अमित बिश्नोई
अद्भुत, अकल्पनीय और अविस्मरणीय! जी हाँ कल मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम पर एक ऐसी ही पारी खेली गयी जो अद्भुत भी थी, जिसकी कल्पना किसी ने नहीं की थी और जिसे कोई भुला नहीं सकेगा, जब भी रन चेज़ का ज़िक्र होगा इस पारी की हमेशा चर्चा होगी। ये अद्भुत पारी ऑस्ट्रेलिया के तूफानी बल्लेबाज़ ग्लेन मैक्सवेल के बल्ले से उस समय आयी जब विनिंग चार्ट अफ़ग़ानिस्तान की 100 प्रतिशत जीत को दिखा रहा था, जब क्रिकेट के सभी पंडित और पूर्व क्रिकेटर, कमेंटेटरों ने ऑस्ट्रेलिया की हार को घोषित कर दिया था तभी एक करिश्मा होता है और 100 प्रतिशत की हार जीत में बदल जाती है, अफ़ग़ानिस्तान की टीम हैरान हो जाती है उसे यकीन नहीं होता, यकीन तो किसी भी नहीं होता है लेकिन ये होता है, एक इतिहास बनता है और मैक्सवेल एक इतिहास पुरुष बनते हैं. वो विश्व कप जो एक दिन पहले बांग्लादेश के कप्तान साकिब के टाइम्ड आउट काण्ड की वजह से नकारात्मक चर्चा में घिर जाता है, मैक्सवेल की इस ऐतिहासिक पारी की वजह से सारी नकारात्मकता सकारात्मकता में बदल जाती है, लोगों की बोली और भाषा बदल जाती है, क्रिकेट के खेल के रोमांच की बातें होने लगती हैं, पुरानी बातें याद आने लगती हैं. यही क्रिकेट है, इसे ही क्रिकेट कहते हैं, ऐसे ही अद्भुत प्रदशनों से क्रिकेट महान बनता है, दीवानगी को बढ़ाता है.
कहते हैं कि हिम्मते मर्दां मददे खुदा, शायद खुदा ने भी कल बहादुर का साथ दिया और मैक्सवेल को कई जीवनदान भी मिले लेकिन ये सब शुरुआत की बात थी. 292 रनों के लक्ष्य का पीछा करने वाली पांच बार की विश्व चैंपियन ऑस्ट्रेलिया अपने सात विकेट 91 रनों पर खो देती है, इस मौके पर कप्तान कमिंस मैक्सवेल को ज्वाइन करते हैं जो अबतक दूसरे छोर पर खड़े विकटों की पतझड़ को देख रहे थे. इसके बाद दोनों के बीच क्या बात हुई कोई नहीं जानता लेकिन जो कुछ बाद में हुआ उसे पूरी दुनिया ने देखा। अफ़ग़ानिस्तान जो अबतक तीन पूर्व विश्व चैंपियन टीमों को हरा चुकी थी और चौथी चैंपियन को पटकनी देने के लिए पूरी तरह से तैयार दिख रही थी, सिर्फ औपचारिकता की बात थी लेकिन यहाँ से मैक्सवेल मैजिक शुरू हुआ जिसने अफ़ग़ानिस्तान के मुंह में हाथ डालकर जीत का निवाल छीन लिया।
मैक्सवेल ने कमिंस के साथ मिलकर आठवें विकेट के लिए 201 रनों की साझेदारी कर दी जिसमें कमिंस के मात्र 12 रन थे, आप अंदाजा लगा सकते हैं कि मैक्सवेल ने तने तनहा इस मंज़िल तक पहुँचने का बीड़ा उठाया था. ये आठवें विकेट के लिए ODI और वर्ल्ड कप की सबसे बड़ी साझेदारी बनी,मैक्सवेल ने नाबाद 201 की पारी खेल दी जो रन चेज़ की सबसे बड़ी पारी बनी। रन चेज़ का सबसे बेहतरीन करिश्मा लोगों ने देखा। जिन लोगों ने भी मैक्सवेल की इस पारी को देखा वो अपने को धन्य समझेँगे क्योंकि इसी तरह की एक पारी 1983 के विश्व कप में महान कपिल देव के बल्ले से भी निकली थी लेकिन उसे दुनिया नहीं देख पायी क्योंकि उस दिन बीबीसी वालों की स्ट्राइक थी और मैच का प्रसारण नहीं हो सका था. उस दिन भी भारतीय टीम के कुछ ऐसे ही हालात थे. टीम इंडिया के सात विकेट 77 रनों पर गिर चुके थे, लक्ष्य 267 रनों का था, 190 रन अभी चाहिए थे और तब कप्तान कपिल देव ने 175 रनों की एक करिश्माई पारी खेली और शर्तिया हारा हुआ मैच जीत में बदलकर इतिहास रच दिया। इस मैच के बाद भारतीय टीम की सोच ही बदल गयी और वो टीम चैंपियन बन गयी जिसने इससे पहले मात्र कुछ ODI ही खेले थे.
