तौकीर सिद्दीकी
4 जून को जब चुनावी नतीजों के रुझान आ रहे थे तो लगने लगा था कि एग्जिट पोल जो दिखा हैं, कहानी उससे अलग है. दोपहर तक उत्तर प्रदेश को लेकर जो रुझान दिखा उसने राजनीतिक हलचल को बढ़ा दिया, अब हर कोई यूपी के नतीजे जानना चाह रहा था, फिर खबर आयी कि अयोध्या में भाजपा पिछड़ रही , अब हैरानी बढ़नी ही थी, फिर खबर आयी कि प्रधानमंत्री मोदी भी तीन राउंड तक बनारस में पिछड़ गए थे, लोगों की जिज्ञासा और बढ़ने लगी. एनडीए और इंडिया ब्लॉक के बीच संख्याएं लगातार बदलने लगी। दोपहर दो बजे तक ये स्पष्ट हो गया था कि यूपी में दो लड़कों का जादू चल गया है और वो मोदी-योगी पर भारी पड़ने वाले हैं।
यहाँ पर इस बात का ज़िक्र बहुत ज़रूरी है कि भाजपा के हर नेता ने, हर राजनीतिक पंडित ने उत्तर प्रदेश में भाजपा के जोरदार जीत की भविष्यवाणी की, अमित शाह और मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि पार्टी 80 सीटें जीत सकती है। 2014 की 71 सीटों की संख्या को और बेहतर बनाना उसके ‘मिशन 370’ को हासिल करने के लिए था। अखिलेश ने गैर-यादव ओबीसी को जीतने के भगवा पार्टी के सोशल इंजीनियरिंग फॉर्मूले को चतुराई से अपनाया। उन्होंने कुर्मियों को 13 सीटें और निषाद, बिंद, पाल, मौर्य और कुशवाह जैसी अन्य पिछड़ी जातियों को कई सीटें देकर अपने PDA फॉर्मूले पर मुस्तैदी से अमल किया। अखिलेश यादव के टिकट वितरण ने बहुत ही चतुर सामाजिक इंजीनियरिंग का संकेत दिया क्योंकि यह पार्टी की मुस्लिम-यादव आधार पर लगभग पूरी तरह से निर्भरता से अलग था। केवल नौ MY उम्मीदवारों को टिकट दिए गए जिनमें पांच यादव, जो अखिलेश के सभी रिश्तेदार थे और चार मुस्लिम। बाकी 48 उम्मीदवार मुख्य रूप से अपरकास्ट और ओबीसी से लिए गए थे, जिससे उत्तर प्रदेश में अमित शाह की सोशल इंजीनियरिंग धराशायी हो गयी, अखिलेश के ‘पीडीए’ के नारे ने समाजवादी पार्टी के लिए बाजी पलट दी ।
अखिलेश के ‘पीडीए’ (पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक) नारा काम कर गया और पार्टी ने पूर्वांचल की उन सीटों पर कब्ज़ा कर लिया, जहाँ गैर-यादव ओबीसी और दलित मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा हैं। सपा ने 7 आरक्षित सीटें भी जीतीं। 2017 के मुकाबले इस बार सपा-कांग्रेस गठबंधन के लिए एक और बात कारगर रही, वह यह कि इस बार गठबंधन की भावना कार्यकर्ताओं तक पहुँची और सपा ने कांग्रेस के लिए और कांग्रेस ने सपा के लिए जोश के साथ प्रचार किया। जिसका नतीजा ये हुआ कि देश की सबसे पुरानी पार्टी राज्य में खुद को पुनर्जीवित करने में कामयाब रही और अपनी संख्या एक से 6 तक बढ़ाने में कामयाब हुई, इसके अलावा कई सीटों पर बहुत ज़ोरदार लड़ाई लड़ी और बहुत कम मार्जिन से उसे हार मिली, जबकि 2019 में यह केवल एक सीट पर सिमट गई थी। महत्वपूर्ण बात यह रही कि इस बार का अभियान कार्यकर्ताओं द्वारा संचालित रहा। कार्यकर्ता अधिक उत्साहित रहे। दूसरे, समाजवादी पार्टी के साथ औपचारिक गठबंधन ने भी कांग्रेस के अभियान को मजबूत किया। राहुल गांधी और अखिलेश यादव की संयुक्त रैलियों का असर दिखने लगा और स्पष्ट नज़र आने लगा कि बहुत बड़ा चुनावी लाभ मिलने वाला है.
अखिलेश ने वो काम कर दिया दिया जो मुलायम सिंह भी नहीं कर पाए थे, सांसदों की संख्या के हिसाब से समाजवादी पार्टी इस लोकसभा में देश की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गयी, पांच सीटों से 37 सीटों की छलांग एक अविश्वसनीय आंकड़ा लगता है लेकिन ये हकीकत बन चूका है. अखिलेश इस बार राजनीतिक रूप से काफी परिपक्व नज़र आये, उन्होंने कई उम्मीदवारों को बदला, कहीं कहीं तो कई बार बदला, लोगों ने मज़ाक उड़ाया लेकिन आज तारीफ हो रही है उनकी सोशल इंजीनियरिंग की. मायावती ने 23 मुस्लिम उम्मीदवार उतारकर जो गलती की, इसबार अखिलेश उससे बचते नज़र आये यही वजह रही कई मुस्लिम बाहुल्य और यादव बाहुल्य सीटों पर उन्होंने दूसरे समुदाय पर दांव लगाया और उनका ये दांव कारगर साबित हुआ. उनकी परिपक्वता कांग्रेस से गठबंधन करने में भी नज़र आयी, एक समय ऐसा लग रहा था जैसे वो कुछ अनमने से हैं। एक तरफ राहुल की न्याय यात्रा चल रही थी तो दूसरी तरफ सीटों का मामला फंसा हुआ था, अखिलेश कांग्रेस को 11 सीटों से ज़्यादा नहीं देना चाह रहे थे लेकिन जैसे जैसे यात्रा यूपी के करीब आ रही थी राहुल की न्याय यात्रा देश का माहौल बदल रही थी, उनके उठाये गए मुद्दों पर जनता बहस करने लगी थी, सामाजिक न्याय की बात ज़मीन तक जा रही थी, अखिलेश भी PDA के बहाने सामाजिक न्याय की ही बात कर रहे थे, यही वजह रही कि उन्हें ये समझने में देर नहीं लगी कि ये कांग्रेस पहले वाली नहीं है, ये राहुल पहले वाले नहीं है. अखिलेश ने आगे बढाकर ज़्यादा सीटें देकर कांग्रेस से गठबंधन किया और राहुल के साथ मिलकर उत्तर प्रदेश में एक अंडर करेंट फैला दिया जिसे भाजपा देख न सकी और यूपी में एक कारनामा हो गया. यकीनन इसका पूरा सेहरा अखिलेश को जाता है, बेशक वो नेता जी से आगे निकल चुके हैं, अब वो एक मैच्योर और मज़बूत नेता बन चुके हैं।