लखनऊ: उत्तर प्रदेश चुनाव में अब करीब 4 महीने का समय शेष है लेकिन इस समर को जीतने के लिए सभी पार्टियों ने अपनी कमर अभी से कस ली है।आँकड़ो के लिहाज से देखे तो यूपी में भाजपा का सीधा मुक़ाबला समाजवादी पार्टी (सपा) SP से है और सपा को भी पता है कि
वही भाजपा को सत्ता से बेदखल कर सकती है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने 2022 विधानसभा चुनाव में सफलता के लिए बीजेपी के 2017 वाले फार्मूले को आत्मसात कर लिया है।
Read also: मोहसिन रज़ा ने अब्बाजान वाले बयान पर अखिलेश यादव की ली चुटकी
आजकल अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) भी भाजपा के नक्शे कदम पर चल रहे है। जिस प्रकार 2017 चुनाव से पहले भाजपा ने अन्य दलों के नेताओं को ये संकेत दिया था कि सूबे में भाजपा (BJP) की ही सरकार आने वाली है। जिसके कारण अन्य पार्टियों के कई बड़े नेता अपनी पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे। इसमें कई बड़े नाम थे जैसे बसपा के कद्दावर नेता और पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य, बसपा (BSP) के पूर्व सांसद ब्रजेश पाठक और कांग्रेस (Congress) छोड़ बीजेपी का दामन थामने वाली रीता बहुगुणा जोशी जो बाद में योगी कैबिनेट में मंत्री भी रही थी।
गौरतलब है कि सपा भी 2022 यूपी विधानसभा चुनाव से ठीक पहले लगभग ऐसा ही संदेश देने में सफल होती दिख रही है कि “भाजपा सरकार जा रही और समाजवादी पार्टी की सरकार आ रही है” इस नैरेटिव को गढ़ने में सपा काफी हद तक सफल भी रही है। इसका ताज़ा उधारण है हाल ही में कांग्रेस और बसपा छोड़ सपा में आए कई बड़े नेता। अभी दो दिन पहले पश्चिम के एक बड़े BSP नेता कादिर राणा और यूपी राज्य संयुक्त विद्ययुत कर्मचारी संघ के अध्यक्ष हरिकेश तिवारी ने सपा में आस्था दिखायी है। बातदे कि तिवारी के शामिल होने से सपा को लाखो कर्मचारियों के समर्थन का फायदा हो सकता जो योगी सरकार से पुरानी पेंशन बहाली की मांग कर रहे और नाराज भी है।
अखिलेश यादव रथ यात्रा के मामले में भी भाजपा को टक्कर दे रहे है। वर्ष 1990 में जिस प्रकार आडवाणी ने “राम रथ यात्रा” निकाल कर पार्टी को मजबूत करने का काम किया था। उसी प्रकार अखिलेश ने भी 12 अक्टूबर से “समाजवादी विजय रथ यात्रा” को हरी झंडी दिखाकर प्रदेश सूबे में सपा के लिए जनसमर्थन और भाजपा की नाकामियों को प्रदेश की जनता के सामने रख चुनावी बिगुल फूँक दिया है।
Read also: भाजपा ने अखिलेश यादव पर कसा तंज
हालांकि सपा को 2012 विधानसभा चुनाव में करीब 22 फीसदी वोट मिले थे लेकिन उसकी नजर भाजपा की तरह गैर यादव ओबीसी के 40 फीसदी वोट पर है जो 2014 से भाजपा के लिए निर्णायक साबित होता आया है। इस समय ये वोटर नए कृषि कानून और महंगाई को लेकर भाजपा से नाराज है। इन्हीं को साधने के लिए सपा ने प्रदेश में “किसान नौजवान पटेल” यात्रा का भी आयोजन किया है। सपा अगर भाजपा की तरह 2017 वाली सफलता दुहराना चाहती है तो उसे भी छोटे दलों से गठबंधन करना होगा और सभी को साथ लेकर चलना होगा।