अब 40 साल बाद मैक्सवेल ने वही करिश्मा दिखलाया और इसबार उसे मैदान पर बैठे दर्शकों के अलावा पूरी दुनिया ने देखा और आने वाले सालों में बार बार देखेंगे। दोनों ही पारियां अद्भुत थीं, कपिल की पारी इसलिए अद्भुत और ख़ास थी कि उस समय भारतीय टीम को एकदिवसीय क्रिकेट का कोई तजुर्बा नहीं था और न ही आजकी तरह तूफानी पारियों का दौर था. मैक्सवेल ने जहाँ आज की पारी में 21 चौके और 10 छक्के मारे तो कपिल ने भी 16 चौके और 6 छक्के उड़ाए थे. मैक्सवेल की पारी इस लिहाज़ से अद्भुत कही जायेगी क्योंकि पहली सेंचुरी लगाने के बाद उन्होंने ज़ख़्मी हालत में अगला शतक ठोंका और टीम की नैया पार लगाईं। एक समय तो उनके लिए क्रीज़ पर खड़ा होना भी मुश्किल हो रहा था, यहाँ तक कि उन्हें मैदान से बाहर भेजने की बात भी होने लगी थी लेकिन मैक्सवेल ने हिम्मत नहीं हारी, वो मैदान से बाहर नहीं गए, उनके पैर हिल नहीं रहे थे लेकिन उन्होंने अपने हाथों को हथियार बनाया और खड़े खड़े जो दर्शनीय चौके छक्के लगाए उन्हें देखकर सिर्फ अफ़ग़ानिस्तानी ही नहीं हर कोई हैरान था कि कोई सिर्फ अपनी जगह खड़े रहकर कैसे इतनी आसानी से चौके छक्के लगा सकता है, ऐसा लग रहा था जैसे कोई दैवीय शक्ति उनके साथ खड़ी थी जो उनकी मदद कर रही थी क्योंकि ये मानवीय पारी तो किसी भी तरह नहीं लग रही थी.
मैक्सवेल की इस पारी ने इस बात को फिर साबित कर दिया कि अगर आप में लड़ने की हिम्मत है तो बड़े से बड़े लक्ष्य को छू सकते हैं, मैक्सवेल ने साबित किया कि हौसलों की हार नहीं होती, मैक्सवेल ने साबित किया वो ऑस्ट्रेलिया के लिए क्यों ज़रूरी हैं, उनपर लापरवाई से आउट होने के अक्सर आरोप लगते हैं, उनके बारे में लोग कहते हैं कि ये कभी भी आउट हो सकते हैं , कल भी लोग ऐसा ही कह रहे थे लेकिन मैक्सवेल ने दिखा दिया वो इस तरह की पारियों की वजह से ख़ास हैं और ऑस्ट्रेलिया इसीलिए उन्हें हमेशा अपने साथ रखती है कि ये वो मैच जिता सकते हैं जो कोई और नहीं जिता सकता। मैक्सवेल की इस पारी ने इस विश्व कप में जान डाल दी, एक ऊर्जा फूंक दी. उनकी इस ऐतिहासिक पारी के लिए उन्हें ग्रैंड सैल्यूट क्योंकि ऐसी ही पारियों की वजह से क्रिकेट महान खेल बना हुआ है.