(निरुक्त भार्गव)
जहां जाने-आने के रास्ते सुगम थे और जहां के मार्केट माणिकों, मोतियों और स्वर्ण से दमकते थे! ऐसी धरा जिस पर काल के अनगिनत प्रवाह आते और जाते रहे, लेकिन जिसने अपने चौड़े मस्तक को कभी डिगने नहीं दिया! और, जिसे अनादि काल से इसलिए जाना जाता है कि जिसके हृदय में विश्व की एकमात्र ‘उत्तरगामी’ क्षिप्रा नदी विराजित हो, विहंगम स्वरूप में ‘दक्षिण-मुखी’ महाकालेश्वर ज्योतिर्लिन्गं समाए हुए हो और ‘वृहत्तर भारत’ का कीर्तिमान शासन करने वाले सम्राट विक्रमादित्य स्वयं जहां की रज में रचे-बसे हों!
क्या भारतवर्ष में या समूचे ‘ग्लोब’ पर उक्त विशेषताओं से परिपूर्ण कोई स्थान/ राज-काज की व्यवस्था कभी काबिज रही है? लेकिन, इसके बहुतेरे अकाट्य प्रमाण हैं कि अर्वाचीन/ प्राचीन/आधुनिक अवन्ती/उज्जयिनी/उज्जैन में समय-समय पर वो सब विशेषताएं अस्तित्व में थीं, जिसका ‘क्लेम’ आज की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली अथवा मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल चाहकर भी नहीं कर सकतीं! पूरे विश्व के सबसे बीचों-बीच अवस्थित उज्जैन असल में सारी जन्म-मरण/शिक्षा-दीक्षा/ब्याह/व्यापार-व्यवसाय/वैराग्य का निर्धारक स्थान रहा है: कृष्ण जी शायद इसीलिए गहन शिक्षण-प्रशिक्षण के लिए महर्षि संदीपनी के गुरुकूल आए थे और फिर महाभारत के रण-मंच पर उन्होंने ‘गीता जी’ का अमर सन्देश दिया, कुरूक्षेत्र से!
आज से कोई 2600 साल पहले ‘वृहत्तर भारत’ की 16 जनपदों में शुमार ‘अवन्ती जनपद’ के शासक चंडप्रद्योत के काल में उज्जैन एक राजधानी थी! 2178 पहले इसी ‘वृहत्तर भारत’ का नेतृत्व करने वाले महान शासक सम्राट विक्रमादित्य इसी उज्जैन की अपनी राजधानी से शासन किया करते थे! कोई 1000 साल पहले राजा भोज सहित तमाम परमार शासकों ने उज्जैन को सांस्कृतिक राजधानी तो 1812 से पहले सिंधिया राज के कर्ताधर्ताओं ने उज्जैन को प्रशासनिक राजधानी बनाया!
तकरीबन 220 साल बाद जब बहुतायत मानदंडों का रिसाव हो गया, फिर से कोशिश हो रही हैं, उज्जैन का 2600 साल पुराना राज-काज का वैभव लौटाने की! मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इस पूरी कवायद की धुरी बने हैं! उनके समर्थन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी हैं हीं! राष्ट्रीय स्वयंसेवक की भूमिका तो है ही! बहरहाल, ये एक सच्चाई है कि बाबा महाकाल के भक्तों की संख्या अविरल है और उनके मनोभावों का चरमोत्कर्ष जगजाहिर है! बावज़ूद इसके, उज्जैन को उसका ‘सर्वकालिक’ महान स्थान का दर्जा दे दिया जाता है और आगे की राह प्रशस्त कर दी जाती है तो एक-ही हुंकार निकलेगी: जय श्री महाकाल!