भारत में प्रतिवर्ष कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन उत्सव मनाया जाता है। इसे अन्नकूट भी कहा जाता है। गोवर्धन पूजा में गोधन मतलब गाय की पूजा की जाती है। हिंदू मान्यता के अनुसार गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है। जिस तरह देवी लक्ष्मी सुख-समृद्धि प्रदान करती हैं, उसी तरह गौमाता हमें स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं। साथ ही प्रभु श्री कृष्ण की पूजा का भी महत्व है। सभी लोग कृष्ण मंदिरों में जाते हैं। इस दिन विभिन्न सब्जियों से बनने वाले विशेष प्रसाद का भोग भी भगवान को लगाया जाता है। आइए जानते हैं गोवर्धन पूजा का प्रभु श्री कृष्ण से संबंध और उसकी कहानी।
गोवर्धन पूजा की शुरुआत
कहा जाता है कि इस त्योहार की शुरुआत द्वापर युग में हुई थी। हिंदू मान्यता के अनुसार गोर्वधन पूजा से पहले ब्रजवासी भगवान इंद्र की पूजा करते थे। मगर, भगवान कृष्ण के कहने पर एक वर्ष ब्रजवासियों ने गाय की पूजा की और गाय के गोबर का पहाड़ बनाकर उसकी परिक्रमा की। तब से हर वर्ष ऐसा किया जाने लगा।जब ब्रजवासियों ने भगवान इंद्र की पूजा करनी बंद कर दी तो वो इस बात से नाराज हो गए और उन्होंने ब्रजवासियों का डराने के लिए पूरे ब्रज को बारिश के पानी में जलमग्न कर दिया।
गोवर्धन पूजा का कृष्ण से संबंध
लोग के प्राण बचाने के लिए भगवान कृष्ण ने ब्रजवासियों को बचाने के लिए पूरा गोवर्धन पर्वत अपनी एक उंगली पर उठा लिया था। लगातार 7 दिन तक भगवान कृष्ण ने ब्रजवासियों को उसी गोवर्धन पर्वत के नीचे शरण देकर उनके प्राणों की रक्षा की। भगवान ब्रह्मा ने जब इंद्र को बताया कि भगवान कृष्ण विष्णु का अवतार हैं तो इस बात को जानकर इंद्र बहुत पछताए और उन्होंने भगवान से क्षमा मांगी। इंद्र का क्रोध खत्म होते ही भगवान कृष्ण ने सातवें दिन गोवर्धन पर्वत नीचे रख दिया। तब से लेकर आज तक गोवर्धन पूजा और अन्नकूट हर घर में मनाया जाता है।
ऐसे होता है पूजन
इस दिन लोग अपने घर के आंगन में गाय के गोबर से एक पर्वत बनाकर उसे जल, मौली, रोली, चावल, फूल, दही तथा तेल का दीपक जलाकर उसकी पूजा करते हैं। इसके बाद गोबर से बने इस पर्वत की परिक्रम लगाई जाती है। इसके बाद ब्रज के देवता कहे जाने वाले गिरिराज भगवान को प्रसन्न करने के लिए उन्हें अन्नकूट का भोग लगाया जाता है।