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Air Pollution: हर साल नाकाम हो जाती है पटाखों पर बैन की कोशिश, प्रदूषण से सांस लेना होता मुश्किल

मेरठ रीजनAir Pollution: हर साल नाकाम हो जाती है पटाखों पर बैन की...

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मेरठ। अक्तूबर आते ही मेरठ सहित एनसीआर और देश की राजधानी दिल्ली में प्रदूषण की समस्या गंभीर होती है। किसानों द्वारा पराली जलाने से उठने वाला धुंआ, वाहनों से निकला धुआ प्रदूषण को और गंभीर बनाते हैं। इसी दौरान दिवाली, छठ और गोवर्धन जैसे पर्व पर छोड़े जाने वाले पटाखे प्रदूषण को जानलेवा बना देते हैं। प्रदूषण को रोकने के लिए हर साल पटाखों पर प्रतिबंध लगाते हैं। बड़े दावे किए जाते हैं।
सरकार, कोर्ट और स्वयंसेवी संस्थाओं के द्वारा लोगों को जागरूक किया जाता है। लेकिन ये कोशिशें नाकाम हो जाती हैं। हर साल गंभीर प्रदूषण का सामना करना पड़ता है। ये कोशिश आखिर हर साल नाकाम क्यों होती है? लोग अपनी जान के दुश्मन क्यों बने हैं?

प्रदूषण के कारण हर साल दुनिया में लगभग 90 लाख लोगों की मौत होती है। इसमें से लगभग एक चौथाई यानी 24 लाख या कुल का 27 प्रतिशत मौतें केवल भारत में होती हैं। केवल वायु प्रदूषण के कारण 2016 में पूरी दुनिया में 42 लाख लोगों की मौत हुई। भारत जैसे देश के लिए यह शर्मनाक है कि यहाँ का कोई भी शहर विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुरूप शुद्ध हवा लोगों को उपलब्ध कराने में सक्षम नहीं। प्रदूषण के कारण लोगों की कार्य क्षमता में कमी होती है। लोगों के बीमार पड़ने से दफ्तरों-फैक्ट्रियों में कार्य नुकसान होता है। जिससे उत्पादन प्रभावित होता है। इससे आर्थिक नुकसान होता है। प्रदूषण से होने वाले कैंसर सहित अन्य रोगों के इलाज में धन खर्च करना पड़ता है।

अनुमान है कि इस प्रकार के कुल नुकसान के रूप में भारत को हर साल अपनी कुल जीडीपी का लगभग तीन प्रतिशत धन खर्च करना पड़ता है। यह राशि कितनी बड़ी है, इसे इस बात से समझा जाता है कि भारत स्वास्थ्य या शिक्षा के मद में इतनी राशि खर्च नहीं करता। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (CSE) के मुताबिक केंद्र-राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड जैसे निकायों के पास अपने निर्णयों को लागू कराने का कोई प्रभावी एजेंसी नहीं है। अधिकांश बोर्ड अपनी क्षमता से आधे लोगों के बल पर चल रहे हैं। इससे आदेशों को प्रभावी तरीके से लागू नहीं करवा पाते जिससे उपाय सफल नहीं होते। आम लोगों में पर्यावरण के प्रति पर्याप्त जागरूकता भी नहीं है। प्रदूषण के कारण गंभीर रूप से बीमार पड़े लोग इससे उनके ऊपर पड़ रहे असर को लेकर भी जागरूक नहीं होते हैं।

सामान्य लोग प्रदूषण के कारण कार्य क्षमता पर पड़ने वाले असर,आर्थिक और मानसिक नुकसान को लेकर सचेत नहीं होते हैं। प्रदूषण के असर से अनजान लोग प्रदूषण करने से संकोच नहीं करते। वायु प्रदूषण में वाहनों के धुएं से होने वाले प्रदूषण की बड़ी हिस्सेदारी है। इसे कम करके वायु प्रदूषण को रोकने की बात संभव हो सकती है। लेकिन वाहनों से होने वाला प्रदूषण लगातार बढ़ता जा रहा है। बड़े महानगरों में प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है। लेकिन इस पर कोई लगाम नहीं लग रही है। प्रदूषण का बड़ा हिस्सा किसानों के द्वारा हर साल खेतों में पराली का जलाना भी बताया जाता है। इसे रोकने के लिए किसानों को मुआवजा देने, पराली को खेतों में गलाकर नष्ट करने के लिए रसायनों के छिड़काव और पराली को बिजली उत्पादक संयंत्रों में खपाने को लेकर कई सुझाव दिए गए हैं। लेकिन पंजाब में किसानों द्वारा खेतों में पराली जलाने की हजारों घटनाएं हो रही हैं। लेकिन इस पर कोई प्रभावी रोक नहीं लग पा रही।

प्रदूषण के कारण होने वाले गंभीर नुकसान के बाद विभिन्न राजनीतिक दल राजनीतिक कारणों से इसके खिलाफ तर्क दिए जाते हैं। इससे लोग इन उपायों को अपनाने के प्रति लापरवाह हो जाते हैं।

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