तैयारी शुरू कर दी है. सदन में आज स्पष्ट तौर राहुल गाँधी ने शालीन तरीके से स्पीकर ओम बिड़ला पर माइक ऑफ़ करने का आरोप लगाया। राहुल गाँधी स्पीकर महोदय से माइक चालू का अनुरोध करते हुए नज़र आये जिसपर ओम बिड़ला ने कहा कि माइक सिस्टम उनके हाथ में नहीं, वो किसी का माइक नहीं बंद करते। ओम बिड़ला की बात अगर सही है तो फिर विपक्ष के नेताओं के माइक किसके इशारे पर बंद होते हैं, सदन का सर्वेसर्वा तो स्पीकर होता है, वो सदन का मालिक होता है, उसकी इजाज़त के बिना कुछ नहीं हो सकता तो फिर विपक्षी नेताओं के माइक कैसे बंद हो जाते हैं, खासकर उन मुद्दों पर जिनपर सरकार फंसी हुई होती है, बैकफुट पर होती है। पिछले कार्यकाल की बात करें तब अडानी का मामला सरकार की या फिर कहिये प्रधानमंत्री मोदी जी की सबसे बड़ी कमज़ोरी हुआ करता था इसलिए अडानी के मुद्दे पर हर बार माइक ऑफ हो जाता था, और जो कुछ भी बोला जाता था उसे ओम बिरला साहब कार्रवाई से निकलवा देते थे.
अब वही खेल एकबार फिर स्पीकर ओम बिड़ला और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनकड़ के ज़रिये शुरू हो गया है लेकिन इसबार कहानी थोड़ी अलग है. 2019 और 2024 के विपक्ष में बहुत बड़ा अंतर आ गया है. राहुल गाँधी अब सिर्फ एक सांसद ही नहीं बल्कि लोकसभा में विपक्ष के नेता भी हैं और विपक्ष के नेता पास कौन कौन सी पावर होती हैं ये बात स्पीकर ओम बिड़ला और सरकार को अच्छी तरह से मालूम हैं। सरकार को मालूम है कि NEET का मुद्दा अपने उफान पर है, युवाओं में बहुत आक्रोश है, सिर मुंडाते ही ओले पड़ने वाली स्थिति में इस समय NDA सरकार है क्योंकि सिर्फ NEET ही नहीं अन्य परीक्षाओं का रद्द होना भी साथ में जुड़ गया है, बिलकुल उसी तरह जैसे कोढ़ में खाज. राहुल गाँधी जानते हैं कि पेपर लीक मामले में मोदी सरकार परेशान है, वो कार्रवाइयां भी कर रही है लेकिन हो कुछ ऐसा रहा है कि एक मामला ठीक से सुलझ नहीं पाता कि दूसरा सामने आ जाता है और सरकार की मुश्किलें बढ़ा देता है. अभी तो यही लग रहा है कि सरकार सामने न आकर इस मामले को ओम बिड़ला और जगदीप धनकड़ को आगे रखकर और माइक ऑफ कराकर दबाना चाहती है लेकिन क्या इस बार ऐसा संभव है, पिछली बार विपक्ष के सांसदों का सामूहिक निलंबन एक ऐतिहासिक घटना रही थी लेकिन क्या इसबार सरकार में उस इतिहास को दोहराने का दम है. माइक ऑफ सरकार को समझना चाहिए कि दिन बदले हुए हैं, सरकार में भी और समाज में भी बदलाव हुआ है, आवाज़ को खामोश करना शायद अब उतना आसान नहीं.